नया साल अपने साथ भयानक COVID-19 संक्रमण, जो पूरा साल 2020 लील गया था- पर काबू पाने की एक नई उम्मीद के रूप में कोविड-19 वैक्सीन लेकर आया.

लेकिन वैक्सीन का तैयार होना सिर्फ आधी जंग जीतना था. 2021 की शुरुआत में दुनिया भर के देश वैक्सीन को मंजूरी देने, इसको हासिल करने, लोगों तक पहुंचाने और लगाने का इंतजाम करने की कोशिशों में जुटे रहे. सीमित सप्लाई की राशनिंग करते हुए अधिकतम फायदा उठाने की कोशिश की, और साथ ही वैक्सीन की झिझक (vaccine hesitancy) का मुकाबला किया.

एक देश जिसके बारे में लगता था कि उसने इन सब बाधाओं को पार कर लिया है, वह था इजरायल. इजरायल दुनिया का पहला देश बनने की ओर बढ़ रहा था, जिसने अपने सभी नागरिकों को पूरी तरह से वैक्सीन लगा दी.

अब सीधे 2021 के मध्य में आते हैं, जब कोरोना के शुरुआती वेरिएंट से भी तेजी से फैलने वाले डेल्टा वेरिएंट (Delta variant) ने अपने पांव जमा लिए थे, और इजरायल दुनिया में रोजाना सबसे ज्यादा इन्फेक्शन रेट वाले देशों में से एक बना और लगभग आपात स्थिति का सामना कर रहा है.

यहां एक दिन में 8,000 से ज्यादा मामले मिल रहे हैं, जिनमें वैक्सीन लगवा चुके कई लोगों को भी इन्फेक्शन (ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन) हो रहा है.

कहां गलती हो गई? इजरायल में कोविड मामलों में बढ़ोतरी हमें ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के बारे में क्या बताती है? क्या भारत को इससे सीख लेनी चाहिए?

इजरायल की कोविड रिस्पॉन्स पर एक नजर

क्या शुरुआती उपाय काफी थे?

हालांकि इजरायल वैक्सीनेशन कवरेज का ठीक से प्रबंधन करने में कामयाब रहा, और इसकी पूरी आबादी के 60 फीसद से थोड़े ज्यादा लोगों को पूरी तरह से वैक्सीन लग जाने के बाद भी “मरीजों की गिनती और अस्पतालों में भर्ती को रोकने के लिए काफी नहीं है.” यह कहना है मुंबई में इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट और ‘द कोरोनावायरस: व्हाट यू नीड टू नो अबाउट द ग्लोबल पैंडेमिक’ के लेखक डॉ. स्वप्निल पारिख का.

इसके अलावा नौजवान आबादी के एक बड़े हिस्से को अभी भी वैक्सीन नहीं लग सकी है— या तो इसलिए कि वे पात्र नहीं हैं या फिर झिझक के चलते.

न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार 12 साल से कम उम्र के लोग (जोखिम वाले समूहों को छोड़कर) अभी भी पात्र नहीं हैं, और 12-15 वर्ष के बच्चों में से केवल 2-4 प्रतिशत को ही वैक्सीन लगी है, क्योंकि हाल ही में जून में उन्हें इसकी इजाजत दी गई थी.

इजरायल में ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन के मामले

“इजरायल में बढ़ते मामलों और मरीजों के अस्पताल में भर्ती होने के पीछे कई वजहें एक साथ मिलकर काम कर रही हैं.”
डॉ. स्वप्निल पारिख, इंटरनल मेडिसिन स्पेशलिस्ट, मुंबई

वह आगे बताते हैं, “इजरायल ने बहुत पहले वैक्सीनेशन शुरू कर दिया था, और कुछ नए आंकड़े बता रहे हैं कि एकदम शुरू में वैक्सीनेशन कराने वालों में समय के साथ सुरक्षा कम हो गई है. इजरायल ने डोज के बीच अंतराल भी बहुत कम रखा.”

इजरायल के स्वास्थ्य मंत्रालय की तरफ से जुलाई में जारी आंकड़ों के मुताबिक जून के अंत और जुलाई की शुरुआत में देश में इन्फेक्शन को रोकने के लिए फाइजर वैक्सीन सिर्फ 39 फीसद असरदार रही, जबकि जनवरी से अप्रैल की शुरुआत तक यह 95 फीसद असरदार रही.

