Childhood Cancer Day: कैंसर जैसी भयानक बीमारी न सिर्फ बड़ों में देखी जाती है बल्कि कई बार बच्चों में भी देखने को मिलती है. हालाकि बच्चों में होने वाले कैंसर के ठीक होने की संभावना बड़ों के मुक़ाबले कही अधिक है. हर वर्ष 15 फरवरी को विश्व चाइल्डहुड कैंसर दिवस मनाया जाता है. इसे मनाने का उद्देश्य है लोगों को बच्चों में होने वाले कैंसर के प्रति जागरूक करना.
फिट हिंदी ने बच्चों में होने वाले कैंसर से जुड़े सवालों के जवाब जानने के लिए संपर्क किया मेदांता हॉस्पिटल, गुरुग्राम के पीडीऐट्रिक हेमटो ऑन्कोलॉजी और बोने मैरो ट्रैन्स्प्लैंट, चिकित्सा और हेमेटो ऑन्कोलॉजी कैंसर इंस्टीट्यूट के निदेशक, डॉ सत्य प्रकाश यादव से.
बच्चों में कौन से कैंसर ज़्यादा होते हैं?
बच्चों में कई तरह के कैंसर होते हैं. कुछ जो सबसे ज़्यादा होते हैं वो ये हैं:
ल्यूकीमिया- बच्चों में सबसे ज्यादा मामले ल्यूकीमिया के होते हैं. यह एक तरह का ब्लड कैंसर है. ब्रेन कैंसर- बच्चों के मस्तिष्क में बिनाइन ट्यूमर हो जाता है. इसके अलावा दिमाग के अलग-अलग प्रकार के कैंसर भी हो सकते हैं.
लिम्फोमा- इसे गर्दन का कैंसर भी कहते हैं. बच्चों को तीसरा सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर है. यह कैंसर लिम्फ ग्रंथियों (गर्दन की ग्रंथियों) में होता है.
न्यूरोब्लास्टोमा – यह एड्रिनल ग्लैंड में होने वाला एक ट्यूमर है, जो किडनी के ऊपरी भाग में होता है
रेटिनोब्लास्टोमा यानि आंखों का कैंसर भी होता है.
हडि्डयों का कैंसर- ऑस्टियोसरकोमा और इविंग्स सरकोमा हड्डियों में होने वाला कैंसर है.
बच्चों में कैंसर के लक्षणों को कैसे पहचाने?
सभी प्रकार के कैंसरों के लक्षण अलग -अलग होते हैं. कुछ के लक्षण इस प्रकार हैं:
ल्यूकीमिया- इसमें बच्चा दिन ब दिन पीला या सफ़ेद दिखने लगता है. हीमोग्लोबिन का स्तर कम होने लगता है. बुख़ार भी बना रहता है. प्लेटलेट की कमी के कारण बच्चे के शरीर में नीले या गुलाबी निशान दिखते हैं. बार-बार इन्फ़ेक्शन होते हैं क्योंकि वाइट ब्लड सेल्ज़ ठीक से काम नहीं कर रहा होता है. ऐसा भी होता है कि वाइट ब्लड सेल्ज़ बच्चे के शरीर में हाई हो जाते हैं और उससे खून गाढ़ा हो जाता है. जिसकी वजह से सिरदर्द, हड्डी या जोड़ों में दर्द होने लगते हैं.
ब्रेन ट्यूमर - इसमें सरदर्द एक आम लक्षण है. कभी कभी स्क्विन्ट् (भेंगापन) देखने को मिलता है. इसमें बच्चा रोज़ सुबह सो कर उठने के बाद सरदर्द के साथ जी मचलाने की शिकायत करता है. फिर उल्टी करने के बाद आराम महसूस करता है.
किडनी ट्यूमर- इसमें बच्चे के पेट में गांठ बनती है.
बोने ट्यूमर- ये ज़्यादातर बढ़ते बच्चों में होता है. हड्डी या जोड़ों में गांठ सी होती है, जो दर्द का कारण बनते हैं.
3. क्या कैंसर जेनेटिक भी होते हैं?
कुछ कैंसर जेनेटिक होते हैं जैसे कि ब्रेस्ट कैंसर और ओवेरीयन कैंसर पर ज़्यादातर कैंसर जेनेटिक नहीं होते है.
कैसे समझें कि ऑन्कोलॉजिस्ट(कैंसर विशेषज्ञ) से संपर्क करने का समय आ गया है?
बच्चों में कैंसर एक आम बीमारी नहीं है. इसलिए बच्चे की तबियत बिगड़ने पर लक्षण के अनुसार डॉक्टर से संपर्क कर इलाज कराएं. लेकिन अगर लक्षण के अनुसार इलाज करने के बाद भी बच्चे की स्तिथि में सुधार नहीं आ रहा हो तब समस्या को गंभीरता से देखना होगा.
