20वीं सदी में 30 करोड़ से अधिक जिंदगियां खत्म करने वाली बीमारी चेचक का उन्मूलन, खसरे से होने वाली 2.32 करोड़ मौत की रोकथाम और संक्रामक बीमारियों से हर साल होने वाली करीब 30 लाख मौतों को रोकने की दिशा में टीका (वैक्सीन) की अहम भूमिका रही है और पिछले कई दशकों के दौरान कई बीमारियों की वजह से होने वाली रुग्णता और मृत्यु दर में कमी आई है.
ऐसे समय में जब हम एक महामारी का सामना कर रहे हैं, वैक्सीन की भूमिका पहले के मुकाबले ज्यादा अहम हो गई है.
इस मोड़ पर इन्फ्लूएंजा (जिसे आम तौर पर फ्लू कहा जाता है) जैसे अन्य खतरनाक श्वसन संबंधी संक्रमणों से लड़ने के लिए टीकाकरण की आवश्यकता को रेखांकित करना और भी अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम अपने श्वसन तंत्र को निशाना बनाने वाले वायरस से लड़ने के मामले में खुद को चौराहे पर खड़ा पाते हैं.
2020 गोल्ड साइंस कमिटी ने इस बात की घोषणा की है कि कोविड-19 महामारी के दौरान ‘मरीजों को अपना सालाना इन्फ्लूएंजा टीकाकरण करना चाहिए, हालांकि सामाजिक दूरी बनाए रखते हुए इन्हें प्रदान करने की सुविधा चुनौतीपूर्ण होगी’.
यह बताता है कि क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) के रोगियों के मामले में जोखिम को कम करने की दिशा में इन्फ्लूएंजा वैक्सीनेशन की कितनी बड़ी अहमियत है.
इसे आम तौर पर फ्लू के नाम से जाना जाता है और इसकी वजह इन्फ्लूएंजा वायरस है, जिसके कारण तेज बुखार, गले में खराश, जोड़ों में दर्द, कफ, थकान और नाक बहती है.
कई मामलों में इसकी जटिलताएं सांस से जुड़ी गंभीर समस्याएं, हार्ट फेल होना और मृत्यु तक हो सकती है.
इन्फ्लूएंजा की वजह से होने वाली जटिलताएं, जैसे कि श्वसन तंत्र की विफलता, कार्यात्मक क्षमता में कमी और संबंधित हृदयधमनी से जुड़ी जटिलताएं, ऐसे समय में लाखों लोगों की आबादी को खतरे में डाल सकती हैं, जब हमारे बीच कोविड-19 का खतरा पहले से ही मौजूद है.
भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोविड-19 महामारी के दौरान व्यस्कों के लिए वर्गीकरण की व्यवस्था करते हुए उन सभी लोगों को फ्लू का टीका लेने की सलाह दी है, जो इससे प्रभावित हो सकते हैं ताकि इन्फ्लूएंजा और उससे जुड़ी जटिलताओं, जिसमें SARS-CoV-2 के साथ सह-संक्रमण भी शामिल है, को रोका जा सके. इससे हेल्थकेयर सिस्टम पर बोझ कम करने में मदद मिलेगी.
इन्फ्लूएंजा वायरस के तीन प्रकार हैं, जो इंसानों को प्रभावित करते हैं. टाइप A, B और C. इनमें से A और B वायरस मौसमी प्रकोप फैलाने के लिए जिम्मेदार हैं.
इस मामले में कम जागरुकता होने की वजह से ऐसा देखा गया है कि लोग आम तौर पर इसका प्रकोप फैलने के बाद ही टीका लेते हैं, (जैसे H1N1 का मामला), और तब तक काफी देर हो चुकी होती है.
यह जानना जरूरी है कि फ्लू वायरस लगातार अपने आप को बदलता रहता है. इन्फ्लूएंजा वायरस सीजन और भौगोलिक क्षेत्र के लिहाज से अलग-अलग स्वरूपों में पाए जाते हैं.
भारत में इसके संक्रमण में तेजी गर्मियों के मौसम से लेकर मॉनसून तक होती है. इस लिहाज से देखा जाए तो भारत में इसका टीका लेने का सर्वाधिक उपयुक्त समय अप्रैल का महीना है.