डॉ. पारिख कहते हैं, “इजरायल के लोगों में बहुत ज्यादा सामाजिक मेलजोल और सामाजिक संपर्क है और हालांकि वैक्सीन शानदार है, मगर यह दूसरे सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों की जगह नहीं ले सकती है. बीमारी में बढ़ोतरी के दौरान दूसरे उपायों पर अमल के साथ वैक्सीन की जरूरत होती है.”

इजरायल के मामले में, वहां फिलहाल अस्पतालों में भर्ती कोविड मरीजों में से लगभग आधे ऐसे हैं जिन्हें फाइजर वैक्सीन की पूरी डोज लगाई जा चुकी थी.

हालांकि इस पर भी ध्यान देना होगा कि उनमें से ज्यादातर 60 साल से ऊपर की उम्र के हैं और साथ ही कोमॉर्बिडिटीज (दूसरी गंभीर बीमारियों से जूझ रहे) हैं.

इजरायल के पिताह तिकवा स्थित राबिन मेडिकल सेंटर में कोरोनोवायरस वार्ड प्रमुख नोआ एलियाकिम-राज के मुताबिक वैक्सीनेशन कराने वाले मरीज बूढ़े, बीमार हैं, अक्सर वे इन्फेक्शन के पहले ही बिस्तर पर होते हैं, चलने-फिरने से लाचार होते हैं और पहले से ही नर्सिंग देखभाल में होते हैं.

भारत से इसकी किस तरह तुलना की जा सकती है?

महामारी विज्ञानी डॉ. जेपी मुलियिल के अनुसार, इजरायल का मामला दो वजहों से दिलचस्प है. पहला यह कि उनके पास आंकड़े रखने का एक कारगर सिस्टम है, जो सटीक डेटा उपलब्ध कराता है, और दूसरा यह कि आबादी के एक बड़े हिस्से को वैक्सीनेशन के जरिए ही इम्यूनिटी मिली है.

वे कहते हैं, “अब, भारत में मैं जो कुछ भी देख पा रहा हूं, वह यह है कि ज्यादातर भारतीयों ने प्राकृतिक संक्रमण (natural infection) के जरिए इम्यूनिटी हासिल की है, जो वैक्सीन के मुकाबले बहुत ज्यादा मजबूत लगती है.”

“भले ही डेल्टा बहुत तेज संक्रामक वेरिएंट है, लेकिन पहली लहर में संक्रमित होने वाली आबादी का बड़ा हिस्सा, जैसा कि धारावी के लोग थे, शायद ही कोई (दूसरी लहर में) फिर से संक्रमित हुआ हो. बहुत कम लोग संक्रमित हुए.”
डॉ. मुलियिल, महामारी विज्ञानी

वे कहते हैं, “बेशक, हम में से कुछ इंसान एंटीबॉडी नहीं बना सकते हैं और ऐसे अपवाद होंगे. लेकिन कुल मिलाकर हम बहुत अच्छे हाल में हैं.”

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दूसरी तरफ डॉ. पारिख का कहना है कि, हालांकि प्राकृतिक इन्फेक्शन के बाद दोबारा इन्फेक्शन हो सकता है, मगर “पिछले इन्फेक्शन से इम्यूनिटी और वैक्सीन से हासिल इम्यूनिटी का मेल सबसे मजबूत इम्यूनिटी मुहैया कराने वाला लगता है.”

वह कहते हैं, “इन ‘हाइब्रिड इम्युनिटी’ वाले लोगों में एंटीबॉडी टाइटर्स, मेमोरी रिस्पांस और सेलुलर प्रतिक्रियाएं काफी ज्यादा थीं.”

“आपको ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन (वैक्सीनेशन के बाद) के बारे में फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि यह इन्फेक्शन भविष्य में आपकी इम्यूनिटी रिस्पांस को बेहतर बनाने के लिए बूस्टर डोज के तौर पर काम करेगा.”
डॉ. जेपी मुलियिल, महामारी विज्ञानी

क्या बूस्टर शॉट्स लेना जरूरी है?

