यूपी के बहराइच के रहने वाले प्रदीप शुक्‍ला के 54 साल के प‍िता नवंबर में कोरोना संक्रमित हो गए. उनकी सीरियस कंड‍िशन को देखते हुए प्रदीप ने उन्‍हें लखनऊ के एक न‍िजी अस्‍पताल में भर्ती कराया. यहां डॉक्‍टर ने प्रदीप से बताया कि उनके प‍िता को प्‍लाज्‍मा थेरेपी दी जाएगी. इसलिए वे जल्‍द से जल्‍द प्‍लाज्‍मा का प्रबंध करें.

“डॉक्‍टर ने जब प्‍लाज्‍मा थेरेपी की बात कही तो मुझे ब‍िल्‍कुल अंदाजा नहीं था कि प्‍लाज्‍मा जुटाना कितना कठ‍िन होने वाला है. मैंने खबरों में पढ़ा था कि यूपी में देश का सबसे बड़ा प्‍लाज्‍मा बैंक खुला है. इसके बारे में पता किया तो जानकारी हुई कि लखनऊ के ही किंग जॉर्ज मेडिकल यून‍िवर्सिटी में इसे बनाया गया है. मैं जब वहां पहुंचा तो बताया गया कि जब तक डोनर नहीं होगा प्‍लाज्‍मा नहीं म‍िल सकता. लाख जतन के बाद भी कोई डोनेट करने को राजी नहीं हो रहा था, आखिरकार मैंने सोर्स लगाकर बाहर से प्‍लाज्‍मा ल‍िया,” प्रदीप शुक्‍ला (34) कहते हैं.

प्रदीप एकलौते नहीं हैं, उनकी तरह रोजाना बहुत से लोग प्‍लाज्‍मा जुटाने को लेकर परेशानी का सामना कर रहे हैं. यह हाल तब है जब यूपी के लखनऊ में देश का सबसे बड़ा प्‍लाज्‍मा बैंक मौजूद है.

लखनऊ के केजीएमयू में इसी साल अगस्त में यह प्लाज्मा बैंक खुला था. इसकी क्षमता 830 यूनिट की है. हालांकि, आज की तारीख में प्लाज्मा बैंक के स्‍टॉक में मात्र 40 यूनिट प्लाज्मा है. वहीं, बैंक की शुरुआत से लेकर अब तक केवल 388 यूनिट प्लाज्मा डोनेट हो पाया है.

इस बारे में केजीएमयू के ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चंद्रा कहती हैं,

“प्लाज्मा डोनेशन में जो दिक्कतें आ रही हैं ये ठीक वैसी हैं जैसे ब्लड डोनेशन की शुरुआत में आती थीं. लोग डोनेशन के लिए आसानी से राजी नहीं होते. ऐसी स्थिति में प्लाज्मा बैंक में यह व्यवस्था लागू की गई है कि अगर किसी को प्लाज्मा चाहिए तो उसे डोनर भी लाकर देना होगा क्‍योंकि अगर लोग डोनेट नहीं करेंगे और केवल प्‍लाज्‍मा लेते जाएंगे तो यह बंद हो जाएगा.”

डॉ. तूलिका के मुताबिक इस बीच फिर से प्लाज्मा की डिमांड बढ़ी है, क्योंकि सीरियस मरीज ज्यादा आ रहे हैं. ऐसे में हर दिन बैंक से पांच से छह यूनिट प्लाज्मा जा रहा है.

लखनऊ के किंग जार्ज मेडिकल विश्वविद्यालय का प्‍लाज्‍मा बैंक(फोटो: रणविजय सिंह)

प्‍लाज्‍मा थेरेपी में कोरोना से ठीक हो चुके व्यक्ति से प्‍लाज्‍मा डोनेट कराया जाता है और इस प्‍लाज्‍मा को कोरोना वायरस के रोगी के शरीर में चढ़ाया जाता है.

इस थेरेपी को लेकर दावा किया जाता है कि ठीक हो चुके व्‍यक्‍ति में वायरस को मारने वाली एंटीबॉडीज बन चुकी होती है, जिससे संक्रमित मरीजों का इलाज करने से वो तेजी से ठीक होते हैं.

