चीन के वुहान शहर से तेजी से फैल रहे नोवेल कोरोनावायरस के बारे में वो बातें जो ज्यादा चिंतित करने वाली हैं, वो ये हैं कि ये वायरस इंसानों-से-इंसानों में फैल सकता है, इस वायरस से सुरक्षा देने वाली अभी कोई वैक्सीन नहीं है और न ही कोई खास एंटीवायरल ट्रीटमेंट है. इसीलिए इसका प्रकोप और बढ़ने की आशंका जताई जा रही है.

चीन की ओर से कोरोनावायरस के इस नए स्ट्रेन (2019-nCoV) के जेनेटिक मेकअप का विवरण दिए जाने के बाद दुनिया भर के वैज्ञानिक संस्थान इसकी वैक्सीन तैयार करने में जुट गए हैं.

वैज्ञानिकों का मानना है कि सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) और मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (MERS) की फैमिली का होने के नाते इन दोनों वायरस की वैक्सीन के लिए तैयार किए गए मॉडल इस नए कोरोनावायरस की वैक्सीन के विकास में मददगार साबित हो सकते हैं.

यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ कैरोलिना गिलिंग्स स्कू ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ में कोरोनावायरस पर रिसर्च करने वाले राल्फ बैरिक टाइम डॉट कॉम की रिपोर्ट में बताते हैं, "भले ही SARS और 2019-nCoV एक समान नहीं हैं, लेकिन इनमें जो समानताएं हैं और पहले हुए रिसर्च की मदद से जल्द से जल्द वैक्सीन के विकास और ट्रीटमेंट पर काम शुरू किया जा सकता है."

न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट बताती है कि ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक और जॉनसन एंड जॉनसन, मॉडर्न थैरेप्यूटिक्स और इनोवियो फार्मास्यूटिकल्स जैसी कंपनियां इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए इसकी वैक्सीन पर काम कर रही हैं.

ये वायरस साधारण सर्दी-जुकाम से लेकर सिवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (SARS) का कारण बन सकता है.(फोटो: विकिपीडिया)
वैज्ञानिक कोरोनावायरस के उस प्रोटीन पर फोकस करना चाहते हैं, जिससे उसके क्राउन का निर्माण होता है. उनका मानना है कि अगर उस प्रोटीन को कोशिकाओं के साथ जुड़ने से रोका जा सके, तो इसे फैलने से रोका जा सकता है. SARS और MERS पर भी इस प्रोटीन का अध्ययन किया गया था, हालांकि इनकी वैक्सीन भी अब तक नहीं आ सकी है.
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कोरोनावायरस की वैक्सीन के विकास को लेकर गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ मंजीत नाथ दास फिट को बताते हैं, "कोरोनावायरस की वैक्सीन के लिए काम हो रहा है, जैसे अमेरिका में ट्रायल चल रहे हैं. लेकिन इसके एंटीवायरल ड्रग्स और वैक्सीन का विकास बहुत प्रारंभिक चरण में है."

हम जानते हैं कि किसी वैक्सीन के विकास में महीनों और साल लग सकते हैं क्योंकि जानवरों और इंसानों पर वैक्सीन की व्यापक टेस्टिंग होनी होती है.

इस पर The Coalition for Epidemic Preparedness Innovations (CEPI) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी कहते हैं, "हो सकता है कि ये वैक्सीन किसी बीमारी के प्रकोप के शुरुआती चरण में मददगार न हों, लेकिन अगर हम समय पर टीके विकसित करने में सक्षम हो जाएं, तो बाद में काफी मदद मिल सकती है."

वहीं इस रिपोर्ट के मुताबिक हॉन्ग कॉन्ग के रिसर्चर्स का कहना है कि उन्होंने नोवेल कोरोनावायरस की वैक्सीन तैयार कर ली है, लेकिन जानवरों पर इसकी टेस्टिंग में लंबा वक्त लगेगा.

हॉन्ग कॉन्ग यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने पहले तैयार की गई इंफ्लूएंजा वैक्सीन में कुछ बदलाव कर उसे कोरोनावायरस से बचाव के लिए तैयार किया है, हालांकि इंसानों पर इसके प्रयोग के लिए क्लीनिकल ट्रायल किए जाने की जरूरत है, जिसमें कम से कम एक साल का वक्त लग सकता है.

ये देखते हुए कि पिछले दो दशकों में ये नए कोरोनावायरस का तीसरा बड़ा और गंभीर प्रकोप (SARS, MERS और अब 2019-nCoV) है. ऐसे में एक्सपर्ट्स ऐसी वैक्सीन के विकास पर भी काम शुरू कर सकते हैं, जो मोटे तौर पर इन कोरोनावायरस से बचाव कर सके.

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Published: 30 Jan 2020,02:02 PM IST

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