कोरोना वायरस डिजीज-2019 (COVID-19) की दवा तैयार करने के लिए दुनिया भर में स्टडीज चल रही हैं. फिलहाल संक्रमित हुए लोगों को सपोर्टिव ट्रीटमेंट दिया जा रहा है और 150 से अधिक दवाइओं पर शोध किया जा रहा है. इनमें से ज्यादातर मौजूदा दवाएं हैं, जिनका इस वायरस के खिलाफ ट्रायल चल रहा है.

COVID-19: किस तरह की दवाइयां काम कर सकती हैं?

1. एंटीवायरल दवाइयां: जो कोरोना वायरस पर सीधे हमला करें और शरीर में उसे पनपने से रोक सकें.

2. दवाइयां जो इम्युन सिस्टम को अनियंत्रित होने से बचाएं: COVID-19 में इम्युन सिस्टम के ओवर रिएक्ट करने से भी मरीज गंभीर रूप से बीमार हो जाता है.

3. एंटीबॉडीज: सर्वाइवर के ब्लड से या लैब में तैयार एंटीबॉडी जो वायरस पर हमला कर सके.

हम यहां आपको उन दवाइयों के बारे में बता रहे हैं, जिनके भारत में कोरोना के इलाज में ऑफ-लेबल प्रयोग की मंजूरी है.

किसी दवा या थेरेपी के ऑफ-लेबल इस्तेमाल का क्या मतलब होता है?

किसी दवा के ऑफ-लेबल यूज का मतलब है कि जो उसका अधिकृत प्रयोग है किसी विशेष बीमारी के लिए उसके अलावा दूसरे किसी कंडिशन में उसका इस्तेमाल करना.

उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझ सकते हैं कि कोई दवा मलेरिया के लिए तैयार की गई थी, लेकिन उसकी एंटीवायरल प्रॉपर्टी को देखते हुए कोरोना में भी उसका प्रयोग किया जाए.

COVID-19 की कोई दवा नहीं है, इसलिए संक्रमितों के इलाज में जिन भी दवाइयों का इस्तेमाल हो रहा है, उन्हें ऑफ-लेबल कहा जा सकता है.

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार गंभीर स्थिति होने पर किसी दवा का ऑफ-लेबल यूज किया जा सकता है अगर संभावित फायदे का प्रमाण हो और इलाज के लिए कोई स्टैंडर्ड थेरेपी नहीं हो. इसके बारे में रोगियों को सूचित किया जाना और उनकी सहमति लेने के साथ ही मॉनिटरिंग भी होनी चाहिए.

भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से COVID-19 के लिए जारी क्लीनिकल मैनेजमेंट प्रोटोकॉल के मुताबिक इन दवाओं का उपयोग केवल निर्धारित रोगियों में किया जाना चाहिए:

रेमडेसिविर

रेमडेसिविर एक एंटीवायरल दवा है(फोटो: iStock)
ये एक एंटीवायरल दवा है, जिसे सबसे पहले 2014 में इबोला के इलाज में इस्तेमाल किया गया था.

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक रेमडेसिविर (इमरजेंसी यूज ऑथराइजेशन के तहत) को मॉडरेट बीमारी वाले उन रोगियों को दिया जा सकता है, जो ऑक्सीजन पर हों.

हालांकि इसका इस्तेमाल 12 साल से कम उम्र के बच्चों, प्रेग्नेंट या ब्रेस्ट फीड कराने वाली महिलाओं और किडनी की गंभीर बीमारी के मरीजों के लिए नहीं किया जा सकता है.

रेमेडिसविर रिकवरी में मदद कर सकता है और हो सकता है कि इसकी मदद से मरीजों को इंटेन्सिव केयर की जरूरत नहीं पड़े, लेकिन स्टडीज में अब तक कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिला है कि ये COVID-19 से होने वाली मौतों को रोक सकता है.

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टोसिलिजुमाब (Tocilizumab)

ये एक इम्युनोसप्रेसिव ड्रग है, जिसका इस्तेमाल रूमेटाइड अर्थराइटिस या बच्चों में होने वाले एक गंभीर अर्थराइटिस के इलाज में किया जाता है.

टोसिलिजुमाब का प्रयोग मध्यम बीमारी वाले उन रोगियों के लिए किया जा सकता है, जिनमें ऑक्सीजन की जरूरत लगातार बढ़ रही हो और वेंटिलेटर वाले मरीजों के लिए जिनकी हालत में स्टेरॉयड के बाद भी सुधार न हो रहा हो.

कोविड-19 में लॉन्ग टर्म सेफ्टी डेटा मालूम नहीं होने के कारण इनके उपयोग से पहले विशेष विचार किए जाने की सिफारिश की गई है.

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन

COVID-19: हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को ICMR की मंजूरी(फोटो: iStock)

हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन एंटी-मलेरिया दवा है. कार्डियोलॉजिस्ट और मेदांता हॉस्पिटल्स के फाउंडर डॉ नरेश त्रेहन के मुताबिक हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन 'इम्यून मॉड्यूलेटर' के तौर पर काम करता है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक कोरोना के इलाज में इस्तेमाल हो रही दूसरी दवाइयों की तरह ही इस दवा को लेकर भी सीमित सबूत हैं और इनका उपयोग चल रही स्टडीज के नतीजों की प्रतीक्षा करते हुए रोगियों के साथ साझा निर्णय के बाद ही किया जाना चाहिए.

प्लाज्मा थेरेपी

प्लाज्मा थेरेपी का आधार ये है कि जो लोग कोरोना संक्रमण से उबर चुके हैं, उनके ब्लड में ऐसे एंटीबॉडी होने चाहिए, जो वायरस पर हमला कर सकते हैं. इसलिए ठीक हुए लोगों का प्लाज्मा (वो हिस्सा जिसमें एंटीबॉडी होती है) लेकर बीमार लोगों में थेरेपी के तौर पर इस्तेमाल किया जाए.

स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी मॉडरेट बीमारी वाले उन मरीजों के लिए हो सकती है, जिनके लिए स्टेरॉयड के इस्तेमाल के बाद भी सुधार नहीं हो रहा हो. जैसे ऑक्सीजन की जरूरत बढ़ रही हो.

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Published: 03 Jul 2020,03:19 PM IST

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