जिस समय आप इस आर्टिकल को पढ़ रहे हैं, मुमकिन है कि अपने कानों पर आपने इयरफोन लगा रखा हो. और अगर आप ऐसा करते हैं, तो मैं शर्त लगा सकती हूं कि वो वॉल्यूम के 80 फीसद से ऊपर होगा. लेकिन भला किसको दोषी ठहराएं? आसपास तो सभी लोग शोर मचा रहे हैं!

आप जिस पर चाहें दोष मढ़ें; नुकसान में तो आप ही हैं. जब भी आप अपना मनपसंद म्यूजिक चिल्लाहट भरे ऊंचे वॉल्यूम पर सुनते हैं, तो आप अपनी सुनने की क्षमता का एक अंश गंवा रहे होते हैं.

किशोर और युवाओं में, लगभग 50 फीसद लोग पर्सनल ऑडियो डिवाइस के माध्यम से साउंड को असुरक्षित स्तर पर सुनते हैं. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार, मनोरंजन उपकरणों के माध्यम से साउंड के संपर्क में आने से 1.1 अरब युवाओं (12-15 वर्ष की आयु) को हियरिंग लॉस (सुनने की क्षमता में कमी) का खतरा है.

खतरा सामने खड़ा है. लेकिन इसे 100 फीसद टाला भी जा सकता है. आइए समझते हैं कैसे.

कितना शोर बहुत ज्यादा शोर है?

हालात को समझने के लिए बता दें कि सामान्य बातचीत 60-65 डेसिबल के बीच होती है. 75-80 डेसिबल से ऊपर कोई भी स्तर नुकसानदायक माना जा सकता है. लेकिन आपके इयरफोन या हेडफोन का अधिकतम वॉल्यूम 120 डेसिबल तक होता है- जिस स्तर पर सुनने से 2 मिनट से भी कम समय में हियरिंग लॉस संभव है!

(कार्ड: आर्णिका काला / फिट)

फोर्टिस गुरुग्राम में इयर नोज एंड थ्रोट के निदेशक डॉ अतुल कुमार मित्तल ने फिट से बातचीत में बताया कि इस तरह के मामलों की संख्या बढ़ गई है. “हियरिंग लॉस के बहुत सारे अनजाने मामले हैं. इनमें से अधिकांश मामलों में, मरीज सुनने की परेशानी को लेकर नहीं आते हैं. रेगुलर चेकअप के दौरान उनकी समस्या पकड़ में आती है. जब हम उनकी स्क्रीनिंग करते हैं, तो हाई वॉल्यूम के कारण होने वाले नर्व डैमेज का पता चलता है. ये मामले चिंताजनक रफ्तार से बढ़ रहे हैं.”

शोर के कारण हियरिंग लॉस आमतौर पर क्रमिक होता है, बशर्ते कि हाई इंटेंसिटी ट्रॉमा की स्थिति न हो, जैसे कि आप किसी कार्यक्रम में स्पीकर के बहुत पास हों.
डॉ अतुल कुमार मित्तल

मसला इतना ही नहीं है. इन मामलों में बढ़ोतरी के साथ, सुनने में समस्या का अनुभव करने वाले आयु समूहों में भी बदलाव आया है. जसलोक हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में ईएनटी के निदेशक डॉ गौरव चतुर्वेदी बताते हैं, “पहले, हमारे पास 60-80 आयु वर्ग के मरीज आते थे. अब, युवा और किशोर भी इस समस्या के साथ हमारे पास आते हैं. यह रुझान और बढ़ने की आशंका है.”

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बहरेपन के शुरुआती लक्षण क्या हैं?

कान के अंदरूनी हिस्से, जिसे कोक्लीअ (कर्णावर्त) कहा जाता है, में सूक्ष्म हेयर सेल्स होती हैं, जिनका काम ब्रेन को साउंड मैसेज भेजना होता है. जब कोई आवाज बहुत तेज होती है, तो ऑडिटरी नर्व और हेयर सेल्स के फाइबर पर असर पड़ता है- इसके कारण धीरे-धीरे, लेकिन सुनने में ठीक नहीं होने वाला नुकसान होता है.

