दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर में रहने वाले लोग प्रदूषण के बारे में कितना जानते हैं?

पिछले साल दिल्ली-NCR की सर्दी खतरनाक एयर क्वालिटी, जीरो विजिबिलिटी के साथ बीती और एयर पॉल्यूशन इंडेक्स इमरजेंसी लेवल के करीब पहुंच गया था.

रिपोर्ट्स की मानें तो दिल्ली की हवा का एक दिन में 50 सिगरेट पीने जितनी खतरनाक थी. स्थिति इतनी खराब हो गई थी कि नवंबर 2019 में, स्कूलों को बंद करने और निर्माण गतिविधियों पर रोक के साथ पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी घोषित करनी पड़ी.

हवा की क्वालिटी हर साल बिगड़ती है और लाखों लोगों की जान खतरे में होती है. ये हालात बेहतर हो सकते हैं अगर सभी को अपनी भूमिका और जिम्मेदारियों के बारे में पता हो. अगर एयर पॉल्यूशन पर कंट्रोल करने की नीतियां उनकी भागीदारी के साथ तैयार होती हैं, तो हालात बेहतर हो सकते हैं. इसकी शुरुआत एयर पॉल्यूशन को लेकर जागरुकता से हो सकती है.

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) के निवासी वायु प्रदूषण के बारे में कितना जानते हैं? ये जानने के लिए लंग केयर फाउंडेशन ने मॉरसेल रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ मिलकर दिल्ली-NCR में रहने वाले 1,757 लोगों पर एक सर्वे किया.

सर्वे के नतीजे

1. अपने शहर की एयर क्वालिटी को आप क्या रेटिंग देंगे?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

आधे से अधिक (57.7%) लोगों ने अपने शहर में वायु गुणवत्ता को खराब (36.2%) या बहुत खराब (21.5%) बताया.

नोएडा, गुरुग्राम और फरीदाबाद के लोगों की तुलना में दिल्ली और गाजियाबाद में रहने वाले ज्यादा लोगों ने हवा की क्वालिटी को खराब या बहुत खराब बताया.

सर्वे में दिल्ली के 1158 लोग, नोएडा के 150, गाजियाबाद और फरीदाबाद के 149 लोग शामिल थे.

2. क्या आप एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के बारे में जानते हैं?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

सर्वे में शामिल हुए 80 प्रतिशत से अधिक लोगों को एयर क्वालिटी इंडेक्स के बारे में पता नहीं था. फरीदाबाद और गाजियाबाद में 93%, गुड़गांव में 91%, नोएडा में 83% और दिल्ली के 80% लोग AQI से अनजान थे.

जब उनसे पूछा गया कि वे अपने शहर के AQI को कितनी बार चेक करते हैं, तो लगभग 80% ने कहा कि वे चेक नहीं करते हैं, 26% शायद ही कभी चेक करते हैं और केवल 3.6% ऐसा रोजाना करते हैं.

3. क्या आप PM 2.5 और PM 10 के बीच अंतर जानते हैं?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

सर्वे में शामिल 90% से अधिक लोगों को PM 2.5 और PM 10 के बीच अंतर के बारे में नहीं पता था. 137 लोगों में से जिन्होंने कहा कि वे PM 2.5 और PM10 के बीच अंतर जानते हैं, 21% ने कहा कि PM10 PM2.5 की तुलना में अधिक हानिकारक है, जिससे पता चलता है कि उन्हें भी इसके बारे में सही नहीं पता है.

सर्वे के नतीजों पर पैनल चर्चा में बोलते हुए, दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति के डॉ एमपी जॉर्ज ने कहा, “मैं हैरान हूं. मेरे अनुभव के मुताबिक दिल्ली के निवासी वायु प्रदूषण के बारे में अधिक जागरूक हैं, लेकिन शायद वे इससे जुड़ी तकनीकी जानकारी नहीं रखते हैं, जैसे कि पीएम 2.5 या पीएम 10 में अंतर. हमें जनता को जानकारी देने की जरूरत है.”

4. क्या आपको लगता है कि एयर पॉल्यूशन से आपकी सेहत पर असर पड़ेगा?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

जवाब देने वाले ज्यादातर (82.2%) यानी 1445 लोगों ने कहा कि वायु प्रदूषण का उनके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है. 1445 में से, 473 (32.7%) महिलाएं थीं और 972 (67.3%) पुरुष थे.

उनके मुताबिक फेफड़े और आंखें प्रदूषित हवा से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले अंग हैं. सर्वे में जवाब देने वालों का कहना था कि हृदय, मस्तिष्क और त्वचा वायु प्रदूषण के कारण ज्यादा गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होते हैं- ये बातें, हकीकत में सही नहीं हैं क्योंकि वायु प्रदूषण का बुरा असर शरीर के सभी हिस्सों पड़ता है.

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5. पिछले 1 साल में आप या आपकी जानकारी में कोई सांस में तकलीफ के कारण हॉस्पिटल गया?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

पिछले एक साल में सांस की तकलीफ के कारण सर्वे में शामिल 38.8% लोग हॉस्पिटल गए. जवाब देने वालों में तीन-चौथाई, यानी 1301 (74%) या उनके रिश्तेदारों में प्रदूषित हवा के कारण कोई बीमारी होने का पता नहीं चला, लेकिन 24.2% लोग प्रदूषित हवा से बीमार हुए.

