(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से संपर्क करने की सलाह देता है.)

कुछ शब्दों के साथ अपने-आप ही नकारात्मक अर्थ जुड़ जाते हैं, और बैक्टीरिया इनमें से एक है. जैसे ही आप इस शब्द को सुनते या पढ़ते हैं, आपको जर्म्स और बीमारी का ख्याल आता है. वैसे यह रवैया समझ में आता है क्योंकि ये बहुत सी बीमारियों की वजह बनते हैं, जिनमें से कुछ खतरनाक भी हैं.

हालांकि कुछ अलग तरह के बैक्टीरिया भी हैं, जो असल में अच्छे होते हैं. ये बैड बैक्टीरिया (bad bacteria) से लड़ने सहित कई तरीकों से हमारी मदद करते हैं.

ऐसा लगता है कि हमारे शरीर में कोई दिलचस्प मूवी चल रही है न! यह तब और ज्यादा दिलचस्प हो जाती है, जब हम इन बैक्टीरिया के बारे में ज्यादा जानते हैं, जिन्हें सामूहिक रूप से प्रोबायोटिक्स (probiotics) के नाम से जाना जाता है.

प्रोबायोटिक्स क्या हैं?

प्रोबायोटिक्स ‘गुड’ बैक्टीरिया (good bacteria ) और यीस्ट (yeast) का मिश्रण है, जो शरीर में प्राकृतिक रूप से मौजूद रहते हैं. वे पूरे शरीर में होते हैं जैसे कि आंत, मुंह, यूरिनरी ट्रैक्ट, स्किन और लंग्स. प्रोबायोटिक्स पाचन और संक्रमण से लड़ने समेत कई जरूरी काम करते हैं.

सबसे खास तरह के प्रोबायोटिक्स आंत की लाइनिंग में रहते हैं, जहां वे माइक्रोबायोम (microbiome) कहा जाने वाला अपना खुद का इको-सिस्टम बनाते हैं.

माइक्रोबायोम का हमारी पूरी सेहत पर बहुत गहरा असर पड़ता है. यहां बैक्टीरिया की तकरीबन हजार प्रजातियां बसती हैं, और इनके बीच सही संतुलन बनाए रखना जरूरी है. हर शख्स का माइक्रोबायोम अपनी किस्म का अकेला होता है; यहां तक कि जुड़वां बच्चों के माइक्रोबायोम भी एक जैसे नहीं होते.

माइक्रोबायोम में गुड और बैड बैक्टीरिया की मात्रा के बीच असंतुलन से शरीर के तमाम अंगों या सिस्टम का कामकाज बिगड़ सकता है. ऐसा बीमारी से, दवाओं के साइड इफेक्ट से या कुपोषण से हो सकता है.

असंतुलन का नतीजा हाजमे की समस्याओं, एलर्जी, वजन बढ़ने और यहां तक कि मूड स्विंग में देखा जा सकता है.

ऐसे हालत के दौरान शरीर में प्राकृतिक प्रोबायोटिक्स को कुछ अतिरिक्त मदद की जरूरत होती है.

यह या तो ज्यादा प्रोबायोटिक्स (probiotics) या प्रीबायोटिक्स (prebiotics) से सेवन से किया जा सकता है. हालांकि सुनने में दोनों एक जैसे लगते हैं, मगर दोनों अलग हैं. प्रीबायोटिक्स नॉन-डाइजेस्टिव होते हैं और मौजूदा बैक्टीरिया को बढ़ने में मदद करते हैं, जबकि प्रोबायोटिक्स असली जिंदा बैक्टीरिया होते हैं, जो सीधे मौजूदा माइक्रोबायोम में शामिल किया जाता है.

प्रोबायोटिक्स से सेहत को फायदे

1. डायरिया के खतरे को कम करता है

डायरिया या दस्त कई वजहों से हो सकता है, जिसमें खाने या पानी से पैदा होने वाले जर्म्स के साथ-साथ एंटीबायोटिक लेना भी शामिल है. जब हम एंटीबायोटिक लेते हैं, तो इसका मकसद हमारे सिस्टम में किसी इन्फेक्शन को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को खत्म करना होता है.

इस प्रक्रिया में गुड बैक्टीरिया भी खत्म हो जाते हैं, जिससे दस्त जैसी हाजमे से जुड़ी समस्याएं होती हैं.

प्रोबायोटिक्स लेने से माइक्रोबायोम में फिर से गुड बैक्टीरिया की आबादी बढ़ाकर इस बुरे असर से बचाव किया जाता है.