प्‍लाज्‍मा थेरेपी गंभीर मरीजों को ही दी जाती है. यह एक पुराना तरीका है, जिसे पोलियो, खसरा और इबोला वायरस के दौरान भी इस्‍तेमाल किया गया था. यह थेरेपी भारत समेत कई देशों में अपनाई जा रही है.

कोरोना से ठीक हो चुके लोगों में से 50% में नहीं मिल रही एंटीबॉडीज

केजीएमयू के प्लाज्‍मा बैंक में भले ही अब तक केवल 388 यूनिट प्लाज्मा डोनेट हुआ हो, लेकिन करीब 800 से ज्‍यादा लोग प्लाज्मा डोनेट करने आ चुके हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि 800 में से केवल 388 लोग ही प्‍लाज्‍मा डोनेट क्‍यों कर पाए.

इसके जवाब में डॉ. तूलिका बताती हैं,

“ऐसा देखने को मिल रहा है कि कोरोना से ठीक होने के बाद भी बहुत से लोगों के शरीर में एंटीबॉडीज नहीं बनी है. हम पहले जांच करते हैं कि क‍िसके शरीर में एंटीबॉडीज बनी हैं. इस जांच में कई लोगों में एंटीबॉडीज कम म‍िल रही हैं तो कई लोगों में म‍िल ही नहीं रही. ऐसी स्थिति में हम उनका प्लाज्मा नहीं ले रहे हैं. ऐसे मामले करीब 50% हैं.”
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शरीर में एंटीबॉडीज न बनने का ट्रेंड व्‍यापक तौर पर देखने को म‍िल रहा है. लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल के कोव‍िड वॉर्ड में इलाज करने वाले डॉ. रूपेंद्र कुमार भी कोरोना संक्रमित हो गए थे. कोरोना से ठीक होने के बाद जब वह प्‍लाज्‍मा डोनेट करने गए तो उन्‍हें पता चला कि उनके शरीर में एंटीबॉडीज बनी ही नहीं है. ऐसे उनके ही साथ नहीं, बल्‍कि उनके उन्‍य साथ‍ियों के साथ भी हुआ.

डॉ. रूपेंद्र कहते हैं, “मैं लोकबंधु अस्‍पताल में प्‍लाज्‍मा डोनेशन का काम भी देखता हूं. यहां अब तक 12 डॉक्‍टर संक्रमित हो चुके हैं. इनमें से 7 डॉक्‍टरों में एंटीबॉडीज नहीं म‍िली, इसमें मैं भी शामिल हूं. यह चौकाने वाली बात है कि ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडीज नहीं म‍िल रही हैं, आम तौर पर ऐसा देखने को नहीं मिलता है.”

प्‍लाज्‍मा डोनेशन से कतराते हैं लोग

कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों को प्‍लाज्‍मा डोनेशन के ल‍िए प्रेरित करने के ल‍िए काउंसलर की टीम भी लगी है. इन काउंसलर के सामने भी अलग तरह की चुनौतियां हैं. द‍िन भर कई लोगों को फोन मिलाने के बाद भी जब कोई तैयार नहीं होता तो इन्‍हें निराश ही घर लौटना होता है.

"लोग प्‍लाज्‍मा डोनेशन का नाम सुनते ही फोन रख देते हैं. कई लोग कहते हैं कि अभी बीमारी से उठा हूं तो डोनेशन नहीं कर सकता. खासकर पढ़े-ल‍िखे लोग सबसे पहले मना करते हैं. उन्‍हें इस बात का डर भी है कि डोनेशन के ल‍िए अस्‍पताल आने पर वो फिर से संक्रमित हो सकते हैं. इन हालातों में उन्‍हें समझाना बहुत मुश्‍किल हो जाता है," वैभव वर्मा कहते हैं.

वैभव लखनऊ के लोकबंधु अस्पताल में नर्सिंग की पोस्‍ट पर तैनात हैं. वो रोजाना कोरोना वायरस से ठीक हो चुके लोगों को कॉल करते हैं. उनकी ही तरह सूर्यकांत श्रीवास्‍तव, कार्त‍िक और मौसमी अलेक्‍स भी कोरोना से ठीक हुए मरीजों को कॉल करते हैं और उन्‍हें प्‍लाज्‍मा डोनेट करने को कहते हैं. यह टीम डॉ. रूपेंद्र कुमार की देख रेख में काम करती है. इस टीम की तरह ही केजीएमयू के प्‍लाज्‍मा बैंक की टीम भी काम करती है. उनके सामने भी ऐसी ही चुनौतियां आ रही हैं.

