कोरोना वायरस की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग का पालन दुनियाभर के लोग कर रहे हैं. लेकिन डेटिंग एप इस बीच युवाओं के लिए सबसे करीबी दोस्त बनकर सामने आया है.
आंकड़े कहते हैं कि अलग-अलग देशों में COVID-19 लॉकडाउन के बावजूद कई ऐप यूजर बेस में बढ़त दिख रही है. उदाहरण के लिए, डलास-बेस्ड मैच ग्रुप ने हाल ही में बताया कि टिंडर पर "डेली एक्टिव यूजर्स और डेली स्वाइप की संख्या सबसे ज्यादा रही."
इन दिनों डेटिंग, मिलना-जुलना मुमकिन नहीं लेकिन फिर भी इसके इस्तेमाल में बढ़त हुई है, क्योंकि बोरियत दूर करने और समय बिताने के लिए ये एक अच्छे ऑप्शन के तौर पर उभरा है. ‘वर्क फ्रॉम होम’ की तर्ज पर ‘डेटिंग फ्रॉम होम’ के लिए इन ऐप पर कई फीचर जोड़े गए हैं.
एक यूजर ने हमें बताया,
ऋचा की तरह डेटिंग ऐप का इस्तेमाल फन, टाइम पास या ‘लव्ड वन’ से मिलने का एक जरिया हो सकता है लेकिन क्या मेंटल हेल्थ पर भी इसका असर हो सकता है?
गुरुग्राम में फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियोरल साइंसेज डिपार्टमेंट हेड डॉ. कामना छिब्बर इस बारे में कहती हैं-
लो सेल्फ एस्टीम(आत्म सम्मान में कमी) कई मेंटल हेल्थ इशू के लिए रिस्क फैक्टर बन सकता है.
डॉ. कामना के मुताबिक इसके पीछे संभावित वजह ये हो सकती है कि अमूमन डेटिंग ऐप पर हम एक साथ कई लोगों से बात कर रहे होते हैं. एक बार में 10-15 लोगों से बातचीत के बावजूद अगर तालमेल नहीं बन पा रहा है तो वो काफी निराशा लेकर आती है. साथ ही कोरोना वायरस के दौर में आप किसी से फेस-टू-फेस मिल पाने में सक्षम नहीं हैं तो ये लो(Low) क्रिएट करता है.
‘सेंस ऑफ कंट्रोल’- किसी चीज पर काबू कर पाने की क्षमता में कमी नजर आती है.लोग इस समय पहले से ही तनाव महसूस कर रहे हैं और इस दौरान डेटिंग ऐप कई बार ‘सोर्स ऑफ स्ट्रेस’(चिंता का स्तोत्र) बन जा रहा है.
एक और डेटिंग ऐप यूजर ने अपना अनुभव हमारे साथ साझा किया. उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के शुरुआत से वो अकेली रह रही हैं. डेटिंग ऐप उन्हें अकेलापन दूर करने का एक अच्छा तरीका लगा लेकिन कुछ समय इस्तेमाल करने के बाद ही उन्हें महसूस हुआ कि वो इसपर ज्यादा वक्त बिता रही हैं. ऐप अनइंस्टॉल भी किया लेकिन कुछ दिनों बाद वो दोबारा इसका इस्तेमाल करने लगीं.
जाहिर सी बात है कि कोई दूसरा ऑप्शन नहीं मिलने पर लॉकडाउन के दौरान लोग इसका इस्तेमाल जारी रखना चाह रहे हैं.
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इन ऐप से यूजर्स में ‘फीलिंग ऑफ एंटिसिपेशन’(अनुमान की भावना) आती है जो यूजर्स को प्लेटफॉर्म से जोड़े रखती है. “दिमाग डोपामाइन रिलीज करता है- इस चाहत में कि उन्हें कुछ(रिवार्ड) मिलने वाला है. ये प्रभाव तब बढ़ जाता है जब एक मैच मिल जाता है.”
तो क्या लॉकडाउन के दौरान ऐप का इस्तेमाल हमें एडिक्टिव बना रहा है?
इस बारे में डॉ. कामना कहती हैं कि किसी चीज का एडिक्शन है या नहीं इसे जानने के लिए कई क्राइटेरिया होते हैं. ऐप के इस्तेमाल को लेकर हम नहीं कह सकते कि ये एडिक्शन पैदा करेगा. लेकिन अगर बाकी एक्टिविटी को छोड़कर सिर्फ इसपर फोकस करना नुकसानदेह हो सकता है.
कई मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर पहले से एंग्जायटी और डिप्रेशन से जूझ रहे हैं तो डेटिंग ऐप आपके मेंटल हेल्थ पर काफी असर डाल सकता है, अगर इसे हेल्दी तरीके से इस्तेमाल नहीं किया गया.
एक एक्सपर्ट लेख के मुताबिक, ऐप आपके मेंटल हेल्थ पर असर डाल रहा है या नहीं इसे कुछ लक्षणों से जान सकते हैं.
• साइकोलॉजिकल एंग्जायटी
जब आप ऐप पर लॉग ऑन करने वाले हों तो घबराहट महसूस होना.
• फिजिकल एंग्जायटी
जब आप ऐप का इस्तेमाल कर रहे हों तो हार्ट रेट का बढ़ना, मतली या टाइट चेस्ट.
• निगेटिव सेल्फ-टॉक
आपका आंतरिक संवाद निराशा या अस्वीकृति से भरा हो.
डॉ. कामना कहती हैं ऐप का बैलेंस इस्तेमाल आपको परेशानियों से दूर रख सकता है. इसके अलावा वो कहती हैं-
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