कोरोना वायरस डिजीज-2019 (COVID-19) की कोई दवा न होने की सूरत में कई दवाइयों और थेरेपी के ऑफ-लेबल इस्तेमाल की मंजूरी दी गई है, इसमें प्लाज्मा थेरेपी भी शामिल है.

जब प्लाज्मा थेरेपी को कोरोना का रामबाण इलाज बताया जा रहा था, तब स्वास्थ्य मंत्रालय ने 28 अप्रैल की प्रेस ब्रीफिंग में साफ किया था कि प्लाज्मा थेरेपी एक्सपेरिमेंटल स्टेज पर है. ये कहा गया था कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने एक नेशनल स्टडी लॉन्च की है, ताकि इस थेरेपी के प्रभाव की स्टडी की जा सके.

अब ICMR की स्टडी के अनुसार कोरोना मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के इस्तेमाल से मृत्यु दर कम करने में मदद नहीं मिलती है.

COVID-19 के इलाज में कॉन्वेलसेंट प्लाज्मा के प्रभाव की जांच के लिए 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच भारत में 39 सरकारी और निजी अस्पतालों में ट्रायल किया गया था.

स्टडी के लिए कुल 464 लोगों (अस्पताल में भर्ती औसत रूप से बीमार COVID-19 मरीजों) को एनरोल किया गया था.

इनमें 235 कोरोना मरीजों को स्टैंडर्ड केयर के साथ प्लाज्मा दिया गया था. वहीं 229 कोरोना रोगियों को सिर्फ स्टैंडर्ड ट्रीटमेंट दिया गया.

34 (13.6%) मरीज जिनको प्लाज्मा थेरेपी दी गई उनकी मौत हो गई. 31 (14.6%) मरीज जिनको प्लाज्मा थेरेपी नहीं दी गई उनकी मौत हो गई.

इसे प्रीप्रिंट सर्वर medRxiv पर पब्लिश किया गया है. अभी इसका पीयर रिव्यू नहीं हुआ है, इसका मतलब है कि ये नया मेडिकल रिसर्च है, जिसका मूल्यांकन किया जाना बाकी है और इसलिए इसे क्लीनिकल प्रैक्टिस को गाइड करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.

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