दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल ने एक शॉर्ट वीडियो "चूल्हा" रिलीज किया है, जिसमें कोयले, उपले और लकड़ी जलाने से सेहत को होने वाले नुकसान के बारे में बताया गया है.
कई भारतीय घरों में खाना पकाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल होता है, लेकिन इससे निकलने वाला धुआं खाना पका रही महिलाओं और बच्चों की सेहत पर बहुत बुरा असर डालता है.
खाना पकाने के लिए या ठंड में गर्माहट के लिए जहां लकड़ी, कोयला जैसे ठोस ईंधन जलाया जाता हो, वहां लोगों को लंग कैंसर और फेफड़ों की दूसरी कई बीमारियां होने का रिस्क बढ़ जाता है.
प्रदूषित हवा हमारे जीवन और सेहत के लिए कितनी खतरनाक है, ये साबित करने वाली तमाम रिपोर्ट हैं.
जैसे नवजात शिशुओं पर वायु प्रदूषण के वैश्विक प्रभाव का व्यापक विश्लेषण करने से पता चला कि बाहरी और घरेलू प्रदूषण के कारण साल 2019 में 1 महीने से कम के 1.16 लाख बच्चों की मौत हुई.
इसीलिए जहरीली होती हवा को स्वच्छ बनाने के विश्व स्वास्थ्य संगठन के 25 उपायों में खाना पकाने के लिए ऊर्जा के स्वच्छ विकल्प देना भी शामिल है.
बी.एल.के सुपर स्पेशिएलिटी हॉस्पिटल के सेंटर फॉर चेस्ट एंड रेस्पिरेटरी डिजीज के सीनियर डायरेक्टर और हेड ऑफ डिपार्टमेंट डॉ संदीप नायर फिट को इस आर्टिकल में बता चुके हैं कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से लंग कैंसर और कार्डियोपल्मोनरी बीमारी का रिस्क बढ़ता है.
पार्टिकल पॉल्यूशन ठोस और लिक्विड पार्टिकल का मिक्स होता है, जो कई तरह के केमिकल और जैव घटकों से बने होते हैं. ये पार्टिकल पावर प्लांट से आते हैं, लकड़ी, कोयला, डीजल और कई दूसरे जीवाश्म ईंधन के जलने से निकलते हैं.
धूल और धुएं से फेफड़ों को नुकसान पहुंचता है.
गंगाराम हॉस्पिटल में लंग सर्जन और लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर डॉ अरविंद कुमार इसीलिए कहते हैं कि हमें धूल और धुएं के हर स्रोत पर नजर रखने की जरूरत है.
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Published: 27 Nov 2020,02:53 PM IST