एक वायरस जो पिछले साल दिसंबर से पहले कभी नहीं देखा गया था, उससे दुनिया भर में 294,110 से ज्यादा संक्रमित हो चुके हैं और ये 12,944 से अधिक जिंदगियां लीलने में कामयाब रहा है- वो भी सिर्फ तीन महीनों के भीतर.
जी हां, नोवल कोरोनावायरस से दुनिया संघर्षरत है, भ्रमित है, लेकिन इसके खात्मे के लिए प्रतिबद्ध भी है. सभी देश अपनी क्षमता भर, कोशिशों में जुटे हैं और तरह-तरह की रणनीतियों से बीमारी पर काबू पाने और नुकसान को कम करने की कोशिश कर रहे हैं- ताकि इससे उनका हेल्थ केयर सिस्टम चरमरा न जाए.
इधर, दक्षिण कोरिया सबसे अलग दिख रहा है. इस देश में COVID-19 से मृत्यु दर एक फीसद से भी कम है, जबकि इसकी तुलना में विश्व औसत 3 फीसद से ज्यादा है. वह भी एक समय चीन के बाहर सबसे ज्यादा प्रभावित देश होने के बावजूद. दक्षिण कोरिया ने ये कैसे किया?
दक्षिण कोरिया के हालात पर एक नजर डालने से सब साफ हो जाएगा.
फरवरी के मध्य तक, दक्षिण कोरिया में COVID-19 के सिर्फ 30 कन्फर्म मामले थे. हालांकि 31वां मरीज देश का ‘विस्तारक-महाबली’ बन गया. ‘केस -31’, जो कि एक महिला को नाम दिया गया है, ने चर्च की प्रार्थनाओं में हिस्सा लिया था, जिसमें हर बार 500 से ज्यादा लोग मौजूद थे.
अगले 12 दिनों में दक्षिण कोरिया में मरीजों की संख्या में सबसे तेज वृद्धि देखी गई, करीब 2900 नए मामले (इनमें ज्यादातर चर्च प्रार्थनाओं में शामिल हुए थे) सामने आए.
29 फरवरी को, 900 से ज्यादा नए मामले दर्ज किए गए. इसने 3000 की संख्या के साथ दक्षिण कोरिया को चीन के बाद, जहां पहले बीमारी की शुरुआत हुई थी, दूसरा सबसे ज्यादा COVID-19 मरीजों वाला देश बना दिया. इस देश में रोजाना 900 से ज्यादा नए मामले सामने आ रहे थे.
इसके बाद एक मनोवैज्ञानिक वार्ड और एक कॉल सेंटर से बड़ी संख्या में मरीजों की खबर आई.
लेकिन रोजाना 900 नए मामलों की चरम स्थिति से, दक्षिण कोरिया मरीजों की संख्या रोजाना 100 से कम पर लाने में कामयाब रहा.
हालांकि बृहस्पतिवार 19 मार्च को दाइग्यू शहर के एक नर्सिंग होम में प्रकोप के बाद कोरिया सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (KCDC) द्वारा 152 नए मामलों की रिपोर्ट देने से नए मामलों में लगातार कमी में रुकावट आ गई.
लेकिन हकीकत अपनी जगह कायम है. दक्षिण कोरिया वो करने में कामयाब रहा, जो कोई भी दूसरा देश नहीं कर सका, वह भी बिना किसी बड़े लॉकडाउन या यात्रा पाबंदी के. आइए ठीक से समझते हैं कि यह कैसे हुआ.
दक्षिण कोरिया ने 2.70 लाख से ज्यादा लोगों का टेस्ट किया है- हर 10 लाख की आबादी पर लगभग 5200 टेस्ट. इसकी तुलना अमेरिका के प्रति 10 लाख की आबादी पर 74 परीक्षणों से करें.
ये दक्षिण कोरिया के रोजाना 20,000 टेस्ट के मुकाबले भारत के 600 की संख्या देखें. जाहिर है दक्षिण कोरिया भरपूर संख्या में टेस्ट कर रहा है.
दक्षिण कोरिया ने देश में वायरस की सूचना मिलने से बहुत पहले ही महामारी की तैयारी शुरू कर दी थी. अल जज़ीरा के एक लेख के अनुसार, चीन ने जब जनवरी में पहली बार वायरस का जेनेटिक सीक्वेंस जारी किया था, तभी से कम से कम चार दक्षिण कोरियाई फर्मों ने सरकार के साथ मिलकर टेस्ट किट बनाना और स्टॉक करना शुरू कर दिया था. देश ने बहुत पहले 7 फरवरी को पहला टेस्ट शुरू करने की मंजूरी दी थी. और जब सच में महामारी फैली तो दक्षिण कोरिया रोजाना 10,000 से ज्यादा लोगों के टेस्ट की क्षमता के साथ तैयार था.
दूसरी तरफ भारत है, जहां हर बीतते दिन के साथ COVID-19 मामलों में लगातार बढ़ोतरी देखने को मिल रही है, अभी भी अपनी लैब में केवल 6000 सैंपल का टेस्ट करने में सक्षम है, जैसा कि भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने बताया है. प्राइवेट लैब के मैदान में उतरते ही यह संख्या बदल जाएगी.
