कोरोना वायरस डिजीज की रोकथाम के लिए वैक्सीन के विकास को लेकर हमें बीते दिनों कई अच्छी खबरें मिली हैं.

यूके ने Pfizer-BioNTech की वैक्सीन को मंजूरी दे दी है, अमेरिका में भी जल्द ही कम से कम दो वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने की उम्मीद है. भारत में भी जनवरी, 2021 तक कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी अप्रूवल दिए जाने की उम्मीद जताई गई है.

वैक्सीन को लेकर इन गुड न्यूज का बच्चों के लिए क्या मतलब है? क्या बच्चों को भी दी जाएगी COVID-19 वैक्सीन? क्या बच्चों पर अलग से ट्रायल किया गया है? क्या बच्चों को कोरोना वैक्सीन की जरूरत है? इन्हीं सवालों का जवाब फिट यहां दे रहा है.

क्या बच्चों को कोरोना वैक्सीन की जरूरत है?

भले ही यह बीमारी बच्चों में कम गंभीर पाई गई है, फिर भी बच्चे संक्रमित हो सकते हैं और अपने आसपास के लोगों में संक्रमण फैला सकते हैं.

85 हजार COVID मामलों और उनके 6 लाख संपर्कों पर साइंस जर्नल में छपी एक स्टडी में पाया गया कि सभी उम्र के बच्चे वायरस से संक्रमित हो सकते हैं और इसे दूसरों में फैला सकते हैं.

15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में भारत की लगभग 26% आबादी शामिल है. इसलिए आखिर में आबादी के इस हिस्से का टीकाकरण जरूरी हो जाता है.

इसके अलावा, बच्चों में कोरोना के साथ विशिष्ट जटिलताएं (कावासाकी डिजीज के लक्षण और मल्टीसिस्टम इन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम इन चिल्ड्रेन) भी रिपोर्ट की गई हैं.

इसलिए भले ही बच्चों में गंभीर संक्रमण का खतरा कम हो, लेकिर यह रिस्क मौजूद रहता है, खासकर तब जब उन्हें दूसरी मेडिकल समस्याएं हों.

क्या कोरोना वैक्सीन के ट्रायल में बच्चों को शामिल किया गया है?

वैक्सीन के ट्रायल कई स्टेज में होते हैं, जिसकी शुरुआत हेल्दी वयस्कों के साथ होती है. जब वैक्सीन इन पर सुरक्षित निकलती है, तो स्टडी का दायरा बढ़ाया जाता है और यंग व बुजुर्ग लोगों को शामिल किया जाता है.

जिन कंपनियों ने इमरजेंसी अप्रूवल के लिए अप्लाई किया है, उन्होंने वयस्कों को वैक्सीन दिए जाने की मंजूरी ली है, बच्चों के लिए नहीं. ऐसा इसलिए है क्योंकि बड़े पैमाने पर हुए ट्रायल बच्चों पर नहीं हुए हैं.

मॉडर्ना ने 2 दिसंबर को बताया था कि वो 12 से 17 साल के बच्चों पर वैक्सीन की टेस्टिंग शुरू करेगी, जिसमें कम से कम 3 हजार बच्चों को शामिल किया जाएगा. लेकिन अभी ऐसे पार्टिसिपेंट्स का रिक्रूटमेंट शुरू नहीं हुआ है.

Pfizer ने अक्टूबर में 12 साल के बच्चों पर टेस्टिंग शुरू की थी, हालांकि 95% एफिकेसी वयस्कों में पाई गई है और यूके में इस वैक्सीन के इमरजेंसी यूज की मंजूरी 16 साल से ज्यादा उम्र की लोगों के लिए दी गई है.

भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया की कोविशील्ड के तीसरे फेज के ट्रायल में भी 18 साल से ज्यादा की उम्र वाले वॉलंटियर्स को शामिल किया गया है.

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बच्चों के लिए अलग ट्रायल करने की जरूरत क्यों है?

