अमेरिका के खाद्य और औषधि प्रशासन(FDA) ने 15 जून के अपने आदेश में कोरोना वायरस के इलाज के लिए आपात स्थिति में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है.
‘चमत्कारी दवा’ कही जाने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के क्लीनीकल ट्रायल को लेकर सबूत मिल रहे हैं कि ये दवा कोरोना वायरस के मरीजों पर कोई भी सकारात्मक असर नहीं दिखा रही है. ट्रंप प्रशासन ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की बड़ी खेप भारत से मांगी थी. भारत इस दवा के प्रमुख उत्पादकों में से एक है.
दिल की बीमारी से जुड़ी रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए FDA ने वेबसाइट पर लिखा है कि इस दवा के सेवन से लाभ की तुलना में मरीजों को खतरा ज्यादा है.
इन दवाओं का मलेरिया और कुछ ऑटोइम्यून बीमारियों के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें ल्यूपस और रुमेटीइड अर्थराइटिस शामिल हैं.
पोलिटिको की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के स्वास्थ्य एजेंसियों और विशेषज्ञों ने हमेशा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल के फैसले की आलोचना की है, जो संभवतः राजनीतिक दबाव में एफडीए द्वारा लिया गया था और अपर्याप्त साक्ष्य पर आधारित था. हाल के ट्रायल्स में कोरोना मरीजों को इससे फायदा पहुंचता नहीं दिखा और साथ ही दवा के इस्तेमाल से नुकसान के सबूत पाए गए हैं.
पोलिटिको की रिपोर्ट में लिखा गया है, “महामारी के शुरुआती महीनों में मलेरिया की दवाओं पर प्रशासन के फोकस ने व्हाइट हाउस और उसकी स्वास्थ्य एजेंसियों के बीच खाई को और गहरा कर दिया. कई प्रशासनिक अधिकारियों ने पोलिटिको को बताया कि बाकी कारगर हो सकने वाली दवाओं पर ध्यान नहीं गया, जबकि एफडीए मार्च में समाधान ढूंढ रही थी.”
वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा था कि इस दवा की खराब छवि इसलिए बनाई गई क्योंकि वो इसका प्रचार कर रहे थे.उन्होंने कहा कि जाहिर तौर पर मैं बहुत खराब प्रचारक हूं. अगर कोई और इसका प्रचार कर रहा होता तो वे कहते कि ये बहुत अच्छी दवा है.
25 मई को वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) ने भी ट्रायल पर रोक लगा दी थी. WHO की ओर से लैंसेट जर्नल में कोरोना मरीजों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन के असर को लेकर पब्लिश की गई ऑब्जरवेशनल स्टडी का हवाला दिया गया था. इस स्टडी के मुताबिक ये दवा लेने वाले COVID-19 के मरीजों की मौत की आशंका ज्यादा रही.
रोक के बाद ICMR ने WHO के आकलन से असहमति जताते हुए जवाब दिया था और भारतीय और अंतरराष्ट्रीय परीक्षणों के बीच खुराक के मानकों में अंतर का हवाला दिया था.
5 जून को द लैंसेट ने भी अपनी उस स्टडी को वापस ले लिया था.
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