कोरोना के दोबारा संक्रमण पर लैंसेट में एक केस स्टडी पब्लिश हुई है. ऐसे में वायरस के खिलाफ इम्युनिटी डेवलप होने पर सवाल उठ रहे हैं.

अगर ये वाकई दोबारा संक्रमण का मामला है, तो हो सकता है कि SARS-CoV-2 का एक्सपोजर उतनी इम्युनिटी नहीं दे सके, जिससे सभी 100 प्रतिशत सुरक्षित रहे.
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इसमें बताया गया है कि अमेरिका में नेवाडा का एक 25 साल का मरीज पहली बार 18 अप्रैल को कोरोना पॉजिटिव टेस्ट किया गया था और दूसरी बार 5 जून को उसकी टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई, जबकि मई में फॉलो अप के दौरान उसे दो बार कोरोना निगेटिव पाया गया था.

दोनों बार के संक्रमण में वायरस के जीनोमिक एनालिसिस में आनुवांशिक रूप से महत्वपूर्ण अंतर देखा गया.

वहीं दूसरी बार हुए संक्रमण के लक्षण पहली बार से ज्यादा गंभीर थे, जिसके चलते उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. ये मामला इक्वाडोर के दोबारा संक्रमण के मामले से मिलता-जुलता है, जहां दूसरी बार का संक्रमण ज्यादा गंभीर पाया गया, लेकिन नीदरलैंड्स और हॉन्गकॉन्ग में सामने आए दोबारा संक्रमण के मामले में दोनों ही बार समान रूप से गंभीर बीमारी देखी गई थी.

एक्सपर्ट्स का कहना है कि रीइंफेक्शन की स्थिति दुनिया भर में महामारी के खिलाफ चल रही लड़ाई पर बड़ा असर डाल सकती है. हालांकि इस पर और ज्यादा रिसर्च किए जाने की जरूरत है.

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COVID-19 वैक्सीन के लिए दोबारा संक्रमण का क्या मतलब है?

वैक्सीन कितने समय के लिए प्रभावी होगी और लोगों को कितनी बार इसके खुराक की जरूरत होगी, इसके नतीजे पर पहुंचने के लिए ये (दोबारा संक्रमण जैसी) बातें महत्वपूर्ण हैं. इसका मतलब ये भी हो सकता है कि जो लोग एक बार ठीक हो चुके हैं, उन्हें भी टीका लगवाना पड़ सकता है.

वायरस के खिलाफ हमारी लड़ाई में वैक्सीन महत्वपूर्ण है, लेकिन COVID-19 के प्रति इम्युनिटी और यह कितने समय तक रहती है, इसे लेकर उभरते सवालों के साथ हमें दूसरी सभी सावधानियों जैसे हाथ धोना और मास्क पहनने को लेकर कोई लापरवाही नहीं करनी चाहिए.

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Published: 13 Oct 2020,03:45 PM IST

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