पिछले साल 2020 में कोरोना महामारी के शुरुआती चरण में भारत और दुनिया भर में हर्ड इम्यूनिटी (Herd Immunity) पर काफी चर्चा हुई.

जब हमारे पास COVID-19 की वैक्सीन नहीं थी, तब हर्ड इम्यूनिटी का प्रयास अच्छा आइडिया नहीं था. विशेषज्ञों ने सावधान किया था कि हर्ड इम्यूनिटी की उम्मीद में एक आबादी को संक्रमित होने देना, लोगों की जान जोखिम में डालना है.

लेकिन अब हमारे पास कोरोना की वैक्सीन है और कई देशों में टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, ताकि जल्द से जल्द से एक बड़ी आबादी को वैक्सीनेट किया जा सके. तो क्या अब कोरोना के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी की उम्मीद की जा सकती है?

हर्ड इम्यूनिटी क्या होती है?

हर्ड इम्यूनिटी का मतलब संक्रमण से अप्रत्यक्ष सुरक्षा है, जब एक आबादी में पर्याप्त रूप से इम्यून व्यक्तियों की एक बड़ी तादाद मौजूद होती है, तो इससे उन लोगों को भी सुरक्षा मिल जाती है, जो इम्यून नहीं हैं. इसे हर्ड इम्यूनिटी कहते हैं.

एपिडेमियोलॉजिस्ट और अशोका यूनिवर्सिटी में सीनियर एडवाइजर डॉ. ललित कांत बताते हैं कि किसी संक्रमण के प्रति इम्यून होने के दो तरीके हैं-

  1. प्राकृतिक संक्रमण के जरिए इम्यूनिटी
  2. वैक्सीन की मदद से किसी रोगाणु के खिलाफ इम्यून होना

मुंबई के ग्लोबल हॉस्पिटल सीनियर कंसल्टेंट और चेस्ट फिजिशियन डॉ. हरीश चाफले कहते हैं, "यहां पहले तरीके को किसी समस्या के समाधान के लिए एक अनैतिक दृष्टिकोण माना जा सकता है क्योंकि हर्ड इम्यूनिटी के लिए लोगों को वायरस से संक्रमित होने देने से मौत का जोखिम हो सकता है और साथ ही इसके दीर्घकालिक प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव भी देखे जा सकते हैं."

हर्ड इम्यूनिटी और कोरोना वायरस: COVID-19 के संदर्भ में क्या आशंकाएं हैं?

डॉ. ललित कांत कहते हैं,

हर्ड इम्यूनिटी की बुनियाद ये है कि जो लोग संक्रमण के कारण आसानी से प्रभावित हो सकते हैं या जिनमें इम्यूनिटी नहीं है, उनके आसपास इम्यून व्यक्तियों के जरिए इन्फेक्शन का ट्रांसमिशन ब्लॉक हो सकता है.

आम तौर पर यह माना जाता है कि एक संक्रमण स्थाई प्रतिरक्षा यानी इम्यूनिटी देता है और ऐसा ही एक वैक्सीन भी करती है. हालांकि डॉ. कांत के मुताबिक COVID-19 के संदर्भ में चीजें इतनी सरल नहीं हैं.

डॉ. चाफले कहते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के बारे में एक सटीक जवाब अभी भी स्पष्ट नहीं है क्योंकि रुझान हर दिन बदल रहे हैं.

ट्रेंड्स और अनुमानों में कई फैक्टर भूमिका निभाते हैं.

COVID-19: दोबारा संक्रमण हर्ड इम्यूनिटी के लिए बाधा

रीइन्फेक्शन हर्ड इम्यूनिटी को रोकने का एक मुख्य कारक साबित हो सकता है. डॉ. कांत बताते हैं कि इन्फेक्शन से बनी प्रतिरक्षा अनिश्चित अवधि की होती है.

अभी पूरे यकीन के साथ ये नहीं कहा जा सकता कि जो लोग SARS-CoV-2 कोरोना वायरस से संक्रमित हुए और ठीक होने के बाद उनके शरीर में जो एंटीबॉडी बनी हैं, वो उन्हें दोबारा इस वायरस के संक्रमण से बचा पाएंगी या नहीं और इससे कब तक सुरक्षा मिलेगी.

