क्या कॉपर वाले फेस मास्क कोरोना के खिलाफ ज्यादा कारगर हो सकते हैं? लोगों के बीच ऐसा प्रचार किया जा रहा है कि कॉपर मास्क कोरोना वायरस के खिलाफ ज्यादा बेहतर काम कर सकते हैं क्योंकि कॉपर यानी तांबे पर रोगाणु (जैसे वायरस,बैक्टीरिया) ज्यादा देर तक ठहर नहीं सकते.
कॉपर वाले मास्क ये कहकर बेचे भी जा रहे हैं कि कॉपर नैचुरल डिसइन्फेक्टेंट होता है और इस तरह के मास्क पर वायरस 4 घंटे में न्यूट्रलाइज हो जाते हैं या इस पर 4 घंटे में वायरस का खात्मा हो जाता है.
कॉपर यानी तांबे को एंटी बैक्टीरियल और एंटीवायरल माना जाता है. वहीं COVID-19 का कारण नोवल कोरोना वायरस यानी SARS-CoV-2 किसी सतह पर कितनी देर तक रह सकता है, इसे लेकर मार्च, 2020 में एक अध्ययन आया.
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे अध्ययन में कहा गया कि एक कंट्रोल्ड लैब कंडिशन में स्टेनलेस स्टील और प्लास्टिक दोनों पर वायरस कुछ दिनों तक रह सकता है जबकि तांबे पर ये कुछ घंटों तक ही रह सकता है. इस स्टडी के मुताबिक तांबे पर वायरस 4 घंटे से ज्यादा नहीं रह सकता.
मैक्स सुपरस्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत, दिल्ली में सीनियर गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ अश्विनी सेतिया इसी स्टडी का जिक्र करते हुए कहते हैं कि इस स्टडी के नतीजों के आधार पर एक संभावना पर विचार किया जा सकता है कि अगर हम कॉपर की चीजें बना दें, तो हो सकता है कि वायरस उस पर 4 घंटे से ज्यादा न ठहर सके.
कोरोना काल में भले ही कॉपर मास्क ये कह कर बेचा जा रहा है कि कॉपर एंटीवायरल होता है, लेकिन हमारे पास जो स्टडी है, वो कॉपर की सतह की बात करती है, कॉपर वाले फैब्रिक की नहीं.
डॉ सेतिया सवाल करते हैं कि कॉपर लचीला नहीं होता तो उसका मास्क कैसे बनेगा, ये केवल धागे में गुथा हो सकता है.
वहीं वायरस के खात्मे के लिए जरूरी है कि बाहरी और अंदरूनी लेयर में कॉपर हो और वायरस कॉपर के संपर्क में आए.
कॉपर ऑक्साइड वाले रेस्पिरेटरी फेस मास्क पर PLoS One में छपे एक अध्ययन में कहा गया कि आमतौर पर लोग गलत तरीके से मास्क को यूज और डिस्पोज करते हैं, जिससे संक्रमण फैलने का जोखिम रहता है. ऐसे में कॉपर वाले मास्क इस तरह के रिस्क को घटाने में मददगार हो सकते हैं क्योंकि कॉपर पर वायरस ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकते हैं. (हालांकि ये स्टडी H1N1 और H9N2 इन्फ्लूएंजा वायरस पर की गई थी और इसे कॉपर मास्क के निर्माता, क्यूपरॉन में काम करने वाले रिसर्चर्स ने लिखी थी.)
मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में माइक्रोबायोलॉजी कंसल्टेंट डॉ सोनर नरूला बताती हैं कि मास्क को लेकर स्वास्थ्य एजेंसियों की गाइडलाइन में अलग से कॉपर वाले मास्क का जिक्र नहीं है.
विशेषज्ञों का कहना है कि ज्यादा जरूरी है कि लोग मास्क पहनें, सही तरीके से पहनें, जिससे नाक और मुंह अच्छी तरह से कवर हो, सही तरीके से मास्क का इस्तेमाल करें और हैंड हाइजीन का ख्याल रखें.
जिस तरह आमतौर पर हम कपड़े वाले दूसरे मास्क पहन रहे हैं, उसी तरह कॉपर वाले मास्क भी पहने जा सकते हैं, लेकिन इसका मतलब ये नहीं होना चाहिए कि हाथ धोने, फिजिकल डिस्टेन्सिंग और दूसरी सावधानियों को नजरअंदाज कर दिया जाए.
वहीं फिलहाल ये दावा भी नहीं किया जा सकता कि कॉपर वाले मास्क ज्यादा कारगर साबित होंगे. इस दिशा में और शोध किए जाने की जरूरत है.
अमेरिकी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक कोरोना को फैलने से रोकने के लिए दो या दो से अधिक लेयर वाला मास्क पहनना चाहिए.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) तीन लेयर वाले फैब्रिक मास्क की सलाह देता है:
मास्क का अंदरूनी लेयर जो चेहरे के सीधे संपर्क में आता है, वो हाइड्रोफिलिक मटेरियल का होना चाहिए. इसका मतलब है कि ऐसा मटेरियल जो सांस और मुंह से निकले ड्रॉपलेट को आसानी से एब्जॉर्ब कर सके, जैसे कॉटन.
वहीं बीच वाला लेयर फिल्टर की तरह काम करने वाला होना चाहिए. ये पॉलीप्रोपाइलीन फैब्रिक का स्ट्रिप होना चाहिए.
सबसे बाहरी लेयर हाइड्रोफोबिक मटेरियल का होना चाहिए यानी जो ड्रॉपलेट और नमी को रिपेल करे. ये सिंथेटिक मटेरियल जैसे पॉलीएस्टर या पॉलीएस्टर और कॉटन से मिले फैब्रिक से तैयार करना चाहिए.
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