(कार्ड: आर्णिका काला / फिट)

डॉ चतुर्वेदी बताते हैं, "सबसे आम संकेतों में से एक है, कान में रिंगिंग सेनसेशन, जिसे ‘टिनिटस’ भी कहा जाता है. यह अस्थायी या स्थायी हो सकता है. कई बार, यह खुद ही ठीक हो जाता है और कान में हेयर सेल्स रिकवरी मोड में आ जाती हैं. हालांकि, अगर हियरिंग लॉस हो गया है, तो यह ठीक नहीं किया जा सकता है. ऐसे मामलों में हेयर सेल्स को पुनर्जीवित करना मुश्किल है."

हालांकि यह चिंताजनक स्थिति है कि ईयरड्रम को नुकसान अक्सर स्थाई होता है. लेकिन यहां एक अच्छी खबर भी है- यह पूरी तरह रोका जा सकता है.

बहरेपन से बचाव के लिए क्या करें?

जब हमने विशेषज्ञों से पूछा कि यह कैसे रोका जा सकता है, तो उनकी पहली सलाह बहुत सीधी और सरल है- वॉल्यूम कम रखें! वे 60-60 नियम का हवाला देते हैं, जो बताता है कि ऑडियो का अधिकतम वॉल्यूम 60 प्रतिशत पर सुनने की कोशिश करनी चाहिए और एक बार में 60 मिनट से अधिक नहीं सुनना चाहिए.

(कार्ड: आर्णिका काला / फिट)

एक और सुझाव इयरबड इयरफोन की बजाए कान के ऊपर वाले हेडफोन इस्तेमाल करने का है. वर्ष 2007 के एक अध्ययन में पाया गया है कि लोग अपने म्यूजिक की आवाज तब तेज कर लेते हैं, जब वे इयरबड हेडफोन लगाए होते हैं.

इस मामले में सुनने वाले साउंड की किस्म व स्रोत और इयरड्रम से दूरी महत्वपूर्ण है. इयरबड इयरफोन के मामले में दूरी न्यूनतम होती है. आप खासकर तब वॉल्यूम बढ़ाते हैं, जब इनमें नॉयज-कैंसिलेशन फीचर नहीं होता और साउंड सीधे आपके कान में पहुंचता है. हम इसी कारण ओवर-द-हेड इयरफोन की सलाह देते हैं. लेकिन बचाव का सबसे अच्छा उपाय वॉल्यूम को 50-60% तक रखना है.
डॉ गौरव चतुर्वेदी

वह नॉयज-कैंसिलेशन वाले इयरफोन इस्तेमाल करने का भी सुझाव देते हैं, जो बैकग्राउंड के शोर को कम करने के लिए वॉल्यूम बढ़ाने की जरूरत को खत्म करता है.

दिलचस्प बात ये है कि डॉ अतुल मित्तल एक्सरसाइज या जॉगिंग करते समय भी ईयरफोन का इस्तेमाल नहीं करने की सलाह देते हैं क्योंकि ऐसे में ब्लड के तेज बहाव के चलते कानों की नसों को नुकसान का जोखिम बढ़ जाता है. वह कहते हैं, “अगर आपको सर्दी या खांसी है और कान में रुकावट है, तो मिडल इयर में फ्लूइड जमा हो जाता है. जब आप ऐसे समय में इयरफोन का इस्तेमाल करते हैं, तो आप बेहतर सुनने के लिए वॉल्यूम तेज कर देते हैं.”

तो अब अंत में यही कहना है कि, अब आप सुरक्षा के तौर-तरीके जान चुके हैं. वॉल्यूम कम रखें, शोर वाली गतिविधियों में लगने वाले समय को सीमित करें, नियमित जांच कराएं और इयरफोन के ज्यादा इस्तेमाल की भरपाई कुछ नो-ईयरफोन वाले दिनों से करें. यह सब करें और अपने कानों को सुनने के लिए कुछ और साल दें!

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Published: 03 Feb 2020,10:00 AM IST

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