(हर साल 2 दिसंबर को नेशनल पॉल्यूशन कंट्रोल डे मनाया जाता है. एयर पॉल्यूशन पर जागरुकता लाने के लिए फिट इस स्टोरी को फिर से पब्लिश कर रहा है.)

देश की राजधानी दिल्ली में हवा की क्वालिटी खराब होने के साथ ही कोरोना के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और कई मेडिकल एक्सपर्ट्स वायु प्रदूषण के कारण कोरोना के मामले और इससे मौत बढ़ने की बात कह चुके हैं.

दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ कोरोना के कहर में बढ़ोतरी पूरे देश के लिए खतरे की एक और घंटी है क्योंकि वायु प्रदूषण किसी एक राज्य की समस्या नहीं है और इसके कारण साल दर साल कितनी जानें चली जाती हैं.

प्रदूषित हवा से कोरोना संक्रमण का रिस्क किस तरह बढ़ सकता है, क्या ये प्रदूषित हवा कोरोना रोगियों की बीमारी को ज्यादा गंभीर बना रही है और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के डॉक्टर्स क्या ट्रेंड देख रहे हैं?

ये जानने के लिए फिट ने कुछ अस्पतालों के डॉक्टर से बात की है.

क्या दिल्ली में एयर पॉल्यूशन बढ़ने से कोरोना के केस बढ़े हैं?

एयर क्वालिटी में गिरावट जारी है(फोटो: IANS)

दिल्ली के होली फैमिली हॉस्पिटल में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुमित रे बताते हैं कि हम मामलों में बढ़त देख रहे हैं, "हालांकि मुझे नहीं लगता कि ये सिर्फ एयर पॉल्यूशन से जुड़ा है, त्योहारी सीजन भी इसकी वजह है, लोग आपस में ज्यादा मिल-जुल रहे हैं."

वसंतकुंज के फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन की कंसल्टेंट डॉ ऋचा सरीन भी यही कहती हैं, "पिछले कुछ दिनों से दिल्ली के अस्पतालों में कोरोना के मामले बढ़ते देखे जा रहे हैं, जो खराब होती एयर क्वालिटी, तापमान में कमी और त्योहार के मौके पर लोगों में मास्क पहनने, फिजिकल डिस्टेन्सिंग जैसी उपायों में ढिलाई का नतीजा है."

वायु प्रदूषण और कोरोना संक्रमण का रिस्क, क्या लिंक है

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि एयर पॉल्यूशन के कारण बढ़े हुए पर्टिकुलेट मैटर तापमान कम होने के नाते हवा में या कहें कि स्मॉग के जरिए लंबे समय तक ठहर सकते हैं, इससे कोरोना वायरस से एक्सपोजर का जोखिम हो सकता है.

बी.एल.के हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चेस्ट एंड रेस्पिरेटरी डिजीज के डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ संदीप नायर बताते हैं,

प्रदूषित वातावरण में खांसी और छींक ज्यादा आती है और अगर कोई कोरोना संक्रमित है, तो ड्रॉपलेट ट्रांसमिशन का रिस्क इस लिहाज से बढ़ने की आशंका है.

क्या एयर पॉल्यूशन से कोरोना रोगियों में गंभीर बीमारी का रिस्क बढ़ गया है?

डॉ संदीप नायर कहते हैं कि सिर्फ कोरोना के केस ही नहीं बढ़ रहे हैं बल्कि संक्रमितों में गंभीर बीमारी भी बढ़ रही है.

मरीजों में अधिक लक्षण नजर आ रहे हैं, उनमें गंभीर रेस्पिरेटरी दिक्कतें और लो ऑक्सीजन देखी जा रही है.
डॉ संदीप नायर, डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट, सेंटर फॉर चेस्ट एंड रेस्पिरेटरी डिजीज, बी.एल.के हॉस्पिटल

क्या प्रदूषित हवा के कारण कोरोना पॉजिटिव लोगों को सांस से जुड़ी समस्याओं की ज्यादा आशंका है, इस सवाल के जवाब में क्रिटिकल केयर मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुमित रे कहते हैं कि ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी, ये इस पर निर्भर करता है कि मरीज को पहले पॉल्यूशन से जुड़ी रेस्पिरेटरी बीमारी रही है या नहीं. लेकिन वायरल संक्रमण प्रदूषण में श्वसन लक्षणों को अधिक ट्रिगर करते हैं.