दोनों देशों की आबादी पर एक नजर डालें और साफ हो जाएगा कि यहां कितने निराशाजनक और हताशाजनक हालात हैं.
टेस्टिंग किट बनाना एक मुद्दा है. लेकिन टेस्टिंग सुविधाओं को उपलब्ध करना, सुविधाजनक बनाना और तेजी एक और कामयाबी है, जिसे दक्षिण कोरिया ने सफलतापूर्वक हासिल किया है. दक्षिण कोरिया द्वारा ‘ड्राइव-थ्रू क्लीनिक’ खोलने की नई पहल की ब्रिटेन और अमेरिका सहित अन्य देशों द्वारा नकल की जा रही है. लॉस एंजिल्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसमें मरीज की पूरी टेस्टिंग प्रक्रिया में 10 मिनट से ज्यादा का समय नहीं लगता, मरीज अपनी कार के अंदर ही बैठा रहता है और एक संक्षिप्त प्रश्नावली, टेंपरेचर की जांच के साथ नोज-स्वैब ले लिया जाता है. इसमें ये भी फायदा होता है कि अन्य संभावित संक्रमित व्यक्तियों के साथ न्यूनतम संपर्क हो- जिसका क्लीनिक में जाने पर जोखिम होता है.
इसके अलावा, दक्षिण कोरिया ने टेस्टिंग के लिए घर जाने के अलावा मोबाइल टेस्टिंग स्टेशन और अस्पतालों में कंसल्टेशन फूड बूथ भी बनाए हैं, जो कुछ ही घंटों के भीतर नतीजे दे सकते हैं.
दक्षिण कोरिया प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल कई तरीकों से करने में सफल रहा है. एक GPS एप क्वॉरन्टीन किए गए शख्स को ट्रैक करता है और अगर वह बाहर जाता है तो अलार्म बज उठता है. देश में प्रवेश करने वाले लोगों को भी सरकार के अधीन चलने वाले ऐप पर अपने लक्षणों को दर्ज करना जरूरी है. इसके साथ ही वो सभी लोग जो सेल फोन रखते हैं, नियमित रूप से आसपास के क्षेत्रों के बारे में अलर्ट प्राप्त करते हैं, जो संक्रमित हो सकते हैं- जिससे कि वे वहां जाने से बच सकें.
ध्यान देने वाली बात यह है कि, दक्षिण कोरिया ने शुरुआती चरण में ही, कसौटी तय कर दी थी कि जिसने भी विदेश की यात्रा की है, उसे टेस्ट कराना ही होगा- जो कि अब भी भारत कर रहा है (विदेश से आए शख्स के संपर्क में आने वाले लोगों का भी पता लगाया जा रहा है), जहां COVID-19 अभी ‘लोकल ट्रांसमिशन फेज’ में नहीं पहुंचा है.
इस बार दक्षिण कोरिया तैयार था.
लेकिन यह मिडिल ईस्ट रेसपिरेटरी सिंड्रोम (MERS) फैलने के बाद हुआ, जिसने 2015 में दक्षिण कोरिया को चपेट में लिया और करीब 40 मौतें हुईं थीं. आक्रामक तरीके से क्वॉरन्टीन, मरीजों का पता लगाने और टेस्टिंग के कारण दो महीने के भीतर इसका प्रकोप थम गया, लेकिन देश ने निरंतर तैयार रहने और भविष्य के लिए तैयार होने का महत्व सीख लिया था.
कोरिया यूनिवर्सिटी में संक्रामक रोग विशेषज्ञ किम वू-जू को साइंस पत्रिका को बताते हैं,
MERS के प्रकोप के दौरान सरकार द्वारा बनाए कानून से मुमकिन हुआ कि आज उसे पॉजिटिव टेस्ट वाले लोगों के ठिकाने का पता लगाने के लिए फोन और क्रेडिट कार्ड डेटा इस्तेमाल करने का अधिकार मिला- इस सूचना से दूसरों को सावधान करने में मदद मिली. यह भी महत्वपूर्ण है कि इस दौरान किसी की निजी पहचान उजागर नहीं की जाती है.
वुहान में सामने आया नोवेल कोरोनावायरस दक्षिण कोरिया के लिए खतरे की घंटी था- जिसने तुरंत टेस्टिंग किट तैयार करने के अपने प्रयासों को रफ्तार दे दी.
दक्षिण कोरियाई सरकार की सफलताओं को दुनिया भर में व्यापक रूप से स्वीकारा और सराहा गया है, देश को पूरी तरह से महामारी पर काबू पाने की घोषणा करने में अभी समय लगेगा. अभी एक नर्सिंग होम से मरीजों की संख्या 100 के पार जाने की सूचना आने से जाहिर है कि दक्षिण कोरिया को अपने कठोर उपायों और आक्रामक टेस्टिंग को जारी रखने की जरूरत है.
इसके अलावा, दक्षिण कोरिया अन्य भागों पर उतना ध्यान दिए बिना बड़े पैमाने पर महामारी के ‘क्लस्टर’ पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. किम वू-जू ने साइंस को बताया कि नए क्लस्टर का उभरना “कम्युनिटी प्रसार की शुरुआत” हो सकती है. आने वाले महीने दक्षिण कोरिया और दुनिया के लिए महत्वपूर्ण हैं.
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