COVID-19 के लिए इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की बनाई गई नेशनल टास्क फोर्स ने हाई रिस्क लोगों, जैसे जो लोग कन्फर्म COVID-19 पॉजिटिव मरीजों के करीबी संपर्क में आएं, उनके लिए प्रॉफिलैक्टिक के तौर पर एंटीमलेरिया ड्रग 'हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन' के इस्तेमाल की सिफारिश को मंजूरी (डॉक्टर के कहने पर) दे दी है.

इस दवा का प्रयोग हाई रिस्क वाले लोगों को बीमारी से बचाने के लिए किया जा सकेगा. जैसे

  • वो हेल्थ वर्कर जिनमें COVID-19 के कोई लक्षण नजर नहीं आ रहे, लेकिन वो इसके कन्फर्म मरीजों के करीबी संपर्क में आएं हैं

  • कन्फर्म मरीजों के घर-परिवार वाले, जो उसके करीबी संपर्क में आए, लेकिन उनमें कोई लक्षण सामने नहीं आया हो

इसके साथ ही ये जरूर स्पष्ट किया गया है कि कोरोनावायरस से बचाव के लिए पहले ही जारी किए जा चुके दिशा-निर्देशों का भी पालन करते रहना है. लेकिन इस मंजूरी के साथ समस्या क्या है?

कुछ दिनों से क्लोरोक्वीन को लेकर चर्चा का आधार एक फ्रांसीसी स्टडी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रेस कॉन्फ्रेंस है.

प्रेस को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा था, "हम इस ड्रग को लगभग तत्काल उपलब्ध कराने में सक्षम हैं और इसे FDA की मंजूरी मिल गई है."

समस्या यहीं हैं, दरअसल अमेरिकी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) ने इसके इस्तेमाल की नहीं बल्कि ट्रायल की मंजूरी दी है.

उसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में FDA के डायरेक्टर डॉ स्टीफन हान ने स्पष्ट किया कि इस दवा का इस्तेमाल क्लीनिकल ट्रायल के लिए होगा.

महत्वपूर्ण यह भी है कि गलत उम्मीद पैदा न की जाए. हो सकता है कि हमारे पास मौजूद ड्रग सही हो, लेकिन हो सकता है कि अभी इसकी खुराक उपयुक्त न हो और ये फायदा पहुंचाने की बजाए नुकसान पहुंचा सकता है.
डॉ स्टीफन हान, डायरेक्टर, FDA, अमेरिका
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क्या ICMR के फैसले का आधार एक छोटी सी स्टडी है?

ये दवा फायदेमंद हो सकती है? हां. लेकिन इस्तेमाल की मंजूरी देने से पहले क्या किसी दवा की उचित टेस्टिंग नहीं की जानी चाहिए?

क्लोरोक्वीन और इसके यौगिक (derivative) हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन को लेकर उम्मीदों का आधार वह फ्रांसीसी अध्ययन है, जो अब तक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित नहीं हुआ है.

फ्रांस के एइक्स-मार्सेली यूनिवर्सिटी के रिसर्चर डीडियर राओल्ट ने कुल 36 COVID-19 के मरीजों पर आरंभिक ट्रायल के बाद उत्साहजनक नतीजे जारी किए हैं.

इनमें से ज्यादातर मरीजों में हल्के से मध्यम लक्षण थे. 1 से लेकर 15 मार्च के बीच रिसर्चर और उनकी टीम ने इनमें से 20 मरीजों को हर दिन 600 मिलीग्राम हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन दिया. कुछ लक्षण को देखते हुए एजिथ्रोमाइसिन नामक एंटीबायोटिक भी इस इलाज में जोड़ दिया गया. 16 मरीजों को यह ड्रग नहीं दिया गया.

नतीजा क्या रहा? जिन मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दिया गया, उनमें वायरल लोड की कमी देखी गई. 6 दिनों बाद 70 प्रतिशत मरीजों में, जिन्हें ड्रग दिया गया था, कोरोनावायरस की मौजूदगी निगेटिव मिली.

नियंत्रित समूह में यह संख्या महज 12.5 प्रतिशत थी. हालांकि यह रिसर्च पेपर अभी प्रकाशित नहीं हुआ है लेकिन इस अध्ययन को महत्व के ख्याल से बहुत छोटा माना जा रहा है. इस नतीजे को इस उम्मीद में जारी किया गया ताकि और भी व्यापक वैज्ञानिक ड्रग ट्रायल किए जा सकें. FDA अब इसी ट्रायल की योजना बना रहा है.

ईमानदारी से कहें तो कई और भी अध्ययन हैं, जो कोरोनावायरस की दवाई से जुड़े हैं. मेडिकल जर्नल Clinical Infectious Diseases ने 9 मार्च को बताया कि हाइड्रोऑक्सीक्लोरोक्वीन के वर्जन वाला एक ब्रांड प्रयोगशाला परीक्षण के दौरान कोरोनावायरस को मारने में प्रभावी पाया गया. मलेरिया और अर्थराइटिस के लिए प्लेक्वेनिल (Plaquenil) पहले से ही प्रमाणित ड्रग है. फिर भी इस आंकड़े से विशेषज्ञों ने कोई बड़ा नतीजा नहीं निकाला है.

क्या COVID-19 के लिए इसको मंजूरी दी जानी चाहिए?

वैज्ञानिकों ने ऐसे 69 दवाइयों और प्रायोगिक यौगिकों की पहचान की है, जो नोवल कोरोनावायरस और कोरोनावायरस डिजीज-2019 (COVID-19) के इलाज में प्रभावी हो सकते हैं और क्लोरोक्वीन उनमें से एक है.

देश के जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट और मेदांता हॉस्पिटल्स के फाउंडर डॉ नरेश त्रेहन ने एक वीडियो पोस्ट कर बताया कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन 'इम्यून मॉड्यूलेटर' के तौर पर काम करता है. इम्यून मॉड्यूलेटर वायरस का प्रभाव या व्हाइट सेल्स घटाने में मदद करते हैं. जब कोई कोरोनावायरस से संक्रमित हो, तो ये काम कर सकते हैं, लेकिन बीमारी से बचाव के लिए इनका इस्तेमाल किसी में संक्रमित होने का खतरा बढ़ा सकता है.

वहीं अपोलो हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के सीनियर कंसल्टेंट डॉ सुरनजीत चटर्जी कहते हैं, "ये स्टडी मरीजों के एक बहुत छोटे सैंपल पर हुई है और इस वायरस से बचाव का तरीका सोशल डिस्टेन्सिंग और सफाई ही है."

न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस दवा पर एक और अध्ययन का नेतृत्व करने वाले कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के एक जीवविज्ञानी नेवान क्रोजन के हवाले से बताया कि क्लोरोक्वीन के ‘विषाक्त दुष्प्रभाव' हो सकते हैं क्योंकि दवा कई मानव सेलुलर प्रोटीन पर टारगेट करती है.

उन्होंने कहा कि हमें सावधान रहना चाहिए, हमें हर स्तर पर अधिक डेटा की आवश्यकता है.

लेकिन फिर किस आधार पर भारत के शीर्ष अनुसंधान निकाय ने रोगनिरोधी के रूप में इस दवा के उपयोग की अनुमति दी है?

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Published: 23 Mar 2020,09:19 PM IST

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