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प्रदूषण संवेदनशील रोगियों में श्वसन लक्षणों को ट्रिगर करेगा और COVID-19 के कारण रेस्पिरेटरी लक्षण प्रदूषण से बिगड़ सकते हैं, लेकिन इसका सीधा कोरिलेशन यानी सहसंबंध हमेशा साबित नहीं हो सकता है.
डॉ सुमित रे

डॉ नायर कहते हैं, "कोरोना संक्रमण और प्रदूषण दोनों मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करते हैं. बेशक दूसरे अंग भी प्रभावित होते हैं लेकिन दोनों के लिए प्रवेश का मार्ग (कोरोना के साथ-साथ प्रदूषण) श्वसन प्रणाली है. यह COVID रोगियों में बीमारी की गंभीरता में वृद्धि का एक कारण हो सकता है."

वो भी डॉ रे की बात दोहराते हैं कि हम लक्षणों को देखकर ये नहीं कह सकते कि वो कोरोना के कारण है या पॉल्यूशन के कारण, लेकिन दिक्कतें तो बढ़ती हैं.

वायरस के लिए अटैक करना आसान हो जाता है

प्रदूषित हवा सांस की नली और फेफड़ों में इन्फ्लेमेशन करती है(फोटो: फिट/iStock)

डॉ सरीन बताती हैं, "एयर पॉल्यूशन या बिगड़ी एयर क्वालिटी निश्चित तौर पर बढ़ते कोरोना के मामलों और इससे होने वाली गंभीर बीमारी से जुड़ी प्रतीत होती है, जैसा कि हार्वर्ड की एक स्टडी में भी कहा गया है."

प्रदूषित हवा सांस की नली और फेफड़ों में इन्फ्लेमेशन करती है, जिससे वायरस के लिए इन रेस्पिरेटरी हिस्सों को प्रभावित करना आसान हो जाता है और बीमारी की गंभीरता बढ़ जाती है.
डॉ ऋचा सरीन, कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी और क्रिटिकल केयर मेडिसिन, फोर्टिस हॉस्पिटल, वसंतकुंज

मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत में पल्मोनोलॉजी के प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड डॉ विवेक नांगिया भी इसे इसी तरह समझाते हैं कि प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से इन्फ्लेमेशन और सेलुलर क्षति होती है, जिससे वायरस या किसी भी दूसरे रोगजनक सूक्ष्म जीव के लिए हमारे फेफड़ों पर आक्रमण करना आसान हो जाता है.

इन्फ्लेमेशन की ये प्रक्रिया संक्रमण के जवाब में प्रारंभिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को दबा सकती है.

इसका मतलब है कि संक्रमण से लड़ने की क्षमता स्पष्ट रूप से खराब हो सकती है.

खराब एयर क्वालिटी वाली जगहों पर कोरोना से मौत के मामलों में इजाफा देखा गया है. पीएम 2.5 कणों में 1 माइक्रॉन/क्यूबिक मीटर बढ़ोतरी से मौत की दर 8% बढ़ी देखी गई है. पीएम 2.5, पीएम 10, कार्बन मोनो ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का भी कोरोना के मामलों से संबंध देखा गया है.
डॉ विवेक नांगिया, प्रिंसिपल डायरेक्टर और हेड, पल्मोनोलॉजी, मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल, साकेत

कोरोना से उबर चुके लोगों को भी सतर्क रहने की जरूरत

इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल की रेस्पिरेटरी मेडिसिन स्पेशलिस्ट डॉ विनि कंत्रू इस बात के लिए सतर्क रहने को कहती हैं कि जिन लोगों को मॉडरेट से लेकर गंभीर COVID-19 हो चुका है, वो पोस्ट कोविड जटिलताओं से जूझ सकते हैं और ये वो मरीज हैं जिनकी सांस की तकलीफें प्रदूषित हवा में बढ़ सकती हैं क्योंकि उनकी सांस की नली पहले से इन्फ्लेम्ड होगी.

डॉ कंत्रू कुछ सुझाव देती हैं:

  • सुबह-सुबह कहीं बाहर निकलने की बजाए दिन में जाएं

  • बुजुर्ग और जिन्हें रिस्क है, वो जितना हो सके घर में ही रहें

  • डॉक्टर का प्रेस्क्रिप्शन फॉलो करें और जटिलताओं से बचने के लिए पहले ही सलाह ले लें

  • फिजिकल डिस्टेन्सिंग, मास्क और सैनिटाइजेशन फॉलो करें

  • पेड़ लगाएं और घर के आसपास हरियाली को बढ़ावा दें

डॉ नायर कहते हैं कि कोरोना से पूरी दुनिया जूझ रही है और जरूरी है कि हम पॉल्यूशन बढ़ा कर हालात और ज्यादा खराब न करें.

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Published: 10 Nov 2020,04:53 PM IST

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