प्रोबायोटिक्स यहां तक कि अगर दस्त को पूरी तरह नहीं रोकते हैं, तो भी वे कम से कम तीव्रता को हल्का कर सकते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि प्रोबायोटिक्स लेने से एंटीबायोटिक से होने वाले डायरिया को 42% और दूसरे इन्फेक्शन से होने वाले डायरिया को 50% तक कम किया जा सकता है.

सफर में निकले लोगों को भी खाने और पानी से होने वाली बीमारियों से जुड़े डायरिया से सुरक्षित रहने के लिए प्रोबायोटिक्स लेने की सलाह दी जाती है.

2. हाजमे की परेशानी में आराम देता है

चूंकि हमारे शरीर में ज्यादातर गुड बैक्टीरिया आंत के माइक्रोबायोम में रहते हैं, इसलिए जाहिर है कि इसका हमारे पाचन स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा. दुनिया भर में बहुत से लोग आंत में जलन/सूजन (inflammatory bowel disease या IBD) और irritable bowel syndrome (IBS) जैसी हाजमे की परेशानियों से जूझते हैं, और प्रोबायोटिक्स इन बीमारियों से आराम पहुंचाने में काफी मदद करते हैं.

प्रोबायोटिक्स हल्की गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परेशानियों जैसे जलन, गैस और कब्ज में मदद करते हैं. ये ज्यादा गंभीर बीमारियों जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) और यहां तक कि नेक्रोटाइजिंग एंटेरोकोलाइटिस (necrotizing enterocolitis), जो कि नवजात बच्चों के लिए जानलेवा हो सकने वाली गंभीर बीमारी है, पर भी असर को कम करते हैं. प्रोबायोटिक्स क्रोहन डिजीज (Crohn's disease) में आराम पहुंचाने और दोबारा होने से रोकने में भी कारगर दिखा है.

3. इम्यूनिटी बूस्ट करता है

प्रोबायोटिक्स लेने से आंत के माइक्रोबायोम का संतुलन कायम रहता है, जिसका हमारी प्राकृतिक इम्यूनिटी पर काफी असर पड़ता है. प्रोबायोटिक्स इम्यून सेल्स को बढ़ाते हैं, शरीर में प्राकृतिक एंटीबॉडी के उत्पादन को बढ़ाते हैं. इम्यूनिटी में यह बढ़ोतरी सिर्फ हाजमे की समस्याओं से ही नहीं, बल्कि कई और बीमारियों से बचाती है.

अध्ययनों में देखा गया है कि नियमित रूप से प्रोबायोटिक्स लेकर हम एक साल में जुकाम (common cold) होने की गिनती को कम कर सकते हैं. यह बच्चों में सांस के इन्फेक्शन के साथ-साथ महिलाओं में यूरिनरी ट्रैक्ट के इन्फेक्शन में भी असरदार साबित हुआ है. यह हमारे किसी भी इन्फेक्शन की तीव्रता को कम करता है और बीमारी की अवधि को काफी कम कर देता है.

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4. इन्फ्लेमेटरी कंडिशन की गंभीरता को कम करता है

इन्फ्लेमेशन शरीर के सभी हिस्सों पर असर डाल सकती है, और इसके कई तरह के लक्षण हो सकते हैं. प्रोबायोटिक्स से अस्थमा (asthma), एलर्जी (allergies), फूड इन्टॉलरेंस (food intolerances), रयूमेटॉयड आर्थ्राइटिस (rheumatoid arthritis) और एक्जिमा (eczema) जैसी तमाम इन्फ्लेमेटरी कंडिशन में अच्छी कामयाबी मिली है.

एक्जिमा खासतौर शिशुओं और छोटे बच्चों पर असर डालता करता है, और जब वे प्रोबायोटिक्स लेते हैं, तो इसके लक्षण बहुत कम हो जाते हैं. गर्भवती महिलाएं प्रोबायोटिक्स लेती हैं, तो उनके बच्चों में एक्जिमा होने की संभावना 83 फीसदी कम होती है. ऐसा सी-रिएक्टिव प्रोटीन (C-reactive protein) के स्तर को कम रखने वाले प्रोबायोटिक्स की वजह से हो सकता है, जिसे इन्फ्लेमेशन का मार्कर माना जाता है.

5. वजन घटाने में मदद करता है

मोटापे (Obesity ) के शिकार लोगों की बड़ी संख्या के चलते कुछ देशों में मोटापे को राष्ट्रीय महामारी माना जाता है. मोटापा बड़ी संख्या में लगातार चलने वाली बीमारियों (chronic illnesses) को जन्म दे सकता है, और प्रोबायोटिक्स लेने से इस महामारी को काबू में रखा जा सकता है. शोध से पता चला है कि डाइट में प्रोबायोटिक्स को शामिल करने से वजन घटाने में कई तरीकों से मदद मिल सकती है.

