महामारी से निपटने और COVID-19 वैक्सीनेशन में ढिलाई की बढ़ती आलोचना के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार 7 जून को एक केंद्रीकृत वैक्सीनेशन पॉलिसी की घोषणा की और कहा कि आने वाले दिनों में देश में वैक्सीन की सप्लाई में बड़े पैमाने पर बढ़ोतरी होगी.
सरकार ने पिछले महीने दावा किया था कि अगस्त और दिसंबर के बीच 2 अरब से अधिक डोज घरेलू उत्पादन से उपलब्ध होंगी, जिसमें वो वैक्सीन भी शामिल हैं, जो अभी अंडर डेवलपमेंट हैं.
स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले हफ्ते कहा था कि नेशनल वैक्सीनेशन प्रोग्राम के लिए जून में करीब 12 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी.
क्या सरकार के ये दावे हवा-हवाई हैं? भारत में बड़े पैमाने पर कारगर वैक्सीनेशन प्रोग्राम्स का इतिहास रहा है. लेकिन क्या केंद्र सरकार वैक्सीनेशन का पैमाना व्यवस्था की क्षमता से बढ़कर पेश कर रही है?
अनुमान के अनुसार देश की कुल 1.4 अरब आबादी में वयस्क आबादी लगभग 90 करोड़ है.
भारत में अब तक उपलब्ध अधिकांश वैक्सीन में पूरे वैक्सीनेशन के लिए दो डोज की जरूरत होती है. यानी 18 साल से ऊपर के सभी लोगों के वैक्सीनेशन के लिए करीब 1.8 अरब डोज की जरूरत है.
स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि 5 मई तक 22.7 करोड़ वैक्सीन डोज लगाई जा चुकी हैं. इसलिए बाकी के लिए करीब 1.6 अरब वैक्सीन की जरूरत है.
केंद्र के अनुमान के आधार पर कह सकते हैं कि भारत की वयस्क आबादी को कवर करने के लिए 2 अरब डोज काफी होगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने 7 जून को दावा किया, “देश में 7 कंपनियां अलग-अलग तरह की वैक्सीन का उत्पादन कर रही हैं. तीन अन्य वैक्सीन का ट्रायल भी एडवांस स्टेज में है.” उन्होंने कहा कि कोविड के लिए इंट्रानेजल (नाक से दी जाने वाली) वैक्सीन बनाने पर भी काम चल रहा है.
मगर सरकार 2 अरब के आंकड़े पर कैसे पहुंची? हाल ही में नीति आयोग के सदस्य डॉ. विनोद के. पॉल द्वारा वैक्सीन को लेकर बताई स्थिति पर नजर डालते हैं.
लिस्ट में बताई गई आठ वैक्सीन में से सिर्फ 3 को ही मंजूरी मिली है. बाकी 5 वैक्सीन अभी भी हरी झंडी मिलने की प्रक्रिया में हैं.
बायोलॉजिकल ई (Bio E) और जायडस कैडिला (Zydus Cadila) वैक्सीन तीसरे चरण के ट्रायल के दौर से गुजर रही है, जबकि भारत बायोटेक की नेजल वैक्सीन और जेनोवा (Gennova) की mRNA-आधारित वैक्सीन फेज 1-2 ट्रायल में हैं.
कोवोवैक्स (Covovax), जो नोवावैक्स (Novavax) वैक्सीन का भारतीय नाम है, इसे मंजूरी हासिल करने से पहले एसआईआई (SII) अपने जोखिम पर तैयार कर रहा है. भारत में इसका ट्रायल अभी जारी है.
तो 2 अरब के आंकड़े में से चलिए फिलहाल उन वैक्सीन को छोड़ देते हैं, जिन्हें अभी तक मंजूरी नहीं मिली है.
2.16 अरब डोज में से 1.46 का निर्माण सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII), भारत बायोटेक और छह कंपनियों द्वारा किए जाने की उम्मीद है, जो स्पुतनिक वैक्सीन को बनाती हैं. यह मानते हुए कि निर्यात बिल्कुल नहीं होगा और बर्बादी न्यूनतम होगी.
केंद्र ने 29 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में दिए एक हलफनामे में कहा था कि भारत में वैक्सीन की हर महीने 8.5 करोड़ डोज का उत्पादन किया जा रहा है.
इसमें कहा गया है कि SII ने अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ाकर 6.5 करोड़ डोज महीना कर दी है, जबकि भारत बायोटेक की उत्पादन क्षमता 2 करोड़ डोज महीना है और जुलाई तक इसे बढ़ाकर 5.5 करोड़ कर देने की उम्मीद है.
SII ने हाल ही में अगस्त से अपनी Covishield के उत्पादन को 10 करोड़ तक करने का वादा किया था. भारत बायोटेक ने बताया था कि जुलाई में Covaxin का उत्पादन बढ़ाकर 3.32 करोड़ और अगस्त में 7.82 करोड़ किया जाएगा, जिसे सितंबर में भी कायम रखा जाएगा.
