लंग कैंसर यानी फेफड़े के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. ग्लोबोकैन की रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 में फेफड़ों के कैंसर के भारत में 67,795 नये केस रिपोर्ट किए गए. इसी दौरान फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की संख्या 63,475 रही.

अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ कैंसर रिसर्च के मुताबिक साल 2018 में कैंसर के नए मामलों में सबसे ज्यादा लंग कैंसर के मामले सामने आए.

फेफड़े के कैंसर के बढ़ते मामलों में प्रदूषित हवा की भूमिका भी बढ़ रही है. कैंसर के पर्यावरणीय रिस्क फैक्टर जैसे बढ़ता एयर पॉल्यूशन लंबे समय से चिंता का विषय रहा है.

लंग कैंसर के एक चौथाई ऐसे मरीज जिन्होंने कभी स्मोकिंग नहीं की!

स्मोकिंग करने वालों को लंग कैंसर होने का रिस्क 15 से 30 गुना बढ़ जाता है, लेकिन स्मोकिंग न करने वाले भी फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हो रहे हैं.

फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में रेडिएशन ऑन्कोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट और यूनिट हेड डॉ आशु अभिषेक कहते हैं, "आमतौर पर लोग यही मानते हैं कि जो स्मोकिंग करते हैं, बीड़ी पीते हैं सिर्फ उन्हें लंग कैंसर होता है."

अगर मैं अपना क्लीनिकल एक्सपीरियंस बताऊं तो करीब 20 से 25 प्रतिशत मरीज मतलब एक चौथाई लंग कैंसर के ऐसे मरीज हमारे पास आते हैं, जिन्होंने कभी बीड़ी, सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाया, तो उनको कैंसर क्यों हो रहा है.
डॉ आशु अभिषेक, कैंसर स्पेशलिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम

पटना के सवेरा कैंसर एंड मल्टीस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के डॉक्टरों की टीम ने मार्च, 2012 से जून, 2018 तक 150 से ज्यादा मरीजों का विश्लेषण किया था, जिसमें भी यही पाया गया कि स्मोकिंग न करने वालों को भी कैंसर हो रहा है.

पटना के कैंसर सर्जन डॉ. वी.पी सिंह ने आईएएनएस को बताया कि इन मरीजों में तकरीबन 20 प्रतिशत मरीज ऐसे थे, जो धूम्रपान नहीं करते थे. 50 साल से कम एज ग्रुप में यह आंकड़ा 30 प्रतिशत तक पहुंचा.

प्रदूषित हवा फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार

प्रदूषित हवा में सांस लेना सिगरेट पीने के बराबर(फोटो: iStock)

डॉ आशु अभिषेक इसके दो मुख्य कारण बताते हैं:

पैसिव स्मोकिंग- इसका मतलब कि आप स्मोकर न होते हुए भी ऐसे लोगों के बीच उठते-बैठते हो या आप ऐसी जगह जाते हो जहां पर बाकी लोग धूम्रपान करते हैं.

एयर पॉल्यूशन- आप ऐसी जगह रहते हो, जैसे दिल्ली या गुरुग्राम जहां वायु प्रदूषण, जिसे हम एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) से मापते हैं, ज्यादा हो.

दिल्ली, गुरुग्राम में AQI 250 या 300 बहुत आम बात है और दिसंबर-जनवरी आते-आते ये लेवल 800, 900 या शायद हमारे उन पैरामीटर्स को भी पार कर जाती है.

AQI 800 या 900 से ऊपर जाने का मतलब होता है कि न चाहते हुए भी आप रोजाना 30 से 40 सिगरेट पी रहे हैं. आपने कभी स्मोकिंग नहीं की, फिर भी आपके फेफड़ों में वो हवा जा रही है, जिसका हानिकारक असर रोजाना 40 सिगरेट पीने के बराबर है. ऐसी प्रदूषित हवा से किसी को कैंसर कैसे नहीं होगा.
डॉ आशु अभिषेक, कैंसर स्पेशलिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम
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वायु प्रदूषण: पर्टिकुलेट मैटर से फेफड़ों को नुकसान

बी.एल.के सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के सेंटर फॉर चेस्ट एंड रेस्पिरेटरी डिजीज के सीनियर डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ संदीप नायर कहते हैं कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से लंग कैंसर और कार्डियोपल्मोनरी बीमारी का रिस्क बढ़ता है.