आम तौर पर संक्रमण जितना हल्का होता है, प्रतिरक्षा की अवधि उतनी ही कम होती है. एक संक्रमण के बाद विकसित एंटीबॉडी खत्म होने लगती हैं और कुछ स्टडीज में ये पाया गया कि कोरोना के खिलाफ एंटीबॉडीज केवल कुछ महीनों तक ही रहती हैं.
डॉ ललित कांत, सीनियर एडवाइजर, अशोका यूनिवर्सिटी

लैंसेट में छपी एक स्टडी में बताया गया था कि कोरोना संक्रमित होने के बाद भी SARS-CoV-2 के लिए स्थाई सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा (प्रोटेक्टिव इम्यूनिटी) का सबूत नहीं है.

डॉ. कांत कहते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी के विकास में प्राकृतिक संक्रमण से पैदा हुई रोग प्रतिरोधक क्षमता के प्रमुख भूमिका निभाने की संभावना नहीं है.

इसलिए, हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने के लिए आबादी के टीकाकरण का विकल्प बचता है. लेकिन इसकी भी अपनी चुनौतियां हैं, जो हर्ड इम्यूनिटी हासिल करना मुश्किल कर सकती हैं.

मौजूदा COVID-19 वैक्सीन की एफिकेसी

हर्ड इम्यूनिटी के लिए वैक्सीन की एफिकेसी और इम्यून हुई आबादी का प्रतिशत मुख्य है.

डॉ. कांत के मुताबिक SARS-CoV-2 के लिए बेसिक रिप्रोडक्शन नंबर R0 2.5–3.5 है यानी यह उन व्यक्तियों की संख्या है, जिनमें एक संक्रमित व्यक्ति संक्रमण फैलाने में सक्षम है.

हर्ड इम्यूनिटी विकसित करने का उद्देश्य R0 को 1 से कम करना है, ताकि संक्रमण सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय न बने.
डॉ. ललित कांत, सीनियर एडवाइजर, अशोका यूनिवर्सिटी

डॉ. कांत बताते हैं, "ऐसा पता चला है कि किसी महामारी को रोकने के लिए 60% एफिकेसी वाली वैक्सीन हो, तब 100% आबादी को वैक्सीनेट करने की जरूरत होगी. अगर वैक्सीन की एफिकेसी 100% है, तो 60% वैक्सीन कवरेज से भी फायदा होगा. 60% से कम एफिकेसी वाली वैक्सीन से हर्ड इम्यूनिटी हासिल नहीं की जा सकती है और महामारी पर अच्छी तरह से नियंत्रण नहीं हो सकता."

एक और मसला ये है कि मौजूदा वैक्सीन सिम्प्टोमैटिक डिजीज को रोकने में अच्छी हैं, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि क्या इनसे ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है और कितना रोका जा सकता है.
डॉ. ललित कांत, सीनियर एडवाइजर, अशोका यूनिवर्सिटी

जबकि हर्ड इम्यूनिटी के लिए ट्रांसमिशन को रोकना महत्वपूर्ण है.

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कितने प्रतिशत इम्यून लोगों से हर्ड इम्यूनिटी पाई जा सकती है? हमें नहीं पता

डॉ. हरीश चाफले बताते हैं कि COVID-19 के खिलाफ हर्ड इम्यूनिटी के लिए आबादी को किस अनुपात में वैक्सीनेशन की जरूरत है, यह ज्ञात नहीं है.

यह रिसर्च का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है और ये संभवतः समुदाय, वैक्सीन, टीकाकरण के लिए प्राथमिकता वाली आबादी और अन्य कारकों के अनुसार अलग-अलग होगा.
डॉ. हरीश चाफले, सीनियर कंसल्टेंट और चेस्ट फिजिशियन, ग्लोबल हॉस्पिटल, मुंबई

शुरू की स्टडीज में अनुमान लगाया था कि अगर 60 से 70 प्रतिशत आबादी कोविड से प्रतिरक्षित हो, तो हम हर्ड इम्यूनिटी हासिल कर सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मौजूदा अनुमानों में 85 से 95 प्रतिशत लोगों के इम्यून होने की आवश्यकता है.

दुनिया भर में कोरोनावायरस के नए वेरिएंट की पहचान

COVID-19 का कारण बनने वाले वायरस के कई वेरिएंट्स की पूरी दुनिया में इस महामारी के दौरान पहचान की गई है.

कोरोना के नए वेरिएंट्स से वायरस के ट्रांसमिशन की क्षमता बढ़ने, बीमारी की गंभीरता या बीमारी से मौत बढ़ने, पहले हुए संक्रमण या वैक्सीनेशन के मामले में एंटीबॉडीज घटने जैसी चुनौतियां हो सकती हैं.