सालों तक टीकाकरण कार्यक्रमों के दौरान बच्चों को प्राथमिकता दी जाती रही है. हालांकि अब वयस्कों के टीकाकरण को भी प्राथमिकता दी जानी चाहिए, विशेषकर भारत जैसे देश में जहां संक्रामक बीमारियां अभी भी स्वास्थ्य के लिए गंभीर चुनौती बनी हुई हैं.
उम्र बढ़ने के साथ प्रतिरोधक क्षमता में कई तरह के प्रतिकूल बदलाव आते हैं और कई बार यह भी देखा जाता है कि वयस्कता के दौरान शरीर में टीका प्रतिक्रिया अपर्याप्त रूप से विकसित होती है, जिसे इम्यून एजिंग (प्रतिक्षण जीर्णता) कहा जाता है.
जैसे-जैसे दुनिया की उम्र बढ़ रही है, इसमें अधिक से अधिक व्यक्ति शामिल हो रहे हैं, जो कि टीके से बचाव योग्य बीमारियों के प्रति संवेदनशील हैं. हालांकि इन्फ्लूएंजा के खिलाफ टीकाकरण के लिए वैज्ञानिक पैनल और भारत के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की सिफारिशें हैं, लेकिन वयस्कों के लिए इन्फ्लूएंजा टीकाकरण के मामले में अभी भी नीतियों के क्रियान्वयन का अभाव है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक इन्फ्लूएंजा के नवीनतम स्ट्रेन से लड़ने की दिशा में टीकाकरण की भूमिका बेहद अहम है
भारतीय विशेषज्ञों के एक पैनल ने 2019 में सर्वसम्मति से सिफारिशों का समर्थन करते हुए कहा था कि भारत में विशेष रूप से वयस्कों (>50 साल) के लिए टीकाकरण लागत से अधिक लाभकारी है.
इसलिए वयस्क टीकाकरण के महत्व को इस संदर्भ में समझना जरूरी है कि यह हमारी स्वास्थ्य प्रणाली में अहम भूमिका निभाते हुए बचाव की अहमियत को रेखांकित करता है.
जनता को वैक्सीन आसानी से मिलनी चाहिए. इसलिए भारत जैसे विकासशील देशों को स्पष्ट स्वास्थ्य लक्ष्यों के साथ न्यायसंगत और लागत-प्रभावी दृष्टिकोण प्रदान करने के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य प्रणाली को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है, जो न केवल इलाज करेगा बल्कि बीमारियों को रोकने की दिशा में भी काम रोकेगा.
इसमें स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र शामिल हैं, जिसमें लगभग 70% रोगी देखभाल के साथ-साथ अस्पतालों और क्लीनिकों में वयस्क टीकाकरण इकाइयां भी शामिल हैं, जो क्रोनिक बीमारियों के प्रबंधन की दिशा में काम करती हैं.
महामारी (कोविड-19) के दौरान मौसमी फ्लू के खिलाफ लड़ाई को तेज करने के लिए टीकाकरण क्रियान्वयन को बेहतर बनाने में मदद करने के लिए हमें डिजिटल हैल्थकेयर इंफॉर्मेशन स्ट्रक्चर (डिजिटल स्वास्थ्य सेवा सूचना ढांचा) की जरूरत है.
दशकों से इन्फ्लूएंजा टीकाकरण की बदौलत तीव्र श्वसन संक्रमण, गंभीर रूप से फैलने और सभी कारणों से होने वाली मृत्यु के जोखिम को कम करने, ओपीडी के रोगियों की संख्या को घटाने और सीओपीडी वाले मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने के मामलों को कम करने में प्रभावी रूप से मदद मिली है.
आर्थिक मूल्यांकन से लेकर टीकाकरण के लिए आयु समूहों को प्राथमिकता देने के मामले में अब समय आ गया है कि हम इन्फ्लूएंजा टीकाकरण के पीछे के तर्क को समझें. आखिरकार इलाज के मुकाबले रोकथाम की नीति हमेशा से बेहतर रही है.
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