देश एक स्वास्थ्य सेवा संकट का सामना कर रहा है और हमारी स्वास्थ्य प्रणाली चरमरा रही है. डॉक्टर ऐसे तरीकों की सिफारिश कर रहे हैं ताकि लोग घर पर रहकर भी कोविड मरीजों के लक्षणों को मैनेज कर सकें.

ऐसी ही एक 'तकनीक' को 'प्रोनिंग' कहा जाता है, जो उन मरीजों में ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाने वाला बताया जा रहा है जो या तो सांस की तकलीफ का अनुभव करते हैं या उनके ऑक्सीजन के स्तर में गिरावट हो रही हो.

सोशल मीडिया पर न सिर्फ डॉक्टर और लोग इसकी सिफारिश कर रहे हैं, बल्कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने भी COVID मरीजों की सेल्फ केयर के तौर पर इसे लेकर एक विस्तृत गाइडलाइन जारी किया है.

क्या है 'प्रोनिंग'? ये COVID मरीजों की मदद कैसे करता है? आपको इसे कब करना चाहिए और ये कैसे करना है?

फिट डॉ. राजेश कुमार पांडे, सीनियर डायरेक्टर और HOD, क्रिटिकल केयर, BLK-Max सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल और डॉ. प्रवीण गुप्ता, डायरेक्टर और HOD, न्यूरोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम से बात कर आपको विस्तार से इसकी जानकारी दे रहा है.

प्रोन पोजिशन क्या है?

'प्रोनिंग' कोई एक्सरसाइज नहीं है, बल्कि एक 'तिकड़म’ या 'पोजिशन' है जैसा कि नाम से पता चलता है.

"इसमें मरीज को अपनी छाती और पेट के बल लेटना होता है और गहरी सांस लेनी होती है."

डॉ. प्रवीण कहते हैं, "ये पोजिशन उन मरीजों में ऑक्सीजन लेवल को बेहतर बनाने में मदद करता है जो गंभीर हैं, ताकि वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत कम हो."

ये कोई विशेष नई तकनीक नहीं है.

वहीं, डॉ. राजेश कुमार पांडे बताते हैं कि मेडिकल प्रोफेशनल सालों से गैर कोविड कंडिशन में भी 'प्रोनिंग' का इस्तेमाल करते आ रहे हैं.

वो 10 साल पहले फ्रांस में की गई एक स्टडी का जिक्र करते हैं, जिसमें दिखाया गया था कि एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर वाले मरीजों की इससे मदद की गई थी.

"स्टडी से पता चला कि मॉडरेट से एक्यूट रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम (एआरडीएस) वाले मरीज जो वेंटिलेटर पर थे, उनकी मृत्यु दर में 16 घंटे की प्रोनिंग से काफी कमी आई, खासकर अन्य मामलों की तुलना में जिसमें प्रोनिंग को छोड़कर बाकी सब कुछ किया गया था."
डॉ. राजेश कुमार पांडे

तब से वेंटिलेटर वाले मरीजों के लिए प्रोनिंग एक मानदंड बन गया है, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें एआरडीएस या गंभीर रेस्पिरेटरी फेल्योर हो.

'प्रोनिंग' कैसे मदद करता है

डॉ. राजेश कुमार पांडे इसे समझाते हैं-

"हमारे फेफड़े लाखों छोटे गुब्बारों के संग्रह की तरह हैं जो हर सांस के साथ फूलते और खाली होते हैं." स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़े में ये एल्वियोली(Alveoli) अपना गोल आकार हवा निकलने के बाद भी बनाए रखते हैं.

"एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर में, जब आप सांस लेते हैं तो ये फूल जाते हैं, लेकिन जब आप सांस छोड़ते हैं तब गेंदों के आकार को बनाए रखने की बजाय वे मुरझा जाते हैं."

ये एक पल्मोनरी समस्या है जिसका COVID मरीजों को सामना करना पड़ता है.

इसके अलावा, "जब कोई व्यक्ति सपाइन पोजिशन(Supine Position) पीठ के बल पर लेटा होता है, तो दिल फेफड़ों पर दबाव डाल रहा होता है. इस वजह से फेफड़ों के कुछ हिस्से पूरी तरह से फूल नहीं पाते हैं."

"लेकिन जब हम वेंटिलेटेड मरीज को प्रोन पोजिशन में रखते हैं तो दिल का वजन छाती की हड्डियों और छाती की दीवारों पर पड़ता है, जिससे फेफड़े पूरी तरह से फूल जाते हैं, जिससे हवा की बेहतर आवाजाही होती है."
डॉ. राजेश कुमार पांडे

डॉ. पांडे के मुताबिक, एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर मरीजों को प्रोनिंग से कई तरीके से मदद मिलती है,

  • वेंटिलेशन का समान वितरण और पूरे ऑक्सीजेनेशन में सुधार.

  • वेंटिलेशन(लंग का फूलना) के साथ परफ्यूजन(ब्लड सप्लाई) में मदद.

  • गुरुत्वाकर्षण के कारण, फेफड़ों से स्राव भी वेंटिलेटर से जुड़े निमोनिया के जोखिम को कम करता है.

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COVID में प्रोनिंग

जब कोविड(Covid) से संबंधित रेस्पिरेटरी फेल्योर की बात आती है, तो डॉ. पांडे 2 प्रकार के मामलों की बात करते हैं. एक मरीज ऐसे होते हैं जो कोई भी बाहरी लक्षण या बेचैनी महसूस नहीं करते हैं, जिसे 'हैप्पी हाइपोक्सिया' कहा जाता है.