जिन तीन दूसरी कंपनियों के साथ कोवैक्सिन कोड साझा करने को तैयार है, वे साल के अंत या अगले साल तक ही उत्पादन शुरू कर पाएंगी.
यहां तक कि अगर हम हलफनामे के आंकड़ों पर यकीन करते हैं, तो भी यह नहीं पता चलता है कि सरकार कोविशील्ड के लिए 75 करोड़ और कोवैक्सिन के लिए 55 करोड़ डोज का आंकड़ा कहां से ले आई. यह हिसाब कतई सच नहीं लगता है.
कोविशील्ड और कोवैक्सिन के निर्माता अगस्त से दिसंबर तक सरकार की मांग को तब तक पूरा नहीं कर पाएंगे जब तक कि वे उत्पादन क्षमता में कई गुना बढ़ोतरी नहीं करते.
पिछले हफ्ते सरकार ने कहा था कि जून में करीब 12 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी.
केंद्र सरकार की ओर से प्राथमिकता वाले समूहों में आने वाले हेल्थकेयर वर्कर, फ्रंटलाइन वर्कर और 45 साल और इससे ज्यादा उम्र के लोगों के वैक्सीनेशन के लिए राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कम से कम 6 करोड़ डोज की मुफ्त सप्लाई की जाएगी.
इसके अलावा राज्यों और प्राइवेट अस्पतालों की सीधी खरीद के लिए करीब 5.9 करोड़ डोज उपलब्ध होंगी.
रिपोर्ट्स के मुताबिक हाल ही में स्पुतनिक वैक्सीन की 30 लाख डोज भारत पहुंची हैं, लेकिन खबरें बताती हैं कि रूसी वैक्सीन का बड़े पैमाने पर उत्पादन अगस्त तक ही शुरू होगा.
यह भी याद रखना जरूरी है कि अक्सर कंपनियां अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करती हैं.
तब सरकार ने जून में वैक्सीनेशन के लिए 12 करोड़ डोज मुहैया कराने का वादा कैसे किया? साफ है कि आंकड़े हकीकत से दूर हैं.
अब तक भारत की लगभग 3.4 फीसद आबादी को ही पूरी तरह से वैक्सीन लगी है, जबकि 13.7 फीसद आबादी को कम से कम एक डोज मिली है.
अप्रैल में 7.75 करोड़ डोज के मुकाबले मई में 5.53 करोड़ वैक्सीन लगाई गई.
भारत के लिए बाकी वयस्क आबादी को वैक्सीन लगाने के लिए करीब 1.6 अरब डोज की जरूरत है.
अप्रैल के दूसरे हफ्ते में एक दिन में दी जाने वाली अधिकतम डोज की संख्या 40 लाख से थोड़ा कम थी. जबकि मई में वयस्कों को वैक्सीन लेने की इजाजत देने के बावजूद वैक्सीनेशन अभियान ठप हो गया, महीने के अंत में हालात में कुछ सुधार आया.
CoWIN पोर्टल के आंकड़े बताते हैं 10 दिन में रोजाना औसतन 26 लाख डोज दी गईं.
SII और भारत बायोटेक की मौजूदा उत्पादन क्षमता के हिसाब से हम जून और जुलाई में रोजाना करीब 28 लाख डोज ही दे सकते हैं. यह रोजाना 80 लाख डोज की जरूरी दर से काफी कम है.
यहां तक कि अगर दोनों कंपनियां अगस्त से अपना उत्पादन बढ़ा भी देती हैं, तो भी हमारे पास रोजाना जरूरी 80 लाख डोज पूरी नहीं होगी.
यह साफ नहीं है कि ये डोज कहां से आएंगी.
यह अनुमान उत्पादन और वितरण के सबसे अच्छे हालात को ध्यान में रखते हुए किए गए हैं. वैसे यह महत्वाकांक्षी योजना उत्पादन बढ़ाने और बुनियादी ढांचे की क्षमता पर निर्भर करती है.
यह वैक्सीन निर्माता कंपनियों को मंजूरी मिलने पर भी निर्भर करेगा और यह भी देखना होगा कि वे उत्पादन की समय-सीमा को कितनी अच्छी तरह पूरा कर पाती हैं.
2021 के अंत तक पूरी वयस्क आबादी को वैक्सीन लगाने का केंद्र का लक्ष्य शक के दायरे में है. हालांकि बार-बार कहा गया है कि वैक्सीन की कोई कमी नहीं है, मगर याद रखना जरूरी है कि इसी तरह के दावे पहले भी जमीनी आकलन किए बिना किए गए हैं और उन्हें पूरा नहीं किया गया है.
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Published: 08 Jun 2021,02:00 PM IST