स्वस्थ तरीके से वजन घटाने के लिए मांसपेशियों में कमी लाने की बजाए फैट में कमी लाने की जरूरत होती है, और प्रोबायोटिक्स इस मामले में मदद करते हैं.

वे डाइटरी फैट को आंत में घुलने से रोकते हैं और इसे शरीर से बाहर जाने देते हैं. प्रोबायोटिक्स कुछ हार्मोंस को बढ़ाकर पेट भर जाने का एहसास पैदा करते हैं, जो ज्यादा खाने से रोकता है.

एक अध्ययन में पाया गया कि जिन महिलाओं ने 3 महीने तक प्रोबायोटिक्स लिया, उनका वजन प्रोबायोटिक्स नहीं लेने वाली महिलाओं की तुलना में 50% ज्यादा कम हुआ. प्रोबायोटिक्स पेट की फैट को कम करने में भी मदद कर सकते हैं, जो फैट इकट्ठा होने के लिए खतरनाक जगह मानी जाती है.

6. दिल के स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है

प्रोबायोटिक्स से हाजमे के फायदे आखिकार दिल के लिए भी मददगार होते हैं. पित्त (bile) से, जो कि ज्यादा मात्रा में कोलेस्ट्रॉल (cholesterol) वाला बॉडी फ्ल्यूड होता है, हाजमे में मदद मिलती है. प्रोबायोटिक्स आंत में पित्त को ब्रेकडाउन करते हैं, और इसे कोलेस्ट्रॉल के रूप में ब्लड में एब्जॉर्ब होने से रोकते हैं.

कई अध्ययनों में पाया गया है कि इसके चलते सिर्फ कुछ हफ्ते प्रोबायोटिक्स का सेवन करने से LDL या ‘बैड’ कोलेस्ट्रॉल कम हो सकता है और ‘गुड’ HDL कोलेस्ट्रॉल बढ़ सकता है, जिससे दिल की हिफाजत हो सकती है. इसके अलावा प्रोबायोटिक्स उच्च रक्तचाप (hypertension) को भी कम करते हैं, जो कि हार्ट की बीमारियों (cardiac illnesses) को बढ़ाने में योगदान देने वाला एक और कारक है.

खाने की प्रोबायोटिक चीजें

हमारी डाइट में प्रोबायोटिक्स को शामिल करने के दो तरीके हैं- सप्लीमेंट्स लेकर या प्रोबायोटिक फूड की मात्रा बढ़ाकर. फर्मन्टेड फूड में प्रोबायोटिक्स की भरपूर मात्रा होती है, क्योंकि फर्मेंटेशन प्रक्रिया में जिंदा बैक्टीरिया का इस्तेमाल होता है. हालांकि उन्हें बिना पकाए खाने का ही फायदा है, क्योंकि गर्मी प्रोबायोटिक्स को बर्बाद कर सकती है. यहां कुछ बेहतरीन प्रोबायोटिक फूड्स बताए गए हैं, जिन्हें आप अपनी डाइट में शामिल कर सकते हैं:

  • दही (Yogurt)- दही लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और बाइफिडोबैक्टीरिया से फर्मन्टेड दूध से बनता है. बिना किसी एडिटिव के सादा योगर्ट खाएं क्योंकि प्रोसेसिंग बैक्टीरिया को खत्म कर सकती है. रेगुलर योगर्ट में ग्रीक योगर्ट के मुकाबले ज्यादा प्रोबायोटिक्स होते हैं.

  • केफिर (Kefir)- केफिर एक फर्मन्टेड मिल्क ड्रिंक है, जिसमें केफिर अनाज का इस्तेमाल कर गाय के दूध को फर्मन्टेड किया जाता है. केफिर अनाज में लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया और यीस्ट होते हैं.

  • कोम्बुचा (Kombucha)- कोम्बुचा मूल रूप से फर्मन्टेड चाय है, और इसे ब्लैक या ग्रीन टी से बनाया जा सकता है और बैक्टीरिया व यीस्ट का इस्तेमाल कर फर्मन्टेड किया जाता है.

  • छाछ (Buttermilk)- मक्खन बनाने के बाद बचे हुए तरल पदार्थ को छाछ कहते हैं. छाछ में दूध को फर्मन्टेड करने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले बैक्टीरिया के साथ-साथ जरूरी माइक्रोन्यूटिएंट्स भी होते हैं.

