एक लैब स्टडी से पता चला है कि कोरोना वायरस का दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट Pfizer Inc/BioNTech SE की कोरोना वैक्सीन से मिलने वाली एंटीबॉडी प्रोटेक्शन में दो-तिहाई की कमी ला सकता है.
रॉयटर्स की इस रिपोर्ट के मुताबिक फिर भी कंपनी अपने mRNA वैक्सीन या बूस्टर शॉट के अपडेटेड वर्जन के बारे में रेगुलेटर से बात कर रही है.
अध्ययन के लिए, कंपनी और यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास मेडिकल ब्रांच (UTMB) के वैज्ञानिकों ने एक इंजीनियर्ड वायरस विकसित किया, जिसमें समान रूप से दक्षिण अफ्रीका में खोजे गए अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस वैरिएंट के स्पाइक हिस्से में हुए म्यूटेशन (उत्परिवर्तन) थे, जिसे B.1.351 के नाम से जाना जाता है.
वायरस द्वारा मानव कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला स्पाइक, कई COVID-19 टीकों का प्राइमरी टारगेट है.
ये निष्कर्ष न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (NEJM) में प्रकाशित हुए हैं.
वायरस से बचाव के लिए एंटीबॉडी के किस स्तर की आवश्यकता है, यह निर्धारित करने के लिए अभी तक कोई स्थापित बेंचमार्क नहीं है. इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि एंटीबॉडी सुरक्षा में दो-तिहाई की कमी दुनिया भर में फैल रहे इस वैरिएंट के खिलाफ वैक्सीन को बेअसर करेगी या नहीं.
हालांकि, UTMB के प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक पेई-योंग शी का मानना है कि फाइजर वैक्सीन दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के खिलाफ संभावित रूप से सुरक्षात्मक होगी.
यहां तक कि अगर इस वैरिएंट के कारण वैक्सीन का असर घटता है, तो भी वैक्सीन गंभीर बीमारी और मौत से बचाने में मददगार होनी चाहिए.
मॉडर्ना द्वारा भी इसी तरह के डेटा में दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट के खिलाफ एंटीबॉडी लेवल में छह गुनी गिरावट देखी गई. हालांकि कंपनी ने ये भी कहा कि इस वैरिएंट के खिलाफ उसकी वैक्सीन की असल एफिकेसी का निर्धारण किया जाना बाकी है.
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Published: 18 Feb 2021,03:45 PM IST