जब उनसे पूछा गया कि क्या उनके डॉक्टरों ने वायु प्रदूषण के बारे में उनसे कभी बात की है, तो लगभग 60% लोगों ने डॉक्टर के साथ ऐसी कोई बातचीत न होने के बारे में बताया.

6. कितने प्रतिशत लोग नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के बारे में जानते हैं?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

सरकार की नीतियों और वायु प्रदूषण का मुकाबला करने की दिशा में पहल के बारे में लोगों से पूछा गया, तो उसके ये नतीजे सामने आए-

  • सर्वे में शामिल 78.9% लोगों को नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के बारे में नहीं पता था.
  • केवल 31.4% लोग दिल्ली सरकार द्वारा जारी पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी के बारे में जानते थे.
  • 78.1% लोगों को वायु प्रदूषण कम करने के लिए स्थानीय पहल के बारे में जानकारी नहीं थी.

7. आपके शहर में एयर पॉल्यूशन का स्तर घटाने की जिम्मेदारी किसकी है?

(कार्ड: आर्णिका काला/फिट)

सरकारों और उद्योगों की तुलना में, शहर में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए 40% निवासियों ने खुद को सबसे अधिक जिम्मेदार माना.

लोगों ने कहा कि उन्हें खुद अपने पर्यावरण की रक्षा के लिए जिम्मेदार होना चाहिए.

वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास के बारे में सर्वे में शामिल रहे लोगों ने बताया कि उन्होंने सार्वजनिक परिवहन (1368), कार-शेयरिंग/पूलिंग (579), कूड़े को न जलाने (525) जैसी बातों का पालन किया है. प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करना (510), रेड-लाइट सिग्नल पर अपनी गाड़ी के इंजन को ऑफ करने (427) जैसे कदम उठाए हैं.

एयर पॉल्यूशन कंट्रोल करने के लिए डॉक्टर, मीडिया और नागरिक क्या कर सकते हैं?

पैनल डिस्कशन में सर्वे के नतीजों पर कहा गया कि सार्वजनिक भागीदारी से नीतियां तैयार करने और लोगों को जागरूक करना अहम है.

लंग केयर फाउंडेशन के फाउंडर ट्रस्टी और सर गंगाराम हॉस्पिटल में सेंटर फॉर चेस्ट सर्जरी के चेयरमैन डॉ अरविंद कुमार ने जागरुकता फैलाने में डॉक्टरों की भूमिका पर कहा,

मुझे यह जानकर अच्छा नहीं लगा कि डॉक्टर अपने मरीजों के साथ वायु प्रदूषण पर चर्चा नहीं कर रहे हैं. वायु प्रदूषण को लंबे समय से सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा माना जाता रहा है. लेकिन असल में ये स्वास्थ्य से जुड़ा एक अहम मुद्दा है. डॉक्टरों के तौर पर सेहत के बारे में बात करना हमारा काम है. जब मैं काले पड़े चुके फेफड़ा देखता हूं, तो ये पता चलता है कि मुझे कुछ करना चाहिए. डॉक्टर प्रेरित कर सकते हैं क्योंकि हमारे मरीज हमारी बात सुनते हैं. अगर हर डॉक्टर लोगों को कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करे, तो हम अपनी क्लीनिकल एक्टिविटीज के साथ और भी बहुत कुछ अच्छा कर सकते हैं.

क्लाइमेट ट्रेंड्स की डायरेक्टर आरती खोसला ने लोगों तक सही जानकारी पहुंचाने के लिए मीडिया के रोल पर कहा, "मीडिया ने पर्याप्त योगदान दिया है. मीडिया को जनता और नीतियां तैयार करने वालों के बीच कनेक्शन बनाए जाने पर काम करना चाहिए. मीडिया का फोकस स्थानीय स्टोरीज और उन्हें क्षेत्रीय भाषा में लाने पर होना चाहिए.”

डॉ एमपी जॉर्ज ने उन पहलों के बारे में बात की जिससे सभी अपनी लाइफस्टाइल और आदतों में थोड़ा बदलाव करके वायु की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में मदद कर सकते हैं. कचरे को जलाने से बचना, वाहनों का रखरखाव, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग करना, इस सब के जरिए एक लंबा रास्ता तय किया जा सकता है.

देश अब COVID-19 के लॉकडाउन के बाद 'अनलॉक 1' की ओर बढ़ रहा है, पर्यावरण और हवा को ध्यान में रखना जरूरी है. डॉ. अरविंद कुमार कहते हैं, “आर्थिक मजबूती हमारी वायु गुणवत्ता की कीमत पर नहीं होना चाहिए. एंटी-पॉल्यूशन उपायों को मजबूत करने की जरूरत है. लॉकडाउन के कारण हवा में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अनलॉक होने के साथ इसमें गिरावट न हो, ये जरूरी है. मुझे चिंता है कि कहीं एयर क्वालिटी फिर से बदतर हो जाए. अगर हमने कोई कदम नहीं उठाया, तो हमें और अधिक बड़ी महामारियों का सामना करना पड़ सकता है."

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