नए वेरिएंट के आने से ये तस्वीर और भी जटिल हो गई है. मौजूदा वैक्सीन की नए वेरिएंट पर प्रभावशीलता अलग-अलग लेवल पर हैं.
डॉ. ललित कांत

वो कहते हैं कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भविष्य में वेरिएंट नहीं उभरेंगे, जो आगे भी वैक्सीन की प्रभावशीलता को और प्रभावित कर सकते हैं.

कोरोना के कई नए वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन की एफिकेसी में मूल स्ट्रेन के मुकाबले गिरावट भी देखी गई है, लेकिन गिरावट के बावजूद भी कोरोना के खिलाफ सुरक्षा बनी रही.

इसलिए एक्सपर्ट्स साफ कहते हैं कि वेरिएंट्स के कारण वैक्सीन की एफिकेसी घटने की आशंका भले ही है, लेकिन ऐसा नहीं है कि वैक्सीन इन पर कोई असर नहीं करेंगी.

ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन यानी वैक्सीनेशन के बाद संक्रमण

वैक्सीन की दो डोज लेने के बाद भी ब्रेकथ्रू संक्रमण के मामले सामने आए हैं.

वैक्सीन की एक या दोनों डोज लेने के बाद भी संक्रमण के मामले देखे गए हैं, लेकिन स्टडीज में पाया गया है कि वैक्सीन की डोज लेने वाले अगर संक्रमित होते भी हैं, तो ज्यादातर को गंभीर बीमारी नहीं होने पाती.

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की इस रिपोर्ट में तमिलनाडु के श्री रामचंद्र मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में माइक्रोबायोलॉजी के प्रोफेसर और एसोसिएट डीन डॉ उमा शेखर के मुताबिक नए वेरिएंट्स के खिलाफ मौजूदा वैक्सीन से फुल इम्यूनिटी नहीं मिलती है, इसलिए हमने ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के कुछ मामले दर्ज किए, जिसमें में वैक्सीनेटेड शख्स एसिम्टोमैटिक रह सकता है या उसमें संक्रमण के हल्के लक्षण देखे जा सकते हैं, लेकिन ऐसे लोगों से ट्रांसमिशन की आशंका बरकरार रहती है.

इसलिए हर हाल में कोविड प्रोटोकॉल फॉलो किए जाने की सलाह दी जा रही है.

वैक्सीन को लेकर झिझक

डॉ. हरीश चाफले यहां तक कहते हैं कि हर्ड इम्यूनिटी पाना चैलेंज है, लेकिन ये नए स्ट्रेन की ट्रांसमिसिबिलिटी बढ़ने के कारण नहीं है.

वैक्सीन को लेकर लोगों में झिझक हर्ड इम्यूनिटी हासिल करने की राह में बड़ी चुनौती है.
डॉ. हरीश चाफले, सीनियर कंसल्टेंट और चेस्ट फिजिशियन, ग्लोबल हॉस्पिटल, मुंबई

वैक्सीन हमें बिना बीमार किए हमारे शरीर को वायरस या दूसरे रोगाणुओं से लड़ने के लिए तैयार करती है.

कोरोना वैक्सीन के मामले में रिपोर्ट किया गया है कि वैक्सीन संक्रमण से सुरक्षा देने, संक्रमित होने पर गंभीर रूप से बीमार पड़ने और बीमारी से होने वाली मौत से बचाने में मददगार हो सकती है.

एक समुदाय में वैक्सीन लेने वालों की संख्या जितनी ज्यादा होगी, ट्रांसमिशन की चेन को रोकने की संभावना भी उतनी ज्यादा होगी.
डॉ. हरीश चाफले, सीनियर कंसल्टेंट और चेस्ट फिजिशियन, ग्लोबल हॉस्पिटल, मुंबई

वो कहते हैं कि सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन के साथ हर्ड इम्यूनिटी पाने से बीमारी होने की आशंका घटती है और इस तरह लोगों की जान बचाई जा सकती है.

डॉ. चाफले के मुताबिक अभी के लिए, हम निश्चित रूप से ये जानते हैं कि टीकाकरण, हेल्थकेयर की सुविधा और उचित नियम लागू करना भारत में हर्ड इम्यूनिटी की ओर बढ़ने का एकमात्र तरीका है.

जो हालात हैं, उसे देखते हुए ये ही प्रयास होना चाहिए कि जल्द से जल्द अधिक से अधिक लोगों को वैक्सीन लगे और कोरोना के नियमों में कोई ढिलाई न बरती जाए.

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