यह साल का वह समय है, जब आप अपने फोन पर हवा की क्वालिटी चेक करते हैं और खराब हवा की गंध महसूस करते हैं.

दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में प्रदूषित होती हवा की खबरें फिर आ रही हैं क्योंकि पड़ोसी इलाकों में फसलों के अवशेष यानी पराली जलाया जाना शुरू हो गया है, वहीं लॉकडाउन के बाद आर्थिक जीवन फिर से पटरी पर लौट रही है.

दृश्यता घटने की शिकायतें, सांस लेने में दिक्कत और महानगरों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के नतीजे ‘खराब’, ‘बहुत खराब’ और यहां तक कि ‘खतरनाक’ स्तर दिखाने का दौर शुरू हो रहा है- ऐसा हर एक साल इसी समय देखा जाता है और सरकार व लोग इसके असर को कम करने के लिए नीतियों और उपायों में जुट जाते हैं.

लेकिन इस साल हमारी लड़ाई सिर्फ वायु प्रदूषण से नहीं है. इसके साथ एक और लड़ाई जुड़ गई है.

एक वैश्विक महामारी, जो दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा जानें ले चुकी है और स्वास्थ्य सेवाओं को तहस-नहस कर दिया है. देश जबकि धीरे-धीरे कोविड-19 के साथ जीना सीख रहा है और धीरे-धीरे सामान्य हालात में लौट रहा है, वायु प्रदूषण से होने वाला खतरा हमारे सामने खड़ा है.

डॉक्टर, जलवायु विशेषज्ञ और पर्यावरणविद इंसानी जिंदगी के लिए दोहरी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों से पैदा खतरे का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठा रहे हैं. फिट ने पल्मोनोलॉजिस्ट से यह समझने के लिए बात की कि वायु प्रदूषण से हमारी कोविड-19 से लड़ाई पर किस तरह का असर पड़ सकता है और जटिलताओं के ज्यादा बड़े जोखिम के साथ बीमार पड़ने की हमारी आशंका कितनी बढ़ जाती है.

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शुरुआती रिसर्च और दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हुए अलग-अलग अध्ययनों ने प्रदूषित हवा और कोविड की तीव्रता के बीच आनुपातिक संबंध का संकेत दिया है. सबसे उल्लेखनीय हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का एक इकोलॉजिकल अध्ययन है, जिसमें पीएम 2.5 के स्तर में मामूली वृद्धि को भी कोविड-19 से होने वाली मौतों में 8% की बढ़ोतरी से जुड़ा पाया गया.

“अध्ययन के नतीजे कोविड-19 संकट के दौरान और बाद में भी इंसानी सेहत की रक्षा के लिए मौजूदा वायु प्रदूषण नियमों को लागू करना जारी रखने के महत्व को रेखांकित करते हैं.”
अध्ययन के लेखक

हालांकि अभी शोध की गहराई से समीक्षा किया जाना बाकी है, लेकिन ये नतीजे वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए उपायों की दिशा में काम करने और साथ में होने वाले स्वास्थ्य खतरों को रोकने की जरूरत को उजागर करते हैं.

अन्य अध्ययनों ने भी प्रदूषण और कोविड से जुड़ी ज्यादा मौतों के परस्पर संबंधों पर विचार किया है. उदाहरण के लिए, इटली, स्पेन, फ्रांस और जर्मनी में कोविड के घातक परिणाम के विश्लेषण से निष्कर्ष निकाला गया कि 78% मौतें उच्चतम नाइट्रोजन ऑक्साइड (NO2) की मौजूदगी वाले क्षेत्रों में थीं, जहां साथ ही हवा का कम प्रवाह प्रदूषक तत्वों को बिखर जाने से रोकता था.

यह भी जांच की जा रही है कि क्या वायु प्रदूषण नोवल कोरोना वायरस के फैलने को आसान बना सकता है और मामलों में तेज बढ़ोतरी कर सकता है. हालांकि इस तरह के संबंध का कोई सीधा सबूत नहीं है, लेकिन उत्तरी इटली के शुरुआती सबूत बताते हैं कि वायरस पार्टिकुलेट मैटर ( धूल कण) पर पाया जा सकता है, यह दर्शाता है कि यह खुद को वायु प्रदूषक कणों से जोड़ सकता है.

