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Doctors day: कौन थे डॉ. बिधान चंद्र रॉय, जिनके लिए मनाया जाता है डॉक्टर्स डे?

Doctors Day: हर साल 1 जुलाई को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) द्वारा डॉक्टर्स डे मनाया जाता जाता है.

अस्तित्व झा
Fit Hindi
Published:
<div class="paragraphs"><p>National Doctor's Day 2023</p></div>
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National Doctor's Day 2023

(फोटो:फिट हिंदी) 

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1 जुलाई का दिन देश के स्वास्थकर्मिर्यों को सम्मान देने के लिए डॉक्टर्स डे के रूप में हर साल मनाया जाता है. नेशनल डॉक्टर्स डे (National Doctors day) का आयोजन हर साल इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) के द्वारा उन डॉक्टर्स को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है, जो दिन रात मानवता के लिए काम करते हैं.

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) क्या है?  

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन एक संगठन है, जो देशभर के डॉक्टर्स की भलाई के लिए काम करता है. इसकी स्थापना सन् 1928 में हुई थी. (IMA) का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है.

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समाज में डॉक्टर्स की भूमिका अहम होती है. डॉक्टर्स लोगों की जान बचाने के लिए बखूबी अपना फर्ज अदा करते हैं. वैश्विक महामारी के दौरान डॉक्टर्स ही हर किसी की उम्मीद थे.

अपनी जिंदगी को जोखिम में डालकर भी लाखों डॉक्टर्स ने मिलकर कोविड के दौरान करोड़ो लोगों की जान बचाई. कोरोना महामारी के दौरान कई डॉक्टर ने मरिजों का उपचार करते हुए अपनी जान गंवा दी.

पहली बार डॉक्टर्स डे कब मनाया गया?

भारत में पहली बार डॉक्टर्स डे सन् 1991 में डॉ बिधान चंद्र रॉय को सम्मानित करने के लिए मनाया गया था, जिन्होंने चित्तरंजन कैंसर अस्पताल और चित्तरंजन सेवा सदन जैसे संस्थानों की स्थापना की थी. तब से हर साल उन्हीं की याद में डॉक्टर्स डे मनाया जाता है.

 कौन थे डॉ. बिधान चंद्र रॉय ?

बिधान चंद्र रॉय की तस्वीर 

(फोटो - क्विंट)

सन् 1882 में बिधान चंद्र रॉय का जन्म पटना में हुआ. उन्होनें पहले गणित में स्नातक की डिग्री हासिल की फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से चिकित्सा की पढ़ाई की. उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए लंदन के बारथोलोम्यू अस्पाताल गए, लेकिन एशियाई मूल का होने की वजह से उन्हें दाखिला नहीं मिला. इसके बाद उन्होनें हार नहीं मानी और 30 बार के प्रयास के बाद आखिरकार उनका दाखिला सुनिश्चित हुआ.

जिस व्यक्ति को लंदन के प्रतिष्ठीत कॉलेज में दाखिला नहीं मिला था, उन्हें ही बाद में रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियन का सदस्य चुना गया. लंदन में डॉक्टरी की पढ़ाई पूरी करने बाद वे भारत लौट गए. भारत वापसी के बाद उन्होनें स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई.

सन् 1925 से उन्होनें अपनी राजनैतिक यात्रा की शुरूआत की. 1947 में भारत के आजादी के बाद सन् 1948 में बंगाल के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण किया. सन् 1961 में उन्हें चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के भारत रत्न से नवाजा गया. सन् 1962 में उनका देंहात हो गया था.

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