सोशल मीडिया पर स्वतंत्रता दिवस के आसपास एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें 5 भारतीय लोगों का एक ग्रुप फेस मास्क जलाता दिख रहा है. वीडियो में शामिल युवा मास्क को COVID-19 के खिलाफ अप्रभावी बता रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि ये शरीर में कार्बन डाइऑक्साइड विषाक्तता को बढ़ाता है.
इस कंडीशन को हाइपरकेपनिया या हाइपरकार्बिया कहते हैं.
उस वीडियो के अलावा, सोशल मीडिया पर हमें इससे मिलता-जुलता एक ट्रेंड दिखा जिसमें लोग एक-दूसरे को मास्क जलाते हुए वीडियो बनाने के लिए नॉमिनेट कर रहे हैं. कई ऐसे वीडियो यू-ट्यूब पर मौजूद हैं. इन वीडियो में कोरोना वायरस को सरकार की एक साजिश बताई गई है. बाकायदा ‘मास्क जलाओ, आजादी पाओ’ नाम से एक कैंपेन डिजाइन किया गया है.
लेकिन क्या मास्क को लेकर किए जा रहे दावे सही हैं? क्या मास्क पहनने से हाइपरकार्बिया जैसे कंडीशन या अन्य सांस की बीमारी हो सकती है? फिट ने इस बारे में पड़ताल की और विशेषज्ञों से जाना.
लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर ट्रस्टी डॉ अरविंद कुमार ने फिट से बातचीत में बताया कि जब 8 घंटे तक लगातार मास्क लगाए रहें, खासकर N95 या N99 मास्क तो कार्बन डाईऑक्साइड लेवल में 2-4% की मार्जिनल बढ़त होती है. ये सर्जरी करने वाले डॉक्टर्स को हो सकता है. वो N95 के ऊपर सर्जिकल मास्क का एक एक्स्ट्रा लेयर लगा कर काम करते हैं. लेकिन एक आम आदमी ट्रिपल लेयर मास्क या सर्जिकल मास्क का इस्तेमाल करे तो नॉर्मल वर्किंग कंडीशन में हाइपरकेपनिया नहीं होता.
फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ ऋचा सरीन इसे कुछ इस तरह से समझाती हैं-
वीडियो में दावा किया गया कि मास्क कोविड के खिलाफ प्रभावी नहीं हैं.
डॉ अरविंद कुमार कहते हैं दुनियाभर में सैकड़ों रिसर्च किए गए हैं कि मास्क का कोरोना वायरस के फैलाव या रोकथाम में क्या रोल है?
डॉ अरविंद उदाहरण से समझाते हैं- “अगर मैं संक्रमित हूं और एक स्वस्थ इंसान के साथ टेबल पर आमने-सामने फिटिंग N95 मास्क लगाकर बैठा हूं तो मेरा 95% एयरोसोल मास्क के अंदर रुक जाता है. 5% जो निकल भी जाता है, उसकी वेलोसिटी कम हो जाती है और वो मास्क के बाहर ही कहीं गिरती है. 1 मीटर की दूरी पर बैठे व्यक्ति तक वो नहीं पहुंचेगा. अगर सामने वाले व्यक्ति ने मास्क पहना है तब वो और भी सुरक्षित है क्योंकि वायरल पार्टिकल उसके मास्क की सतह पर रुक जाएगा. सर्जिकल मास्क, कपड़े का मास्क भी ऐसे ही सुरक्षा देती हैं लेकिन डिग्री कम हो जाती है.”
वो कहते हैं - “इसलिए हेल्थकेयर वर्कर्स को N95 पहनने की सलाह जी जाती है क्योंकि उनके आसपास संक्रमित लोगों की संख्या ज्यादा हो सकती है.”
डॉ ऋचा कहती हैं कि मास्क से अनकंफर्टेबल महसूस कर सकते हैं लेकिन कोई खतरा नहीं हो सकता. ब्रॉन्काइल अस्थमा हो, क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज(COPD) हो, लंग कमजोर हो तो उन मरीजों को सांस लेने में दिक्कत हो सकती है.
डॉ अरविंद कहते हैं कि मास्क लगाकर दौड़ने, एक्सरसाइज करने से दिक्कत हो सकती है इसलिए इस दौरान मास्क पहनने की सलाह डॉक्टर नहीं देते हैं. दौड़, एक्सरसाइज करते समय ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ती है और शरीर के अंदर कार्बन डाईऑक्साइड का प्रोडक्शन बढ़ता है.
आमतौर पर हम एक मिनट में 14-16 बार सांस लेते हैं. एक्सरसाइज करने या तेज दौड़ने पर ये 35 तक जाता है. कभी-कभी ये रेट 45 तक भी जा सकता है. ऑक्सीजन और कार्बन डाईऑक्साइड लेवल को मेंटेन करने के लिए शरीर इसे खुद रेगुलेट करता है.
‘मास्क जलाओ, आजादी पाओ’ टाइटल से पोस्ट किए गए यू-ट्यूब वीडियो में ये दावा किया गया था कि मास्क पहनने से इम्युनिटी कम होती है और ऑक्सीजन की कमी हो जाती है. डॉ अरविंद इसे पूरी तरह खारिज करते हैं और कहते हैं कि इस दावे का कोई साइंटिफिक बेसिस नहीं है.
हालांकि ये वीडियो अब यू-ट्यूब से ‘कम्युनिटी गाइडलाइंस’ के तहत हटा लिया गया है. साथ ही वायरल ग्रुप वीडियो भी सोशल मीडिया से हटा लिया गया है. लेकिन ऐसे तमाम दावे करने वाले बाकी वीडियो अब भी यू-टयूब पर अपलोड हो रहे हैं.
इस वीडियो में ये कहा गया था कि ऐसी कोई स्टडी नहीं की गई है जिसमें मास्क पहनने और नहीं पहनने वाले 2 ग्रुप की तुलना की गई हो और साबित किया गया हो कि मास्क कोरोना वायरस से बचाने में कारगर हैं.
डॉ ऋचा इसे बेतुका बताती हैं और कहती हैं कि ऐसी स्टडी इसलिए नहीं कि जा सकती क्योंकि किसी व्यक्ति के स्वास्थ्य के साथ जोखिम नहीं उठाया जा सकता. स्टडी के लिए एथिकल क्लीयरेंस जरूरी है. एक व्यक्ति मास्क पहने और एक व्यक्ति मास्क न पहने और उन्हें वायरस से एक्सपोज किया जाए- इस स्थिति के लिए कोई तैयार नहीं हो सकता. स्टडी के लिए सहमति जरूरी है. स्टडी लोगों के वेलफेयर के लिए की जाती हैं, नुकसान के लिए नहीं.
डॉ अरविंद कहते हैं कि जापान, कोरिया जैसे देश में जिस कम रेट से कोरोना वायरस फैला है उसकी एक वजह मास्क का मास कंजम्पशन है. वहां लोग पहले से इसका इस्तेमाल करते आए हैं. मास्क से बचाव प्रमाणित है.
इसलिए इन भ्रम फैलाने वाले वीडियो पर रोक जरूरी है.
“जब तक असरदार वैक्सीन नहीं आती, मास प्रोडक्शन के बाद ये पब्लिक को लगाई जाए और उससे वाकई एंटीबॉडी बनने लगे. तब तक सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क और हैंड हाइजीन ही कोरोना वायरस से बेहतर और असरदार बचाव है.”
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