वैसे विशेषज्ञों का कहना है कि फिर भी कोई ठोस बयान जारी करने से पहले इस मामले में और अधिक शोध की जरूरत है.

प्रदूषित हवा और कोरोना: क्या कहते हैं डॉक्टर

आसान शब्दों में कहें तो वायु प्रदूषण रक्त वाहिकाओं में घुसकर शरीर के विभिन्न हिस्सों को नुकसान पहुंचाता है, जिससे इन्फ्लेमेशन होती है और इम्युनिटी कम हो जाती है. दिल की बीमारियों, स्ट्रोक, डायबिटीज, अस्थमा, कैंसर और दूसरी कोमॉर्बिडिटीज में इसके योगदान को दर्शाने के बड़े पैमाने पर सबूत मौजूद हैं- ये सभी कोविड-19 मरीजों में भी जटिलताओं को बढ़ाने के लिए जाने जाते हैं.

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में रेस्पिरेटरी, क्रिटिकल केयर और स्लीप डिसऑर्डर के सीनियर कंसल्टेंट डॉ निखिल मोदी फिट से बातचीत में बताते हैं कि प्रदूषण एक गंभीर चिंता का कारण है क्योंकि यह रेस्पिरेटरी सिस्टम (श्वसन प्रणाली) को कमजोर करता है और फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है, जो कि सांस के संक्रमण का प्रमुख टारगेट होता है, और यही कोविड-19 में भी होता है.

वह कहते हैं,

“जैसा कि हम जानते हैं प्रदूषण, स्मोकिंग करने जैसा है. जब हम प्रदूषित हवा को अंदर लेते हैं, तो यह हमारे सीने में कन्जेशन का कारण बनती है और हमारे एयरवेज या ब्रीदिंग ट्यूब (श्वास नलिकाएं) सिस्टम में रुकावट डालती है, जो कि फेफड़ों से धूल के कण, वायरस और बैक्टीरिया को साफ करते हैं. लेकिन जब यह सिस्टम खराब हो जाता है, तो वहां वायरस के रहने, छाती में जाने और बीमारी के लक्षण पैदा होने की संभावना अधिक होगी.”

कोरोना से अलग एक रिसर्च में पाया गया था कि प्रदूषित हवा में रहे मरीजों को इंटेंसिव केयर यूनिट (ICU) में ज्यादा देर तक वेंटिलेशन पर रखना पड़ता है.

“वायु प्रदूषण हमारे फेफड़ों पर अतिरिक्त दबाव डालता है. प्रदूषित हवा में पार्टिकुलेट मैटर 2.5 होते हैं. ये कण इतने छोटे होते हैं कि वे हमारे फेफड़ों में गहराई तक जा सकते हैं और लाइनिंग (अस्तर) को स्थायी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे सीओपीडी, क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस और अस्थमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं. इसके अलावा, ये रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं और इसके नतीजे में शरीर के विभिन्न हिस्सों की रक्त वाहिकाएं संकरी हो सकती है, जिससे हार्ट संबंधी बीमारियां, स्ट्रोक और कई अन्य बीमारियां हो सकती हैं.”
डॉ निखिल मोदी

संक्षेप में कह सकते हैं कि, वायु प्रदूषण कई स्थितियों और कोमॉर्बिडिटीज से सीधे जुड़ा हुआ है, जिन्हें कोविड-19 जटिलताओं और मौत के जोखिम को बढ़ाने के लिए जाना जाता है. यह इम्यून सिस्टम पर प्रतिकूल असर डाल सकता है.

सिर्फ इतना ही नहीं, हवा के जो प्रदूषक तत्व स्वाभाविक रूप से कन्जेशन और कफ की वजह बनते हैं, एक कोविड संक्रमित व्यक्ति से वायरस के फैलाव में भी मदद कर सकते हैं- क्योंकि यह मुख्यतः सांस की बूंदों के जरिए फैलता है.