वैक्सीन ट्रायल आमतौर पर वयस्कों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने और उभरने वाले किसी भी संभावित जोखिम को कम करने के लिए किया जाता है. एक वैक्सीन जो वयस्कों में सुरक्षित और प्रभावी है, जरूरी नहीं कि वह बच्चों के लिए सुरक्षित हो.

बच्चों में आम तौर पर अधिक सक्रिय इम्युन सिस्टम होता है, जिससे टीकाकरण के प्रति मजबूत प्रतिक्रिया हो सकती है, जिसमें तेज बुखार, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में दर्द और थकान शामिल है. जरूरी डोज की संख्या और डोज के बीच गैप उम्र पर निर्भर कर सकती है.

वेंडरबिल्ट यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ और CDC में वैक्सीन के सलाहकार डॉ विलियम शेफनर न्यूयॉर्क टाइम्स को बताते हैं कि अलग-अलग ट्रायल बच्चों में वैक्सीन के काम पर अधिक स्पष्टता देंगे.

हालांकि, ज्यादातर मामलों में, वैक्सीन बच्चों और वयस्कों में समान रूप से काम करती हैं, जबकि वैक्सीन का डोज अलग हो सकता है. जैसे हेपेटाइटिस B की वैक्सीन के साथ है, वयस्कों और बच्चों के लिए अलग-अलग डोज की जरूरत होती है. मॉडर्ना बच्चों में उसी डोज की स्टडी करेगी जो उसने वयस्कों में टेस्ट किया है.

बच्चों के लिए कब तक आएगी कोरोना वैक्सीन?

दुनिया भर के विशेषज्ञों ने कहा है कि ऐसा जल्द नहीं होने वाला है.

जैसा कि चर्चा की गई है, बच्चों को लेकर क्लीनिकल ट्रायल की कमी का मतलब है कि बच्चों के लिए इसकी सेफ्टी के बारे में नहीं पता है.

उदाहरण के लिए, फाइजर को दी गई इमरजेंसी यूज की मंजूरी केवल 16 साल से अधिक आयु के लोगों के लिए है. मॉडर्ना का एप्लिकेशन भी केवल वयस्कों के लिए ही सीमित है.

फिट के साथ बातचीत में वायरोलॉजिस्ट और अशोका यूनिवर्सिटी के त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के चेयरपर्सन डॉ शाहिद जमील ने ठीक यही कहा, “सभी वैक्सीन का ट्रायल 18 साल और उससे अधिक उम्र के लोगों में किया गया है. चूंकि बच्चों में सुरक्षा और प्रभावकारिता का टेस्ट नहीं किया गया है, इसलिए वैक्सीन बच्चों के लिए मंजूर नहीं होगी.”

अमेरिका में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ एंथोनी फाउची के मुताबिक जब आपके पास एक नई वैक्सीन जैसी स्थिति होती है, तो बच्चे और प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए उसकी सुरक्षा आप पूरी तरह से सुनिश्चित करना चाहते हैं.

डॉ फाउची ने कहा, "इसलिए बच्चों को वैक्सीन देने से पहले उसकी सुरक्षा और असर वयस्क आबादी पर स्थापित हो जानी चाहिए."

सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) के CEO अदार पूनावाला ने भी हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशिप समिट 2020 में कहा था कि भारत में वैक्सीन उपलब्ध होने के बाद बच्चों के लिए ये सबसे आखिर में उपलब्ध होगी.

क्या बच्चों को वैक्सीन दिए जाने के मामले में इंतजार किया जा सकता है?

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बच्चों पर ट्रायल नहीं किया गया है और शुरुआत में वैक्सीन की सीमित आपूर्ति होगी, हमारे पास इंतजार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है.

डॉ शाहिद जमील फिट को बताते हैं कि फिलहाल वयस्क लोगों को वैक्सीन देना ही संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए काफी होगा. इससे हर्ड इम्यूनिटी जनरेट हो सकती है, कोरोना से मौत के मामले घट सकते हैं और इस तरह महामारी पर कंट्रोल किया जा सकता है.

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