बुधवार को यूके के न्यूरोलॉजिस्ट्स ने COVID के असर को लेकर एक अहम रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में 40 COVID-19 मरीजों में COVID से गंभीर न्यूरोलॉजिकल यानी दिमागी समस्याओं के पैदा होने के खतरे के बारे चेताया गया है. ये सभी मरीज COVID के माइल्ड पेशेंट हैं.

डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना से ठीक होने वाले मरीज और जिन मरीजों में कोरोना के माइल्ड लक्षण हैं, उनको गंभीर और जानलेवा दिमाग की बीमारी हो सकती है. रिपोर्ट में दिमाग में जलन-सूजन, भ्रम, नर्व डैमेज और स्ट्रोक होने की संभावना जताई गई है.

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) एक्सपर्ट की ये रिपोर्ट कोरोना के माइल्ड लक्षण वाले मरीजों के इलाज को लेकर एक अलर्ट है, जिनका अक्सर घर पर कम देखरेख या निगरानी के साथ इलाज किया जाता है.
“हमें सतर्क रहना चाहिए और इन जटिलताओं के लिए उन मरीजों को गंभीरता से देखना होगा जिन्हें COVID है या था.”
डॉ. माइकल जैंडी, जॉइंट सीनियर ऑथर

जर्नल ब्रेन में छपी रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि मरीजों में एक्यूट डिस्सेमिनेटेड एन्सेफलाइटिस (ADEM) की स्थिति पैदा हो रही है, जो जानलेवा हो सकती है. यूसीएल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी में ADEM के मामले महामारी शुरू होने के एक महीने पहले से शुरू हुए और अप्रैल और मई के दूसरे और तीसरे हफ्ते तक रहे.

10 मरीजों में बेहोशी और पागलपन जैसी बीमारी देखने को मिली. 8 मरीजों में स्ट्रोक, 12 मरीजों में दिमाग में जलन-सूजन और 8 मरीजों में नर्व डैमेज की समस्या देखने को मिली.

इन मामलों की वजह से कोरोना वायरस के लंबे समय तक रहने को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. कोरोना वायरस की वजह से कुछ मरीजों को सांस लेने में परेशानी हो रही है, तो कुछ मरीज सुन्न पड़ जा रहे हैं. कुछ मरीजों में कमजोरी और याददाश्त की समस्या देखी जा रही है.

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कुछ मरीजों में ‘गिलेन-बैर सिंड्रोम’ (Guillain-Barré syndrome) पाया गया. ये एक इम्युन रिएक्शन है जो नसों को हिट करती है और लकवा का कारण बनती है. ये 5% मामलों में घातक है. मरीजों की उम्र 16 से 85 के बीच थी. वहीं, एक महिला मरीज को अपने घर में शेरों और बंदरों को दिखने का भ्रम हुआ. एक गंभीर मरीज मुश्किल से होश में रह पा रहा था, वो सिर्फ दर्द में जवाब दे पा रहा था. 

हालांकि, रिसर्चर्स अभी भी ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि कोविड-19 मरीजों में ये दिमागी समस्या क्यों दिख रही हैं. वायरस उनके ब्रेन फ्लूड में नहीं पाया गया, यानी इससे पता चलता है कि ये सीधे दिमाग को प्रभावित नहीं करता है.

ये निष्कर्ष दुनिया भर के डॉक्टरों को नए लक्षणों के साथ परिचित करने और उसके मुताबिक मरीजों का निरीक्षण करने और उनका इलाज करने में अहम भूमिका निभा सकता है. उन मरीजों के लिए जो सांस लेने में परेशानी जैसी गंभीर लक्षण नहीं दिखा रहे हैं, शुरुआती स्टेज में उनमें इन दिमागी जटिलताओं का पता लग पाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है.

रिपोर्ट में लेखकों ने सुझाव दिया है कि ये समझने के लिए आगे की स्टडी ‘जरूरी' है जिसमें पता लगाया जा सके कि वायरस दिमाग को नुकसान पहुंचाने का कारण कैसे बनता है, और इससे कैसे निपटा जाए.

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