डायबिटीज (Diabetes) को कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों यानी हृदय और रक्त वाहिकाओं से जुड़े विकारों का एक प्रमुख जोखिम कारक माना जाता है. जिन लोगों को डायबिटीज नहीं है, उनकी तुलना में डायबिटिक लोगों को दिल की बीमारियां होने का दोगुना जोखिम होता है.
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन डायबिटीज को कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के उन मुख्य जोखिम कारकों में से एक बताता है, जिन्हें कंट्रोल किया जा सकता है.
डायबिटीज और हार्ट डिजीज के बीच क्या कनेक्शन है और डायबिटीज के रोगी आमतौर पर हृदय रोग से पीड़ित क्यों होते हैं? दिल को दुरुस्त रखने के लिए डायबिटिक लोग क्या कर सकते हैं, ये समझने के लिए फिट ने मुंबई स्थित एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट के सीनियर इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. तिलक सुवर्णा और सीनियर कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. संतोष कुमार डोरा से बात की.
डॉ. तिलक सुवर्णा कहते हैं कि डायबिटीज का सिर से लेकर पैर तक शरीर के किसी भी अंग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है, हालांकि दिल डायबिटीज से डैमेज होने वाले सबसे अहम अंगों में से एक है.
डॉ. सुवर्णा बताते हैं कि डायबिटीज हार्ट को कई तरीकों से प्रभावित कर सकता है:
डायबिटीज में इंसुलिन प्रतिरोध के परिणामस्वरूप कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स का उत्पादन बढ़ जाता है, जिससे एथेरोस्क्लेरोसिस का रिस्क बढ़ता है, जिससे हृदय की धमनियों संकरी हो जाती हैं.
डायबिटीज के कारण ब्लड क्लॉटिंग की टेंडेन्सी बढ़ती है, जिसके परिणामस्वरूप दिल का दौरा पड़ सकता है.
डायबिटीज से दिल की कोशिका संरचना और कार्य में भी गड़बड़ी हो सकती है, जिससे हृदय का आकार बढ़ जाता है और हार्ट की पंपिंग क्रिया कम हो जाती है, इस स्थिति को डाइलेटेड कार्डियोमायोपैथी के तौर पर जाना जाता है. यह स्थिति अंततः हार्ट फेल की ओर ले जाती है.
डॉ. संतोष कुमार डोरा डायबिटिक लोगों को कम उम्र में कार्डियोवैस्कुलर बीमारियां होने की बात कहते हैं, जिसमें कोरोनरी धमनी रोग, सेरेब्रोवैस्कुलर रोग (ब्रेन में ब्लड वेसल और ब्लड फ्लो को प्रभावित करने वाली स्थितियां) और पेरिफेरल वैस्कुलर डिजीज (संकुचित ब्लड वेसल के कारण हाथ और पैर की ओर ब्लड फ्लो में कमी) शामिल हैं.
डॉ. डोरा के मुताबिक डायबिटीज ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम को भी प्रभावित कर ऑटोनॉमिक डिस्फंक्शन की ओर ले जा सकती है. ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम पेरिफेरल नर्वस सिस्टम का भाग है, जो हार्ट रेट, ब्लड प्रेशर, श्वसन, पाचन और यौन उत्तेजना सहित अनैच्छिक शारीरिक प्रक्रियाओं को नियंत्रित करता है.
सबसे जरूरी ये है कि डायबिटिक लोग ब्लड शुगर लेवल को अच्छी तरह से कंट्रोल करें.
इसके लिए डाइट कंट्रोल, एक्सरसाइज और जरूरत पड़ने पर दवाइयां लेनी होती है. डायबिटीज पर अच्छी तरह से नियंत्रण से कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों का जोखिम घटाने में मदद मिलती है.
डॉ. डोरा कहते हैं,
उनके मुताबिक यूं तो 40 की उम्र के बाद सभी को समय-समय पर हेल्थ चेकअप कराने चाहिए, लेकिन कार्डियोवैस्कुलर डिजीज के रिस्क फैक्टर वाले लोगों को खासतौर पर डायबिटीज वालों को यंग एज से ही हेल्थ चेकअप कराने चाहिए.