कोरोना से ठीक हो चुके एक मरीज का प्‍लाज्‍मा डोनेट कराते डॉ. रूपेंद्र कुमार (तस्‍वीर में दाएं तरफ)(फोटो: रणविजय सिंह)

कारगर नहीं प्‍लाज्‍मा थेरेपी, फिर भी हो रहा इस्‍तेमाल

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने प्‍लाज्‍मा थेरेपी के प्रभाव को जांचने के ल‍िए एक स्‍टडी की थी. इसके तहत 22 अप्रैल से 14 जुलाई के बीच 14 राज्यों के 39 अस्पतालों में 464 मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी का ट्रायल किया गया था.

इस स्‍टडी के अनुसार प्लाज्मा थेरेपी कोरोना मरीज की मौत रोकने में कारगर नहीं है और न ही किसी गंभीर मरीज की हालत और बिगड़ने से रोकने में मदद करती है.

इस स्‍टडी के सामने आने के बाद से ही प्‍लाज्‍मा थेरेपी पर रोक लगाने की बात चल रही है. आईसीएमआर के डायरेक्टर जनरल डॉ. बलराम भार्गव ने इस बारे में कहा था,

“हमने नेशनल टास्क फोर्स में हमारे प्लाज्मा थेरेपी ट्रायल के बारे में चर्चा की है, आगे हम जॉइंट मॉनिटरिंग ग्रुप में इसके बारे में चर्चा कर रहे हैं कि इसको नेशनल गाइडलाइंस से हटाया जा सकता है. यह चर्चा चल रही है और हम लगभग इसी और बढ़ रहे हैं.”

इस बारे में लोकबंधु अस्‍पताल के डॉ. रूपेंद्र कुमार कहते हैं, “यह नहीं कहा जा सकता कि प्‍लाज्‍मा चढ़ाने से किसी की जिंदगी बच ही जाएगी. ऐसा आईसीएमआर की स्‍टडी में भी सामने आया है. डॉक्‍टर अभी भी इस थेरेपी का इस्‍तेमाल इसल‍िए कर रहे हैं क्‍योंकि मरीज पहले से गंभीर होता है और जब कोई उपाय नहीं बचता तो इस थेरेपी को भी आजमा रहे हैं. इसके पीछे सोच बस इतनी है कि शायद मरीज की बॉडी इस थेरेपी पर रिस्‍पॉन्‍ड कर जाए.”

कौन कर सकता है प्‍लाज्‍मा डोनेट?

एक प्‍लाज्‍मा डोनर को सर्ट‍िफ‍िकेट देंती डॉ. तूलिका चंद्रा(फोटो: रणविजय सिंह)

कोरोना से ठीक हो चुके मरीज ड‍िस्‍चार्ज होने के 14 दिन बाद प्‍लाज्‍मा डोनेट कर सकते हैं. डोनेशन करने वाले व्‍यक्‍ति की उम्र 18 से 65 वर्ष के बीच होनी चाहिए. उसे एचआईवी, हेपेटाइट‍िस, डायबिटीज जैसे रोग नहीं होने चाहिए. गर्भवती महिलाएं प्‍लाज्‍मा डोनेट नहीं कर सकती हैं.

डोनेशन को लेकर डॉ.तूलिका चंद्रा कहती हैं, “हम पहले काउंसल‍िंग करते हैं, फिर टेस्‍ट‍िंग होती है और तब जाकर डोनेशन होता है. हम लोगों को यह भी बता रहे हैं कि उनकी एंटी बॉडी, मलेरिया, एचआईवी जैसी कई जांच फ्री में हो जाती हैं. लोगों को इससे डरने की जरूरत नहीं है, यह पूरी तरह सुरक्ष‍ित है.”

(रणविजय सिंह, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनके काम के बारे में और जानकारी यहां ली जा सकती है.)

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Published: 11 Dec 2020,07:17 PM IST

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