जलवायु परिवर्तन के खतरों को नकारा नहीं जा सकता है, इसके पर्याप्त सबूत हैं कि ये पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनता जा रहा है.
मौसम के प्राकृतिक पैटर्न में बदलाव से लू या गर्म हवा चलने और बाढ़ में वृद्धि हुई है, लेकिन इसका हमारी हेल्थ पर क्या प्रभाव पड़ा है?
जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष स्वास्थ्य प्रभावों के मद्देनजर इस वैश्विक मुद्दे को हल करने के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है.
इस साल लांसेट काउंटडाउन की जलवायु परिवर्तन का स्वास्थ्य पर प्रभाव वाली रिपोर्ट में बच्चों की सेहत पर होने वाले असर पर जोर दिया गया है.
बच्चों को ज्यादा खतरा क्यों?
बच्चे विशेष रूप से बदलती जलवायु के स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशील होते हैं. उनका शरीर और इम्यून सिस्टम विकसित हो रहा होता है, ऐसी अवस्था में वे बीमारी और पर्यावरण प्रदूषकों के लिए बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं. बचपन में हुआ नुकसान व्यापक होता है जिसके स्वास्थ्य परिणाम जीवन भर के लिए होते हैं.
डॉ निक वाट्स, द लांसेट काउंटडाउन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर
फिट ने इस सिलसिले में पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (PHFI) की डॉ पूर्णिमा प्रभाकरण से बात की, उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभावों में बच्चों और स्वास्थ्य पर होने वाले असर पर ध्यान देने की जरूरत है.
सभी बच्चे जो अभी हैं और भविष्य में होने वाले हैं, उन्हें अपनी जिंदगी में जलवायु परिवर्तन के बुरे असर का सामना करना होगा.
डॉ पूर्णिमा प्रभाकरण, लांसेट की रिपोर्ट में इंडिया पॉलिसी की ऑथर
इस रिपोर्ट में जलवायु एवं स्वास्थ्य से जुड़े 41 संकेतकों के आधार पर साबित किया गया है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं.
जलवायु परिवर्तन के कारण कुपोषण बढ़ने से लेकर संक्रामक बीमारियां फैलने तक, रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए गंभीर और ठोस कदम उठाने की बात पर जोर दिया गया है.
ADVERTISEMENTADVERTISEMENTजलवायु परिवर्तन के खतरों से सबसे ज्यादा बच्चे प्रभावित होते हैं.(फोटो: अमन शर्मा) डॉ प्रभाकरण 4 क्षेत्रों के बारे में समझाती हैं:
- खाद्य सुरक्षा और पोषण: बढ़ते तापमान का फसल की पैदावार पर असर पड़ता है और आंकड़ों के मुताबिक पिछले 30 साल से उपज में कमी देखी जा रही है. वो बताती हैं कि सिर्फ पैदावार ही नहीं बल्कि बीजों की क्वालिटी भी खराब हो रही है. यह भारत के मौजूदा कुपोषण को बढ़ाता है क्योंकि बच्चों को उनके भोजन से आवश्यक मैक्रोन्यूट्रिएंट्स नहीं मिलेंगे. रिपोर्ट के मुताबिक पहले ही पांच साल से कम उम्र के दो तिहाई बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से होती हैं. इससे खाद्य कीमतें भी बढ़ती हैं, इसके अलावा हम प्रोसेस्ड फूड की ओर शिफ्ट हो रहे हैं. इससे बच्चों में ओवर-न्यूट्रिशन और मोटापे का खतरा बढ़ता है.
- पूरी दुनिया में बढ़ती हीटवेव: 2018 में दुनिया भर में 22 करोड़ लोग तपती हवाओं के संपर्क में आए. “न केवल फ्रिक्वेंसी बल्कि इनकी अवधि और तीव्रता भी बढ़ गई है. स्ट्रोक, डिहाइड्रेशन, दिल की बीमारियां- इनका खतरा बढ़ता है. हीटवेव के दौरान इलेक्ट्रोलाइट का नुकसान बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. ”
- वायु प्रदूषण: प्रदूषित हवा हमारी सेहत को बुरी तरह से प्रभावित करती है और इसका शरीर के हर हिस्से पर बुरा असर पड़ता है, फेफड़ों से लेकर स्किन तक. हवा को प्रदूषित करने वाले ज्यादातर प्रदूषक जलवायु परिवर्तन का भी कारण बनते हैं. गाड़ियों से निकलने वाला धुआं हो या जैविक ईंधन जलाने से होने वाला धुआं हो. प्रदूषित हवा नवजात को जन्म से ही प्रभावित करती है. लंग सर्जन डॉ अरविंद कुमार ने इससे पहले फिट को बताया था कि दिल्ली जैसे प्रदूषित जगह पर पैदा होने वाला हर नवजात एक तरह से जन्म के साथ रोजाना 25 सिगरेट पी रहा है.
- संक्रामक बीमारियों का बढ़ना: तापमान में वृद्धि का मतलब ज्यादा बीमारियां और ज्यादा रोगाणुओं का पनपना है. रिपोर्ट के मुताबिक विबरियो बैक्टीरिया दोगुनी क्षमता से पनप रहे हैं. इसी बैक्टीरिया की वजह से 1980 के बाद से हैजा हर साल 3 फीसदी की दर से बढ़ा. डेंगू और डायरिया के मामले भी बढ़ रहे हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण वेक्टर जनित बीमारियां बढ़ रही हैं और निश्चित रूप से, बच्चों को सबसे अधिक खतरा होता है.
बच्चों के अलावा, 65 साल से ज्यादा उम्र के लोग, प्रेग्नेंट महिलाएं और आर्थिक रूप से कमजोर आबादी जो खराब हालात में भी बाहर काम करने को मजबूर है, वो भी जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित होते हैं.
डॉ प्रभाकरण कहती हैं, "65 से ज्यादा उम्र के लोगों को तपती हवाओं से ज्यादा खतरा होता है."
रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर हम पेरिस समझौते के तहत तापमान बढ़ोतरी दो डिग्री तक सीमित रखने में सफल होते हैं, तो आज पैदा होने वाला बच्चा जब 31 साल की उम्र पार कर रहा होगा तो दुनिया शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर रही होगी.
दुनिया को जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर एक ठोस और तुरंत लागू होने वाले एक्शन प्लान की जरूरत है.
डॉ प्रभाकरण का कहना है कि भारत इसी नीति की दिशा में काम कर रहा है और सरकार द्वारा इसे पारित करने के बाद ये राज्यों को जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सेवा पर उनकी कार्य योजना के तौर पर प्रसारित किया जाएगा.
उनके मुताबिक हमें जलवायु परिवर्तन के कारणों पर काम करने की जरूरत है और साथ ही हेल्थकेयर को भी मजबूत करना है.
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