बजट 2020 का इंतजार अब खत्म होने ही वाला है और यह देश के सवा सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के लिए होगा, लेकिन कुछ खास सेक्टर हैं जो खासतौर से फिक्रमंद और उम्मीद लगाए हैं. हेल्थकेयर और इसी के तहत आने वाली मेंटल हेल्थकेयर, का अलग से जिक्र किया जाना जरूरी है.
हालात को समझने के लिए इस 1.15 फीसद स्वास्थ्य बजट की दुनिया के कुछ दूसरे देशों के आंकड़ों से तुलना करें. अमेरिका अपने जीडीपी का 17.5 फीसद हेल्थकेयर पर खर्च करता है, जबकि स्विट्जरलैंड 12.25 फीसद के साथ दूसरे स्थान पर है. फ्रांस और जर्मनी क्रमशः 11.45 और 11.27 फीसद खर्च करते हैं.
तो ऐसे में स्वाभाविक रूप से ये सवाल उठता है: क्या भारत हेल्थकेयर और खासकर मेंटल हेल्थ पर पर्याप्त धन खर्च कर रहा है?
वर्ष 2017 में 19.73 करोड़ भारतीय (कुल आबादी का 14.3%) मानसिक बीमारियों से पीड़ित थे. लांसेट साइकियाट्री में छपे एक अध्ययन के मुताबिक इनमें से 4.57 करोड़ लोग अवसाद से पीड़ित थे और 4.49 लोगों को एंग्जाइटी डिसऑर्डर था.
बदकिस्मती से इस बढ़ते अनुपात के साथ मेंटल डिसऑर्डर के लिए बजट आवंटन में समानांतर बढ़ोतरी नहीं हुई है.
वित्त वर्ष 2019-20 के लिए, तत्कालीन वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने हेल्थ सेक्टर के लिए 61,398 करोड़ रुपये के बजट की घोषणा की थी- साल 2018-19 के 52,800 करोड़ रुपये से 16 फीसद की बढ़ोतरी. ये बढ़ोतरी पिछले दो वित्त वर्षों में सबसे अधिक भी थी.
लेकिन क्या मेंटल हेल्थकेयर के क्षेत्र में भी ऐसा ही हुआ है? इसके उलट, नेशनल मेंटल हेल्थ प्रोग्राम के लिए पिछले वर्ष के 50 करोड़ रुपये से घटाकर 2019-20 के लिए 40 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ.
सरकार द्वारा 2017 में पारित मेंटल हेल्थकेयर एक्ट (MHCA) को लाखों भारतीयों की मदद की दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम के तौर पर देखा गया. यह मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा करने, बढ़ावा देने, पूरा करने और अपने नागरिकों को सस्ती मेंटल हेल्थकेयर मुहैया कराने की जिम्मेदारी राज्य पर डालता है.
इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री में प्रकाशित समीक्षा लेख, ‘मेंटल हेल्थकेयर एक्ट 2017 के क्रियान्वयन के लिए खर्च का आकलन’, में सरकार द्वारा MHCA को लागू करने पर सालाना 94,073 करोड़ रुपये अनुमानित खर्च बताया गया था.
यह गहरा विरोधाभास खतरे का संकेत है, और यह तथ्य कि बजट आवंटन में 2018 से 2019 तक कमी की गई है, चिंताजनक प्रवृत्ति का संकेत देता है.
लेकिन नेशनल एकेडमी ऑफ साइकोलॉजी इंडिया (NAOP) नाउम्मीद नहीं है. बजट 2020 पर अपने बयान में इसने सरकार से मेंटल हेल्थ पर खर्च बढ़ाकर 50,000 करोड़ रुपये करने की मांग की है. NAOP में सोशल पॉलिसी कमेटी के सदस्य अजय गुलज़ार फिट से बातचीत में कहते हैं, “हालांकि अभी भी यह वह राशि नहीं है जिसकी हमें सच में जरूरत है, फिर भी 50,000 करोड़ रुपये से शुरुआत करना एक कदम आगे बढ़ना है.”
इस बयान में भारत के मेंटल हेल्थ सेक्टर में कई खामियों का जिक्र किया गया है, जिन्हें दुरुस्त करने की जरूरत है- आवंटित राशि में पर्याप्त हद तक बढ़ोतरी के साथ.
मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल्स के प्रशिक्षण और देश के सभी हिस्सों में सुविधाओं के निर्माण में बहुत मामूली निवेश के चलते ट्रीटमेंट में 90% से अधिक का भारी अंतर है.
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के स्तर पर मेंटर हेल्थ सेवाओं में सुधार के लिए सरकार की तरफ से भारी मात्रा में निवेश, मनोवैज्ञानिकों को प्रशिक्षण व रोजगार और मनोवैज्ञानिक बीमारियों के बारे में जागरुकता पैदा करने की तत्काल आवश्यकता है.
इस क्षेत्र को सरकार की प्राथमिकता बनाने व असरदार बनाने के लिए, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में एक राज्यमंत्री को मेंटल हेल्थ मामलों का प्रभारी बनाया जाना चाहिए.
भारत में मनोविज्ञान की शिक्षा, प्रशिक्षण और प्रैक्टिस की निगरानी और नियमन के लिए सरकार द्वारा एक स्वतंत्र राष्ट्रीय मनोविज्ञान परिषद बनाने की मांग लंबे समय से चली आ रही है. 2016 में मनोविज्ञान में मॉडल पाठ्यक्रम पर यूजीसी विशेषज्ञ समिति द्वारा इस तरह का प्राधिकरण बनाने की सिफारिश भी की गई थी.
प्रस्तावित एलाइड एंड हेल्थकेयर काउंसिल ऑफ इंडिया में मनोवैज्ञानिकों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व दिए जाने की जरूरत. उनको इससे बाहर रखने से मेडिकल और संबंधित स्पेशिएलिटी पर ही ध्यान केंद्रित रह जाएगा और ‘बिहेवरियल हेल्थ साइंस’ कैटेगरी के छात्र और चिकित्सक उपेक्षित ही रह जाएंगे.
फिट से बातचीत में, गुलज़ार मनोविज्ञान और मेंटल हेल्थ के अनुसंधान और विकास पर अधिक ध्यान देने और निवेश करने की जरूरत पर जोर देते हैं.
बयान में कहा गया है, “इसलिए, समय की जरूरत है कि मेंटल हेल्थ पर सरकार बजट 2019-20 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में मामूली 40 करोड़ रुपये के आवंटन में कई गुना बढ़ोतरी करे.”
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Published: 30 Jan 2020,12:09 PM IST