इससे मौजूदा कार्डियोवैस्कुलर बीमारी की जल्द पहचान की जा सकती है और जटिलताएं बढ़ने से पहले जरूरी उपाय और इलाज शुरू किया जा सकता है.
डॉ. सुवर्णा कहते हैं कि डायबिटीज का सही कारण ज्ञात नहीं है. यह संभवतः आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों की परस्पर क्रिया का परिणाम है. टाइप 2 डायबिटीज की शुरुआत को रोकने या डिले करने में लाइफस्टाइल से जुड़े उपाय प्रभावी पाए गए हैं.
शारीरिक रूप से सक्रिय रहना- कम से कम 30 से 45 मिनट की नियमित, मध्यम-तीव्रता वाली गतिविधि करना महत्वपूर्ण है.
हेल्दी खाना- डायटिशियन की मदद से डायबिटीज मील प्लान बनाएं और उस पर टिके रहें. सब्जियां और फल, साबुत अनाज, कम वसा और कम कैलोरी वाला आहार चुनें. चीनी और मिठाई से परहेज करें.
हेल्दी वेट बनाए रखना महत्वपूर्ण है.
तंबाकू से परहेज करें क्योंकि स्मोकिंग से डायबिटीज और दिल की बीमारियों का रिस्क बढ़ता है.
डायबिटीज की स्थिति का जल्द पता चलना महत्वपूर्ण है ताकि खतरनाक जटिलताओं को रोकने के लिए उचित उपचार शुरू किया जा सके. इसका पता करने के लिए ब्लड शुगर टेस्ट कराने की जरूरत होती है.
डायबिटीज का पता चलते ही डॉक्टर से कंसल्ट कर तुरंत इसका ट्रीटमेंट शुरू कर देना चाहिए. डॉ. तिलक सुवर्णा कहते हैं कि डायबिटीज मैनेजमेंट के लिए लाइफस्टाइल में बदलाव के साथ मेडिकल मदद की जरूरत होती है:
ओरल एंटीडायबिटिक दवाएं- ये मुंह से ली जाने वाली दवाएं होती हैं और जो कई तरीकों से ब्लड शुगर लेवल को कम करती हैं.
इंसुलिन- ट्रीटमेंट की शुरुआत (तेज या धीमी), ट्रीटमेंट की अवधि (छोटी या लंबी) और डिलीवरी के तरीके (सुई और सिरिंज, पेन, पंप, इनहेलर या इंजेक्शन पोर्ट) के आधार पर कई तरह के इंसुलिन उपलब्ध हैं.
अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल की नियमित रूप से निगरानी करना डायबिटीज मैनेजमेंट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. ब्लड ग्लूकोज मॉनिटरिंग के नतीजे आपको भोजन, शारीरिक गतिविधि और दवाओं के बारे में निर्णय लेने में मदद कर सकते हैं. घर पर अपने ब्लड ग्लूकोज लेवल की जांच करने का सबसे आम तरीका ब्लड ग्लूकोज मीटर है.
लगातार ग्लूकोज मॉनिटरिंग के लिए स्किन पर लगाने वाला एक छोटा सा सेंसर भी आता है, जो पूरे दिन और रात में ग्लूकोज के स्तर को मापता है और बहुत अधिक या बहुत कम ग्लूकोज लेवल की अवधि या एपिसोड का पता लगाने में मदद करता है, ताकि उचित सुधारात्मक उपाय किया जा सकें.
डायबिटीज भले ही एक जटिल बीमारी है, लेकिन थोड़े से अनुशासन के साथ डायबिटीज को मैनेज करना और इसके कारण दिल को होने वाले नुकसान का जोखिम घटाना संभव है.
(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी बीमारी के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा. स्वास्थ्य से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए फिट आपको डॉक्टर से संपर्क करने की सलाह देता है.)
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Published: 13 Nov 2021,11:25 PM IST