डॉ मोदी कहते हैं, “इसलिए, सबसे पहले प्रदूषण कोविड के लिए संवेदनशीलता बढ़ा सकता है और फिर गंभीर संक्रमण की संभावना भी बढ़ा सकता है.”

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इंडिया टुडे के साथ एक इंटरव्यू में दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने इसी तरह की चिंताओं की पुष्टि की है. “वायु प्रदूषण बढ़ रहा है और चीन व इटली (यूरोप) से कुछ मॉडल अध्ययनों के माध्यम से मिले डेटा हैं जो बताते हैं कि उन क्षेत्रों में जहां पीएम 2.5 के स्तर में मामूली वृद्धि भी हुई है, कोरोना वायरस के मामलों में कम से कम 8-9% की बढ़ोतरी हुई है.

डॉ गुलेरिया ने कहते हैं, “वायु प्रदूषण फेफड़ों में सूजन का कारण बनता है और SARS-CoV-2 भी मुख्य रूप से फेफड़ों पर असर डालता है जिससे सूजन होती है. संभव है कि इस समय खासतौर से भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में संक्रमण गंभीर हो सकता है, जहां प्रदूषण का स्तर अधिक है."

वायु प्रदूषण, सर्दियां और कोविड-19

सर्दियों के मौसम में ज्यादा प्रदूषण होता है(फोटो: iStock)

जैसा कि फिट ने पहले की एक रिपोर्ट में बताया था, आने वाले कुछ महीनों में तापमान में गिरावट के साथ कोविड-19 के मामले बढ़ सकते हैं, जैसा कि दूसरे कोरोना वायरस और वायरल संक्रमणों में देखा जाता है.

लेकिन वायु प्रदूषण हालात को कैसे और जटिल बनाता है?

फोर्टिस अस्पताल शालीमार बाग दिल्ली में पल्मोनोलॉजी के डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ विकास मौर्य बताते हैं, “सर्दियों के मौसम में हवा में कणों के अधिक जमाव से ज्यादा प्रदूषण होता है. यह भी एक वजह है कि हर साल, हम इस अवधि के दौरान रेस्पिरेटरी वायरल संक्रमण में बढ़ोतरी देखते हैं. यह रुझान कोई नई बात नहीं है, लेकिन कोविड-19 की मौजूदगी में चुनौती निश्चित रूप से कई गुना बढ़ गई है."

वायरल कण वायुमंडल में ज्यादा देर तक रहते हैं और इसीलिए उनके सांस के साथ अंदर जाने की संभावना बढ़ जाती है, जिससे फेफड़ों पर असर, सूजन बढ़ती है और ये कोमॉर्बिडिटीज- सभी कोविड-19 मरीजों के लिए भी चिंता का कारण हैं.
डॉ विकास मौर्य

हार्वर्ड स्टडी की अगुवाई करने वाली प्रोफेसर फ्रांसेस्का डोमिनिसी ने गार्डियन को बताया, “धीमी गहन समीक्षा प्रक्रिया (अकादमिक अध्ययन के लिए) होने के कारण अभी वायु प्रदूषण पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है. लेकिन उम्मीद है कि जैसे-जैसे दूसरे अध्ययन प्रकाशित होंगे, इस विषय पर अधिक ध्यान दिया जाएगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि ये हमारी नीतियों पर असर डालेंगे.”

जबकि खराब होती हवा और तापमान में गिरावट के कारण चुनौतियां व जोखिम कई गुना बढ़ जाएंगे, समाधान वही ही है— मास्क, डिस्टेन्सिंग और रेस्पिरेटरी हाइजीन कोरोना को रोक सकते हैं और इसके फैलाव की दर में कटौती करने में मदद कर सकते हैं.

दूसरी तरफ, व्यक्तिगत और साथ ही नीतिगत स्तर पर वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर कोविड और दूसरी बीमारियों के बढ़ने के जोखिम को कम करने की जरूरत होगी. इसका क्या मतलब है? कुल मिलाकर, यह कि महामारी से लड़ने में उपायों की कई परतें शामिल हैं और अकेले किसी से भी समाधान नहीं मिल सकता है.

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