दूसरे वे मरीज हैं जो गंभीर हाइपोक्सिया और रेस्पिरेटरी फेल्योर के लक्षणों का अनुभव करते हैं.

"ये COVID के अहम खतरों में से एक है, विशेष रूप से हैप्पी हाइपोक्सिया वाले युवा मरीज तेजी से एक्यूट रेस्पिरेटरी फेल्योर विकसित कर सकता है." वो कहते हैं- "इस तरह से प्रोनिंग यहां काम आता है."

"मेडिकल प्रोफेशनल के तौर पर, हम COVID-19 से होने वाली मौतों को रोकने के तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं और प्रोनिंग एक ऐसी ही तकनीक है."

"शुरुआत में जब बीमारी इतनी गंभीर नहीं होती है और जब उन्हें सांस लेने में कठिनाई होने लगती है तो हम मरीजों को प्रोन पोजिशन में लेटने के लिए कहते हैं." डॉ. पांडे कहते हैं.

डॉ. पांडे अपने मरीजों की बात करते हैं जो इससे लाभान्वित हुए हैं.

“मेरे मरीजों ने कहा है कि जब वे रात को प्रोन पोजिशन लेते हैं तो वे बेहतर महसूस करते हैं. लोग ऑक्सीजन मास्क के साथ भी प्रोन पोजिशन में सो सकते हैं. ”
डॉ. राजेश कुमार पांडे

लेकिन इसकी अपनी सीमाएं हैं

कोरोना की स्थिति में प्रोनिंग का वैज्ञानिक रूप से परीक्षण नहीं किया गया है. इसकी बजाय, वेंटिलेटर स्टडी में देखे गए लाभों को इस मामले में लागू किया गया है. ”
डॉ. राजेश कुमार पांडे

इस कारण से, ये निश्चितता के साथ कहना मुश्किल है कि ये काम करता है और ये किस हद तक काम करता है.

"सिर्फ एक चीज जो हमें चाहिए वो है इसे वैज्ञानिक रूप से सिद्ध करना, लेकिन मौजूदा हालात में एक कंट्रोल्ड स्टडी करना बहुत मुश्किल होगा."- वो कहते हैं.

डॉ. पांडे का भी कहना है कि व्यावहारिक रूप से, दुनिया भर में, डॉक्टरों ने अपने मरीजों में इससे अहम अंतर देखा है.

वो आगे कहते हैं,

"इस पोजिशन से संबंधित कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं दिखा है, हालांकि, हमें ये ध्यान रखना चाहिए कि ऑक्सीजन के स्तर में सुधार के लिए प्रोनिंग एकमात्र समाधान नहीं है और इसे अन्य जरूरी उपचारों के साथ जोड़ा जाना चाहिए."
डॉ. प्रवीण गुप्ता

डॉ. पांडे ये भी कहते हैं, "प्रोनिंग सिर्फ तब किया जाना चाहिए जब आप सांस लेने में कठिनाई महसूस करते हैं या अगर आप पाते हैं कि आपका ऑक्सीजन स्तर गिर रहा है."

अगर आप किसी COVID लक्षण का अनुभव कर रहे हैं या सेल्फ क्वॉरंटीन हैं, तो आप पल्स-ऑक्सीमीटर का इस्तेमाल करके अपने ऑक्सीजन स्तर की निगरानी कर सकते हैं.

ऑक्सीजन मीटर को सही तरीके से कैसे रीड करें

डॉ. पांडे बताते हैं, "94 और उससे ऊपर के ऑक्सीजन का स्तर उन लोगों में स्वीकार्य माना जाता है जो रूम की हवा में सांस लेते हैं जिसमें 20% ऑक्सीजन होता है."

अगर आपको कोविड है और घर पर खुद देखभाल कर रहे हैं, तो ये महत्वपूर्ण है कि आप जानें कि ऑक्सीजन मीटर को सही ढंग से कैसे पढ़ा जाए.

हालांकि, इससे पहले, ये महत्वपूर्ण है कि आपके पास सही प्रकार का ऑक्सीजन मीटर हो.

डॉ. पांडे सुझाव देते हैं कि उंगली पर लगाकर जांच किए जाने वाले डिवाइस की जगह एक पोर्टेबल पल्स-ऑक्सीमीटर खरीदना चाहिए जो हार्ट रेट और एक ग्राफ (प्लीथोस्मोग्राफ-plethysmograph) दोनों दिखाता है.

रीडिंग में क्या गलतियां हो सकती हैं?

डॉ. पांडे के मुताबिक फिंगर प्रोब में अगर उंगली तक ब्लड सप्लाई ठीक से न हो रही हो, तो गलत रीडिंग की संभावना होती है.

  • ये उन लोगों में हो सकता है जिनका ब्लड प्रेशर कम है, क्योंकि ऐसे लोगों की उंगलियों में खून की सप्लाई अपेक्षाकृत कम होगी.

  • अन्य रुकावटें जैसे नेल पेंट भी रीडिंग को प्रभावित कर सकती हैं.

  • डिवाइस की एक और सीमा ये है कि ये बहुत सटीक नहीं हो सकता जब रीडिंग कम वैल्यू की आए.

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Published: 23 Apr 2021,06:33 PM IST

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