कोरोना महामारी के बीच इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियां जिनसे हर साल सैकड़ों मासूमों की जान को खतरा होता है, उसे लेकर क्या तैयारी है? क्या कोरोना का कहर बाकी बीमारियों की तैयारियों पर असर डाल रहा है?
सोमवार, 6 जुलाई को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाबा राघव दास (BRD) मेडिकल कॉलेज गोरखपुर का दौरा किया.
सीएम योगी ने बताया कि जापानी इंसेफेलाइटिस और AES के 90% मामले और ज्यादा मौतें इन्हीं मंडलों में दर्ज की जाती हैं.
इंसेफेलाइटिस, मॉनसून और पोस्ट मॉनसून यानी जुलाई से अक्टूबर के दौरान ये बीमारी अपने चरम पर होती है.
हर साल देश के किसी न किसी हिस्से में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम (AES) के प्रकोप से सैकड़ों मासूमों की मौत होती है.
साल 2017 का गोरखपुर त्रासदी की सुर्खियां याद होंगी आपको, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में मासूमों की मौत पर राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा हुई थी.
इसके बाद सीएम योगी की ओर से इंसेफेलाइटिस से प्रभावित जिलों में इसकी रोकथाम के लिए विशेष अभियान चलाने का निर्देश दिया गया, जैसे- साफ-सफाई का खास खयाल, दवाइओं, बेड की व्यवस्था और रैपिड रिस्पॉन्स टीम.
बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ गणेश कुमार ने फिट से बताया कि इस साल 4 जुलाई तक तकरीबन 70-75 मरीज भर्ती हुए, 10-15 की मरीजों की मौत हुई. उन्होंने कहा कि ऐसा लग रहा है, ये फिगर पूरे गोरखपुर मंडल की है.
कोरोना के कहर में इंसेफेलाइटिस को लेकर इंतजाम के सवाल पर उन्होंने कहा, "स्वास्थ्य विभाग की ओर से बचाव के पूरे इंतजाम किए गए हैं. वहीं अस्पताल में हमने बेड और ऑक्सीजन सप्लाई की पूरी व्यवस्था कर रखी है."
जैसा कि सीएम योगी ने दावा किया है कि बीमारी पर 60 फीसदी और मौतों पर 90 फीसदी नियंत्रण में कामयाबी मिली है. यूपी में साल 2018 से ही इंसेफेलाइटिस के मामलों और उससे होने वाली मौत में गिरावट का दावा किया जा रहा है.
BRD मेडिकल कॉलेज में मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ एके श्रीवास्तव कहते हैं कि पिछले साल AES के मामले कम थे.
ऐसे में क्या इस साल भी इंसेफेलाइटिस के ज्यादा मामले न आने की उम्मीद की जा सकती है?
डॉ एके श्रीवास्तव कहते हैं कि अभी इस क्षेत्र में AES का प्रकोप नहीं है और बरसात के बाद इसका प्रकोप बढ़ता है.
साल 2018 में बड़े पैमाने पर जापानी इंसेफेलाइटिस को रोकने के लिए वैक्सीनेशन प्रोग्राम चलाया गया.
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की फंडिंग बढ़ाई गई, जिससे वे अपने स्तर पर AES के मरीजों का बेहतर ढंग से इलाज कर पाएं.
जुलाई 2019 में दस्तक नाम का एक अभियान शुरू किया गया, इसमें घर-घर जाकर लोगों को संक्रमित बीमारियों से बचने और उनके इलाज की जानकारी दी जाती है.
सरकार की तरफ से बनाई गई योजना अच्छी है, लेकिन इस कोरोना काल में ये कदम जमीनी स्तर पर कितने बेहतर तरीके से उठाए गए हैं, आगे के हालात उसी से तय होंगे, नहीं तो कोरोना महामारी में किसी और बीमारी के प्रकोप की हमें बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी.
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Published: 06 Jul 2020,07:12 PM IST