विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने शुक्रवार, 24 सितंबर 2021 को COVID-19 के कुछ मरीजों के लिए दो एंटीबॉडी– कासिरिविमैब (Casirivimab) और इमदेविमाब (Imdevimab) के कॉम्बिनेशन से ट्रीटमेंट की सिफारिश की है.
WHO ने कोरोना इन मरीजों के लिए एंटीबॉडी ट्रीटमेंट की सिफारिश की है-
कोरोना के वो मरीज जो अस्पताल में भर्ती होने के सबसे अधिक जोखिम में हैं
गंभीर कोविड-19 वाले वो मरीज हैं, जो सीरोनिगेटिव हैं, मतलब कि जिन मरीजों में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी प्रतिक्रिया न हो
WHO के गाइडलाइन डेवलपमेंट ग्रुप (GDG) ने दवा बनाने वाली कंपनियों और सरकारों से एंटीबॉडी कॉम्बिनेशन की ज्यादा कीमत और सीमित उत्पादन का समाधान करने और दवा की सुरक्षित और उचित हैंडलिंग सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
मोनोक्लोनल एंटीबॉडी लैब में तैयार किए गए प्रोटीन होते हैं, जो वायरस जैसे हानिकारक रोगजनकों से लड़ने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता की नकल करते हैं.
इस तरह के न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी के कॉकटेल वायरस स्पाइक के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ते हैं.
गैर-गंभीर कोविड रोगियों के लिए पहली सिफारिश तीन ट्रायल से मिले नए सबूतों पर आधारित है, जिनकी अभी तक समीक्षा नहीं की गई है, लेकिन यह दिखाते हैं कि Casirivimab और Imdevimab शायद अस्पताल में भर्ती होने के जोखिम और गंभीर बीमारी के सबसे ज्यादा जोखिम वाले लोगों (जैसे- जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है, बुजुर्ग या इम्यूनोसप्रेस्ड लोगों) में लक्षणों की अवधि को कम कर सकते हैं.
दूसरी सिफारिश गंभीर कोविड रोगियों के एक ट्रायल के आंकड़ों पर आधारित है, जिसके मुताबिक Casirivimab और Imdevimab से मरीज के मौत की आशंका और सीरोनिगेटिव मरीजों में वेंटिलेटर की आवश्यकता घट सकती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक दूसरे सभी कोविड-19 रोगियों के लिए, इस एंटीबॉडी ट्रीटमेंट के किसी भी लाभ के सार्थक होने की संभावना नहीं है.
इससे पहले फिट के साथ बातचीत में एक्सपर्ट्स ने चेताया था कि हमें इसे कोरोना की काट के तौर पर प्रमोट करने से बचना चाहिए और न ही इसके संभावित फायदे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना चाहिए.
क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे के मुताबिक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल का जो पॉजिटिव रिजल्ट रहा है, वो सभी कोविड रोगियों लिए नहीं है, ये थेरेपी उन मरीजों के इलाज में मददगार हो सकती है, जिनमें एंटीबॉडी डेवलप नहीं हो या जिनमें पर्याप्त एंटीबॉडी न बने, जिनमें कोमॉर्बिडिटी हो और पेशेंट हाई रिस्क ग्रुप में आता हो.
डॉ. रे ने बताया था कि हम इस दवा को किसी भी पेशेंट को ऐसे ही नहीं दे सकते हैं.
वहीं WHO के पैनल ने इस ट्रीटमेंट से जुड़े लागत और संसाधन निहितार्थों को भी स्वीकार किया है, जो निम्न और मध्यम आय वाले देशों तक इसकी पहुंच को चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं. उदाहरण के लिए, इसमें गंभीर रूप से बीमार रोगियों की पहचान करने के लिए तेजी से सीरोलॉजिकल टेस्ट की आवश्यकता होगी, विशेषज्ञ उपकरणों का उपयोग करके ट्रीटमेंट दिया जाना और एलर्जी प्रतिक्रियाओं के लिए रोगियों की निगरानी किए जाने की जरूरत होगी.
हालांकि, विशेषज्ञों के मुताबिक रोगियों में इसके फायदों को देखते हुए इसकी सिफारिश के साथ इसकी वैश्विक पहुंच में सुधार को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड्स कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन (CDSCO-Central Drugs Standards Control Organisation) ने मई 2021 में रोश इंडिया (Roche India) को उसकी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल Casirivimab और Imdevimab के इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन (EUA) की मंजूरी दी थी.
अमेरिकी कंपनी एली लिली एंड कंपनी (Eli Lilly and Company) को भी उसकी मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दवाओं (Antibody Drugs) के आपातकालीन इस्तेमाल की मंजूरी मिल चुकी है.
भारत में सर गंगाराम अस्पताल में 1 जून 2021 से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कॉकटेल थेरेपी का इस्तेमाल शुरू किया गया. एक रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के जिन अस्पतालों में एंटीबॉडी कॉकटेल का इस्तेमाल किया गया, उन्हें इसके अच्छे नतीजे मिले हैं.
लेकिन अच्छे नतीजों का मतलब है ये बिल्कुल नहीं है कि हर कोरोना पॉजिटिव पेशेंट को यह दी जा सकती है.
डॉ. रे समझाते हैं कि किसी भी बीमारी के अलग-अलग फेज में अलग-अलग सबसेट में अलग-अलग ट्रीटमेंट की जरूरत पड़ती है. ये हर मेडिसिन के साथ जरूरी है कि किस सबसेट में किस टाइम पर किस डोज में दवा देनी है, ये सेलेक्शन बेहद अहम होता है.
(IANS इनपुट के साथ)
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