अगर गर्दन में मिला गांठ हफ़्तों एंटीबायोटिक दवाईयों से भी नहीं ठीक हुआ है, तब बायोप्सी करवाने की ज़रूरत पड़ सकती है.
अगर बच्चे का बुख़ार 10-12 दिन से चेक उप और दवाईयों के बाद भी बना हुआ है और उसके पीछे कोई दूसरा कारण समझ नहीं आ रहा है, तो डॉक्टर से सम्पर्क करें.
बच्चे हो सुबह सवेरे सरदर्द, जी मचलाने और उल्टी की शिकायत हो तो सतर्क हो जाएं.
बच्चों में कैंसर का इलाज का तरीक़ा क्या-क्या है?
कीमोथेरपी बच्चों में कैंसर को ठीक करने का अभी सबसे कारगर तरीक़ा है. जहां बड़ों के कैंसर में कीमोथेरपी उतनी असरदार नहीं दिखती वही बच्चों के कैंसर में ये काफ़ी सफ़ल तरीक़ा है.
सर्जरी और रेडीएशन भी ज़रूरत के हिसाब से की जाती है.
बच्चों के कैंसर में रेडीएशन का प्रयोग कम से कम किया जाता है क्योंकि इसके साइड इफ़ेक्ट्स बच्चों को नुक़सान पहुँचा सकते हैं.
कैंसर होने पर बच्चे का ध्यान कैसे रखें?
बच्चे के आसपास स्वछता रखें. कैंसर से जूझ रहे बच्चों की इम्यूनिटी बहुत कम होती है. इन्फ़ेक्शन से लड़ने की क्षमता भी कम हो चुकी होती है जिसकी वजह से उनको बुख़ार आसानी से आ सकता है. जो उनके लिए बेहद ख़तरनाक साबित हो सकता है.
बुख़ार यानि ख़तरे की घंटी. 100 डिग्री से ज़्यादा बुख़ार होने के 1 घंटे के अंदर हॉस्पिटल पहुँच ने पर जान बचने की संभावना बढ़ जाती है.
अच्छे से पका घर का बना खाना ही खाना चाहिए.
खाना खाने से पहले हाथ अच्छे से साफ़ करना चाहिए.
जब भी बाथरूम का इस्तेमाल करें, तो हाथ अच्छे से साफ़ करें.
इन्फ़ेक्शन से बचने के लिए बच्चे को मास्क पहना कर रखें.
परिवार के लोग भी मास्क का इस्तेमाल करें ताकि फ़्लू, कोविड न हो क्योंकि उनसे ये बीमारियाँ बच्चे को हो सकती है.
बच्चों में कैंसर के इलाज की सफलता दर क्या है? क्या दोबारा कैंसर होने का ख़तरा रहता है?
80% से ज़्यादा मामलों में बच्चे ठीक हो अपने घर चले जाते है. कीमोथेरपी ,सर्जरी और रेडीएशन की नयी तकनीक से हम ज़्यादा से ज़्यादा बच्चों का इलाज सफलतापूर्वक कर रहे हैं. जहां तक दोबारा कैंसर होने की बात है, तो हो सकता है कि 20% बच्चों में ये समस्या दोबारा देखी जाए पर उन्हें भी कड़ी मेहनत और ध्यानपूर्वक इलाज से ठीक कर दिया जा सकता है.
कब समझें कि बच्चा कैंसर मुक्त हो गया है?
जब कैंसर का इलाज ख़त्म हो कर बिना किसी समस्या के कम से कम 5 साल बीत गए हों और उस बीच बच्चे के टेस्ट में कोई भी कैंसर सम्बंधी शिकायत न दिखी हो या बच्चे में कैंसर का कोई भी लक्षण न दिखा हो, तब समझें कि बच्चा पूरी तरह से कैंसर मुक्त हो गया है.
रिकॉवरी के समय क्या ध्यान में रखें?
इलाज ख़त्म होने के बाद साल में 1 बार डॉक्टर से चेक उप ज़रूर कराएं.
रेडीएशन और कीमोथेरपी के साइड इफ़ेक्ट के बारे में डॉक्टर से पूछ कर, ध्यान में रखें.
बच्चे का प्राकृतिक विकास सही तरीक़े से हो रहा है या नहीं ये ध्यान देना चाहिए.
परिवार को ऐसे समय में क्या सलाह देंगे आप?
कैंसर शब्द सुनते ही लोग घबरा जाते हैं. जबकि ये समय सबसे ज़्यादा हिम्मत और बच्चे को प्यार देने के लिए होता है. परिवार के लोगों को ये याद रखना चाहिए कि कैंसर अलग-अलग तरह के होते हैं और लोगों पर अलग-अलग तरह से प्रभाव डालते हैं. बच्चों में कैंसर बड़ों की तरह नहीं होता. उनमें ठीक होने की संभावना बड़ों से कहीं अधिक होती है.
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