विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की वर्ल्ड रिपोर्ट ऑन हियरिंग के मुताबिक 2050 तक दुनिया भर में लगभग 2.5 अरब लोग (हर 4 में से 1 शख्स) किसी न किसी हद तक सुनाई न देने की समस्या से जूझ रहे होंगे. इनमें से करीब 70 करोड़ लोगों को हियरिंग लॉस (सुनाई न देना) की समस्या होने का अनुमान लगाया गया है.
फिलहाल दुनिया भर में 1.6 अरब लोग सुनने की क्षमता में गिरावट के साथ जी रहे हैं, जिनमें से 43 करोड़ लोगों को इसकी गंभीर समस्या है.
सुनने की क्षमता में गिरावट की क्या वजह होती है, इसके और क्या नुकसान हैं और इसकी रोकथाम के लिए क्या किया जा सकता है, यहां समझने की कोशिश करते हैं.
सुनने की क्षमता घटने के पीछे जो कारण हो सकते हैं, उनमें प्रमुख हैं- परिवार में पहले से ही इस समस्या का होना, संक्रमण, तेज शोर, कुछ तरह की दवाइयां और बढ़ती उम्र.
फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग के ईएनटी कंसल्टेंट, वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "हमारे देश में सुनने की क्षमता में कमी को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है. जन्मजात बहरापन या नवजात रोगों जैसे लंबे समय तक पीलिया, दिमागी बुखार के कारण नवजात शिशु की सुनने की क्षमता में थोड़ी या गंभीर स्तर की कमी आ सकती है."
जसलोक हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में ENT डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ गौरव चतुर्वेदी बताते हैं कि हियरिंग लॉस के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं.
लगातार शोर-शराबे के बीच रहने से कान को नुकसान पहुंचता है और इंसान की सुनने की क्षमता घटने लगती है.
डॉ के.के. अग्रवाल बताते हैं कि समय के साथ हर दिन होने वाले शोर से सुनने की क्षमता प्रभावित होती है. जोरदार शोर के बीच लगातार रहने से संवेदी तंत्रिका को नुकसान हो सकता है. 90 डेसिबल यानी डीबी (जो कि लॉन में घास काटने की मशीन या मोटरसाइकिल से निकलने वाले शोर के बराबर है) के संपर्क में 8 घंटे, 95 डीबी में 4 घंटे, 100 डीबी में 2 घंटे, 105 डीबी में एक घंटा और 130 डीबी (लाइव रॉक संगीत) में 20 मिनट ही रहने की मंजूरी दी जाती है.
विशेषज्ञों के मुताबिक सुनने की क्षमता में गिरावट से मानसिक विकास रुक सकता है. अमेरिका के ब्रिघैम एंड वूमेन्स हॉस्पिटल के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में 62 वर्ष की उम्र के 10,107 पुरुषों पर एक शोध किया गया था.
फोर्टिस हॉस्पिटल, शालीमार बाग के ईएनटी कंसल्टेंट, वीरेंद्र सिंह कहते हैं, "सुनने की क्षमता में गिरावट से जहां बड़ी उम्र के लोगों की याददाश्त में कमी और डिमेंशिया का खतरा रहता है, बच्चों में इसके कारण बोलने की क्षमता और दिमागी विकास में बाधा आ सकती है."
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के ईएनटी के सीनियर कंसल्टेंट सुरेश सिंह नारुका ने आईएएनएस से कहा,
कई कारकों को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है, जैसे- टीकाकरण और शोर पर प्रतिबंध लगाना.
यह सिफारिश की जाती है कि जो लोग लगातार 85 डीबी से अधिक के शोर के बीच रहते हैं, उन्हें मफ या प्लग का इस्तेमाल करें.
इसके अलावा कान के नुकसान की पहचान के लिए प्रारंभिक जांच और इलाज पर जोर दिया जाना जरूरी है.
कान के बाहरी भाग की मुलायम कपड़े से सफाई करिए
कान में दर्द, बहना या सुनने में कोई कठिनाई होने पर डॉक्टर के पास जाइए
डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं का ही इस्तेमाल करें
शोर भरे जगहों पर सुरक्षा के लिए कान में प्लग लगाइए
जसलोक हॉस्पिटल और रिसर्च सेंटर में ENT डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ गौरव चतुर्वेदी कहते हैं कि कानों की सफाई का ख्याल रखें, गंदे पानी से नहाने या गंदे पानी में तैरने से बचें क्योंकि इससे कानों में इन्फेक्शन हो सकता है.
कान में कोई नुकीली चीज न डालें
गंदे पानी में स्नान या तैरने से बचें
दूसरों से कान का फोन या कान का प्लग शेयर न करिए
काफी तेज आवाज में संगीत वगैरह न सुनें
डॉ चतुर्वेदी बताते हैं कि बच्चे को दूध पिलाते समय उसका सिर उठा हुआ रखें अन्यथा दूध गले और कान को जोड़ने वाले छोटे मार्ग से कान की कैविटी में पहुंच सकता है. इससे कान में सूजन के साथ दर्द हो सकता है.
डॉ वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि हियरिंग लॉस के कारण होने वाली किसी भी जटिलता से बचने के लिए हियरिंग एड, कोक्लियर इंम्पलांट, दवाइयों और करेक्टिव सर्जरी जैसे उपाय जल्द से जल्द उठाने चाहिए.
डॉ गौरव चतुर्वेदी जोर देते हैं, सुनिश्चित करें कि हमेशा विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लें और घर पर कोई प्रयोग न करें.
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