फेफड़ों के कैंसर का संबंध पार्टिकल पॉल्यूशन से पाया गया है. पार्टिकल पॉल्यूशन ठोस और लिक्विड पार्टिकल का मिक्स होता है, जो कई तरह के केमिकल और जैव घटकों से बने होते हैं. ये पार्टिकल पावर प्लांट से आते हैं, लकड़ी, कोयला, डीजल और कई दूसरे जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलते हैं.

पीएम 10 और पीएम 2.5 वो प्रदूषक हैं, जो सीधे रेस्पिरेटरी बीमारियों और लंग कैंसर से जुड़े हैं. ये पार्टिकल्स कोशिकाओं नुकसान पहुंचा कर कैंसर का कारण हो सकते हैं.
डॉ संदीप नायर, सीनियर डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट, सेंटर फॉर चेस्ट एंड रेस्पिरेटरी डिजीज, बी.एल.के सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल
फेफड़ों के कैंसर का संबंध पार्टिकल पॉल्यूशन से पाया गया है.(फोटो: iStock)

ये पर्टिकुलेट मैटर (PM 10 और PM 2.5) कोशिकाओं में DNA को कैसे डैमेज कर कैंसर का कारण बन सकते हैं, ये अभी पूरी तरह से नहीं समझा जा सका है.

पॉल्यूशन और लंग कैंसर के बीच संबंध के बारे में नई दिल्ली के फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड और डायरेक्टर डॉ विकास मौर्य न्यूज एजेंसीआईएएनएस को बताते हैं कि PM 2.5 का लेवल बढ़ने से लंग कैंसर का रिस्क बढ़ता है.

ये पार्टिकल्स फेफड़ों में डिपॉजिट हो जाते हैं. शरीर का डिफेंस मैकेनिज्म भी इनको नष्ट नहीं कर पाता है. एक मैकेनिज्म के तहत, जिसके बारे में अभी ज्यादा जानकारी नहीं है, कोशिकाओं और ऊतक में बदलाव होता है और लंबे समय में ये कैंसर का कारण बनता है.
डॉ विकास मौर्य

वायु प्रदूषण: किन लोगों को फेफड़े के कैंसर का रिस्क ज्यादा?

  • जो लोग ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां पार्टिकल पॉल्यूशन का लेवल ज्यादा हो, वो हाई रिस्क पर रहते हैं.

  • बच्चे, बुजुर्ग, फेफड़े और दिल की बीमारी, डायबिटीज वाले लोग, जिनकी आय कम है और जो लोग बाहर काम या एक्सरसाइज करते हैं, उन्हें ज्यादा रिस्क है.

  • खाना पकाने के लिए या ठंड में गर्माहट के लिए जहां लकड़ी, कोयला जैसे ठोस ईंधन जलाया जाता हो, वहां भी लोगों को लंग कैंसर होने का रिस्क बढ़ जाता है.

एयर पॉल्यूशन: खुद को सुरक्षित रखने के लिए क्या करें

बाहरी और घरेलू प्रदूषण के कारण 2019 में 1 महीने से कम के 1.16 लाख बच्चों की मौत हुई है. (फोटो: iStock)
  • अपने इलाके में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) की रोजाना जानकारी रखें और उसी के मुताबिक अपनी गतिविधियां सीमित करें.
  • मेन रोड या हाईवे पर एक्सरसाइज न करें.
  • बाहर निकल रहे हैं, तो मास्क (N99/N95 या कपड़े का) जरूर पहनें.
  • घर साफ रखें और वेंटिलेशन का ख्याल रखें.
  • घर में इनडोर प्लांट रखें.
  • फल और सब्जी से भरपूर हेल्दी खाना खाएं.
  • अपने लेवल पॉल्यूशन कम करने की कोशिश करें, जैसे लकड़ी या कूड़ा न जलाएं, बेवजह गाड़ी चालू न रखें खासकर डीजल इंजन.

डॉ आशु अभिषेक कहते हैं कि इस बात को समझना बहुत जरूरी है कि स्मोकिंग न करने के साथ ही एयर पॉल्यूशन को कंट्रोल करना बहुत जरूरी है ताकि हमारे और आने वाली पीढ़ी के सांस लेने के लिए अच्छी हवा रहे.

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Published: 05 Nov 2020,11:42 AM IST

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