  • टेम्पेह (Tempeh)- टेम्पेह राइजोपस ओलिगोस्पोरस नाम के फंगस के इस्तेमाल से सोयाबीन को फर्मन्टेड कर बनाया जाता है. यह ठोस पैटी फॉर्म में मिलता है, और इसका इस्तेमाल मीट के विकल्प के तौर पर किया जाता है.

  • साऊक्राउट (Sauerkraut)- साऊक्राउट लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया से फर्मन्टेड बारीक टुकड़ों में कटी पत्तागोभी से बना होता है. प्रोबायोटिक फायदा पाने के लिए बिना पाश्चराइज्‍ड साऊक्राउट खाएं.

  • किमची (Kimchi)- किम्ची भी पत्तागोभी से अलग-अलग मसालों और सीजनिंग के साथ बनाई जाती है. किमची में लैक्टोबैसिलस किमची समेत कई तरह के लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया होते हैं.

  • पनीर (Cottage Cheese)- पनीर भी एक ऐसी प्रक्रिया का इस्तेमाल कर बनाया जाता है जिसमें दूध का फर्मन्टेशन किया जाता है, और यह प्रोबायोटिक गुण को तब तक बनाए रखता है जब तक इसे गर्म नहीं किया जाता है. पनीर में प्रोटीन भरपूर मात्रा में होता है.

सुपरमार्केट से कोई भी प्रोबायोटिक फूड खरीदते समय, प्रोबायोटिक्स की मौजूदगी पक्की करने के लिए लेबल पर “लाइव एंड एक्टिव कल्चर” जांच लें.

क्या मुझे प्रोबायोटिक्स लेना चाहिए?

चूंकि हमारे शरीर में प्राकृतिक रूप से प्रोबायोटिक्स होते हैं, इसलिए प्रोबायोटिक्स लेना आमतौर पर सुरक्षित माना जाता है. कुछ लोग अपनी डाइट में प्रोबायोटिक्स शामिल करते ही कुछ खराब असर का अनुभव कर सकते हैं, लेकिन यह कुछ ही दिनों में खत्म हो जाता है. इन साइड इफेक्ट्स में सूजन, पेट फूलना और हल्का दस्त शामिल हो सकते हैं.

प्रोबायोटिक्स वैसे हर किसी की मदद कर सकते हैं, कुछ हेल्थ कंडिशन से पीड़ित लोगों को प्रोबायोटिक्स लेने से ज्यादा फायदा मिल सकता है. इन हेल्थ कंडीशन में शामिल हैं:

  • दस्त (Diarrhea)

  • कब्ज (Constipation)

  • लैक्टोज हजम न होना (Lactose intolerance)

  • आंत में सूजन (Inflammatory bowel disease)

  • इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (Irritable bowel syndrome)

  • एक्जिमा (Eczema)

  • जुकाम (Common cold)

  • साइनसिटिस (Sinusitis)

  • कान में संक्रमण (Ear infections)

  • यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (Urinary tract infections)

  • यीस्ट इन्फेक्शन (Yeast infections)

  • सेप्सिस (Sepsis)

हालांकि जिनका किसी बीमारी या कीमोथेरेपी के चलते इम्यून सिस्टम कमजोर है, या ऐसे लोग जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई है, उन्हें प्रोबायोटिक्स नहीं लेने की सलाह दी जाती है. क्रॉनिक बीमारियों या बहुत छोटे बच्चों के मामले में डाइट में प्रोबायोटिक्स को शामिल करने से पहले डॉक्टर से राय लेना बेहतर है. यह जानना जरूरी है कि क्या प्रोबायोटिक्स फिलहाल चल रहे इलाज पर असर डाल सकता है या तबीयत और खराब कर सकता है.

(प्रतिभा पाल ने अपना बचपन ऐसी शानदार जगहों पर बिताया है, जिनके बारे में सिर्फ फौजियों के बच्चों ने ही सुना होगा. वह तरह-तरह की किताबों को पढ़ते हुए बड़ी हुई हैं. जब अपने पाठकों के साथ शेयर करने के लिए किसी DIY रेसिपी तैयार करने का काम नहीं कर रही होती हैं, तब प्रतिभा सोशल मीडिया पर अपनी लेखन कला का जादू बिखेर रही होती हैं. आप उनके ब्लॉग www.pratsmusings.com पर पढ़ सकते हैं या उनसे ट्विटर पर @myepica पर संपर्क कर सकते हैं.)

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