"अगर हम सिर्फ अपने लिए जीते हैं तो हमारे और जानवरों के बीच क्या अंतर है?"
नैन्सी दलाल, इमरजेंसी डिपार्टमेंट में स्टाफ नर्स, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की नेशनल रजिस्ट्री के मुताबिक COVID-19 की वजह से 747 डॉक्टर्स ने जान गंवाई है. नर्स और बाकी फ्रंटलाइन वर्कर्स को लेकर कोई स्पष्ट डेटा मौजूद नहीं है. नर्स डे 2021 पर सुनिए इन 'कोविड फरिश्ते' नर्सेज की कहानी जो सामने से इस लड़ाई को लड़ रहीं हैं.

"नर्स जो COVID मरीजों के लिए परिवार की तरह बन गईं"

नैन्सी एक घटना को याद करती हैं कि कैसे उन्हें लोगों की घबराहट का एहसास होता है और वो उनकी मदद करती हैं.

“कुछ दिनों पहले, एक महिला अपने मरीज पति के साथ हमारे पास आई. मरीज के शरीर में SpO2 -ऑक्सीजन लेवल कम था और वो महिला बहुत चिल्ला रही थी- "आप आरटी-पीसीआर क्यों नहीं कर रहे हैं? आप उसके ऑक्सीजन लेवल की जांच क्यों नहीं कर रहे हैं?"

मैंने इसे सहन किया और चुपचाप अपना काम किया. फिर मैंने कहा, "मैम आइए हम उनके ऑक्सीजन की जांच करते हैं, हम आरटी-पीसीआर भी करेंगे. कृपया घबराएं नहीं."

वो कहने लगी कि "तुम पैसा कमाने के लिए ऐसा कर रहे हो. लेकिन मैंने उनका दर्द समझा. "

"मेरी बहन की मौत 2-3 महीने पहले ही हुई थी. मैंने अपना दर्द छुपाया और अपनी मौत के 3 दिन बाद ड्यूटी पर लौटी थी."
नैन्सी दलाल, इमरजेंसी डिपार्टमेंट में स्टाफ नर्स, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

वो कहती हैं, “कुछ सेकेंड बाद, वो बुरी तरह से रोने लगी और कहने लगी कि मुझे बहुत खेद है, मैंने बहुत बुरा व्यवहार किया." मैंने उससे कहा कि मैं उसकी स्थिति को समझ गई क्योंकि हम भी उस डर को महसूस करते हैं.

नैंसी एक गुजारिश करती हैं- "नर्सें जिस दबाव में काम करती हैं, वो काफी ज्यादा है, कृपया सुरक्षित रहें और नर्सों के साथ अच्छा व्यवहार करें!"

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मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल की एक स्टाफ नर्स नेहा देथे कहती हैं, “पहली लहर के दौरान, COVID-19 डरावना था. सब कुछ नया था. COVID-19 मरीजों की देखरेख, पीपीई पहनना, हमें बहुत ज्यादा मेंटल सपोर्ट की जरूरत थी. हमारा सोने, खाने और नींद का पैटर्न बदल गया था. इससे हमारे स्वास्थ्य पर असर पड़ा. लेकिन फिर भी, हमने पहली लहर को कंट्रोल किया.”

“दूसरी लहर ज्यादा गंभीरता के साथ आई है. हर कोई प्रभावित हो रहा है, ज्यादा गंभीर मामले हैं और ज्यादा मौतें हो रही हैं. ये सब हमारे लिए बहुत निराशा भरा है कि भारी कोशिश के बावजूद हम इस लहर को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं. एक मरीज की मौत हो रही होती है और अगला ज्यादा गंभीर हो रहा होता है. इसे मैनेज करना बहुत मुश्किल है. हमारे पास पर्याप्त आपूर्ति या मैनपावर नहीं है.”
नेहा देथे, स्टाफ नर्स, जसलोक हॉस्पिटल, मुंबई

वो कहती हैं- फिर भी, जब मरीज आईसीयू से निकलते हैं तब एक 'आशा की किरण' नजर आती है, जो कर्मचारियों को और ज्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित करता है. इस तरह काम करने से मदद मिली है और हम (मुंबई में) अब बहुत बेहतर जगह पर हैं."

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