आधी रात को पूरे शरीर को निचोड़ देने वाले तकलीफदेह दर्द के साथ नींद खुल जाने की कल्पना करें. आप हिल नहीं पा रहे हैं, न सो पा रहे हैं, न कुछ सोच पा रहे हैं. आपको फौरन मेडिकल हेल्प की जरूरत है, लेकिन आप बाहर नहीं जा सकते क्योंकि कोरोनावायरस महामारी के चलते लॉकडाउन है.
अनुभा महाजन के साथ शनिवार रात ऐसा ही हुआ.
अनुभा को कॉम्प्लेक्स रीजनल पेन सिंड्रोम (CRPS) है, जो उनके पेरिफेरल और सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर असर डालता है. वह और उनके जैसे और क्रॉनिक बीमारियों से पीड़ित कई और लोगों को कभी भी अचानक दौरा पड़ने या शरीर में तेज दर्द का सामना करना पड़ सकता है. ऐसे हालात में, उन्हें या तो अस्पताल जाने या किसी मेडिकल प्रैक्टिशनर को घर बुलाने की जरूरत पड़ सकती है.
लेकिन महामारी के दौरान, यह मुमकिन नहीं है. लॉकडाउन, संक्रमण का जोखिम, सोशल डिस्टेंसिंग और आइसोलेशन ने उन्हें उस हालत में पहुंचा दिया है, जिसमें अनुभा शनिवार को थीं- दर्द खत्म होने की दुआ और इंतजार.
COVID-19 महामारी ने हम सभी पर असर डाला है और हमारी दिनचर्या को पूरी तरह बदल दिया है. हमें घर पर रहने, सफाई का ख्याल रखने और खुद को आइसोलेट करने की सलाह दी जा रही है. लेकिन ऐसी अनगिनत वजहें हैं, जिनसे सोशल डिस्टेन्सिंग और संक्रामक बीमारियों की महामारी खासकर क्रॉनिक बीमारी वाले लोगों के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है.
सबसे पहली बात, वे हाई रिस्क श्रेणी के हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, ज्यादा उम्र वाले और किसी भी उम्र के ऐसे लोग जिनको गंभीर स्थायी बीमारी है, नोवल कोरोनवायरस के कारण होने वाली बीमारी से ज्यादा गंभीर जटिलताओं की वजह से हाई रिस्क जोन में हो सकते हैं. एक अपेक्षाकृत नाजुक इम्युनिटी उन्हें इन जटिलताओं का आसान शिकार बनाती है, और यही वजह है कि बाहर जाना, खासकर किसी अस्पताल में, बहुत जोखिम भरा हो सकता है.
दूसरी बात, कर्फ्यू या लॉकडाउन में, यहां तक कि एक डॉक्टर के लिए भी आपात स्थिति में उनके घर पहुंचना मुश्किल है, खासकर अगर उनके पास अपना निजी वाहन नहीं है. परिवहन की समस्या और संक्रमण का जोखिम किसी के भी समय पर पहुंचने में बड़ी रुकावट हो सकता है.
असल में, अनुभा की सोसायटी ने नौकरानियों और ड्राइवरों के लिए अपने दरवाजे बंद कर दिए हैं, जिसका मतलब है कि उनका ड्राइवर, जो छह महीने से उनके साथ है और जानता है कि जब उनकी बीमारी गंभीर होती है तो उसे क्या करना है, अब उनकी देखभाल के लिए मौजूद नहीं है.
सोशल मीडिया पर मदद की गुहार के बाद, आखिरकार अनुभा को कोई अस्पताल ले जाने वाला मिल गया. लेकिन दोबारा शरीर में ऐसी ऐंठन होने के बारे में वह सोचकर परेशान हैं. “अगली बार क्या होगा?”
पूर्वा मित्तल को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी है, यह एक दुर्लभ आनुवांशिक बीमारी हैं, जिसमें एक खास न्यूरॉन सभी मांसपेशियों की गतिविधियों को रोकता है और फेफड़ों की क्षमता पर असर डालता है. यह सबसे खतरनाक आनुवांशिक बीमारियों में से एक है, जिसमें 90 फीसद लोग 10 साल की उम्र तक दम तोड़ देते हैं और जो जिंदा बचते हैं, उनमें से बहुत से अधूरा जीवन जीते हैं.
यह उनके लिए आइसोलेशन को गंभीर परेशानी बनाता है. वह कहती हैं कि अस्पताल जाना उनके लिए अंतिम रास्ता है क्योंकि वह संक्रमण के प्रति बहुत संवेदनशील है. लेकिन दूसरी ओर, मेडिकल निगरानी और फिजियोथेरेपी की भी लगातार जरूरत है. “हमें अकेला नहीं छोड़ा जा सकता है. मुझे हमेशा अपने पास किसी न किसी की जरूरत होती है. तो हम क्या करें? हम हालात का सामना कैसे करेंगे?”
यह जानकर कि दूसरे देश महामारी के चरम स्थिति में पहुंचने पर कैसे निपट रहे हैं, पूर्वा और अनुभा की आशंकाओं को और डरावना बना देता है.
वह कहती हैं, “हम किसी भी चीज़ के बारे में पक्के तौर पर नहीं जानते हैं.”
दिल्ली में UCMS और GTB अस्पताल में कम्युनिटी मेडिसिन के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ खान अमीर मारूफ फिट को बताते हैं, “अक्सर, क्रॉनिक बीमारियां छिपी हुई होती हैं और नतीजन उपेक्षित रहती हैं. क्रॉनिक बीमारी वाले लोगों को लंबे समय तक दवा की जरूरत होती है और अगर इसमें रुकावट आती है, तो उनके लक्षण तेज हो जाएंगे और बीमारी बढ़ जाएगी.”
वह कुछ सुझाव देते हैं जो हालात को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं:
इनका डर तब और बढ़ जाता है जब आम लोग उन दवाओं और पेन किलर की जमाखोरी करने लगते हैं, जिन पर क्रॉनिक बीमारियों के लोग निर्भर करते हैं. अनुभा कहती हैं, “मैंने एक आदमी को पैरासिटामॉल के 12 पैकेट खरीदते देखा. 12 पैकेट! हमारे लिए क्या बचेगा?” वह गुजारिश करती हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए. लोग बिना जरूरत दवाओं को इकट्ठा न करें और उन लोगों को वंचित न करें, जो इनके बिना जिंदा नहीं रह सकते हैं.
इन मुश्किल समय में, समाधान समाज से आना चाहिए. आसपास खतरे में पड़े लोगों को जानना व पहचानना और उन पर निगाह रखना जरूरी है. खुद भी सावधानियों का पालन करना जरूरी है क्योंकि बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए इससे बेहतर कोई तरीका नहीं है.
“बाहर मत जाओ, हमारे वास्ते मत जाओ!”
(क्रॉनिक पेन इंडिया, भारत में क्रॉनिक बीमारियों और क्रॉनिक दर्द से पीड़ित मरीजों के लिए एक सपोर्ट ग्रुप है. यहां सपोर्ट ग्रुप द्वारा खतरे वाले लोगों और उनकी देखभाल करने वालों के लिए तैयार COVID-19 के लिए गाइडलाइंस दी गई है.)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)
Published: 30 Mar 2020,06:13 PM IST