इजरायल ने ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन में बढ़ोतरी का हवाला देते हुए 60 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को बूस्टर डोज देना शुरू कर दिया है, और मंगलवार, 24 अगस्त को इसकी आयु सीमा घटाकर 30 साल कर दी गई.

अमेरिका ने डेल्टा वेरिएंट के मामलों में बढ़ोतरी पर लगाम लगाने के लिए सभी के वास्ते तीसरे बूस्टर शॉट को मंजूरी देते हुए इजरायल के अध्ययनों का भी हवाला दिया है.

लेकिन सभी विशेषज्ञ इस पर एक राय नहीं हैं.

डॉ. पारिख और डॉ. मुलियिल दोनों इस बात से सहमत हैं कि कुछ जोखिम वाले समूहों जैसे कि कैंसर मरीज और ट्रांसप्लांट कराने वालों को बूस्टर की जरूरत हो सकती है. लेकिन वे इसे हर एक को लगाने को लेकर निश्चित नहीं हैं.

डॉ. पारिख कहते हैं, “यह एक बेहद जटिल मुद्दा है. मेरा एक लाइन का जवाब होगा ‘नहीं, इस बात के पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि गंभीर बीमारी, अस्पताल में भर्ती होने और मौत के जोखिम को कम करने के लिए सभी समूहों को बूस्टर डोज की जरूरत है. फिलहाल बहुत सीमित सबूत हैं कि इस मकसद के लिए पूरी आबादी को बूस्टर की जरूरत है.”

“असल में इसके बहुत कम सबूत हैं कि गंभीर बीमारी, मौतों और अस्पताल में भर्ती होने से बचाने के लिए पूरी आबादी को बूस्टर डोज की जरूरत है.”
स्वप्निल पारिख, इंटरनल मेडिसिन स्पेशनिस्ट, मुंबई

इजरायल के डेटा से यह भी पता चलता है कि गंभीर बीमारी को रोकने में फाइजर वैक्सीन 97.5 फीसद कारगर है.

यह हमें इस सवाल की ओर ले जाता है...

हम कोविड-19 वैक्सीन से क्या चाहते हैं?

यह इन्फेक्शन रोकने के लिए है या बीमारी?

डॉ. पारिख का मानना है कि यह फर्क जानना बहुत जरूरी है.

“उन्होंने (वैक्सीन कंपनियों ने) वादा किया था कि वैक्सीन गंभीर इन्फेक्शन को रोकेगा और ऐसा देखा जा रहा है. बूस्टर डोज इन्फेक्शन को रोकने के लिए ली जा रही है, और मेरी राय में यह काम नहीं करेगा.”
डॉ. जेपी मुलियिल, महामारी विज्ञानी

वे कहते हैं, “इससे एंटीबॉडी का स्तर ऊपर उठेगा, लेकिन जरूरी नहीं कि इससे इन्फेक्शन से सुरक्षा भी होगी.”

इजरायल में 93 लाख की आबादी में 13 लाख से ज्यादा लोगों को फाइजर की तीन डोज लगी है. अल जज़ीरा की रिपोर्ट बताती है कि उनमें से भी कुछ को ब्रेकथ्रू इन्फेक्शन हुआ है.

डॉ. पारिख कहते हैं, “छोटी समय-अवधि में 4 डोज लेने पर भी 2 से ज्यादा फायदा नहीं मिल सकता है, बल्कि यह प्रक्रिया पूरी होने पर निर्भर करता है. ज्यादा से ज्यादा एंटीबॉडी रिस्पांस चाहिए या बीमारी से सुरक्षा?”

वह कहते हैं, “शायद इन्फेक्शन और हल्की बीमारी के जोखिम को कम करने के मामले में बहुत मामूली फायदा है.”

लेकिन डॉ. पारिख और डॉ. मुलियिल दोनों इस बात से सहमत हैं कि अभी तक यह कहने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं हैं कि तीसरी बूस्टर डोज अस्पताल में भर्ती होने और मौत को दूसरी डोज से बेहतर तरीके से रोक सकती है.

डॉ. पारिख कहते हैं, “वैक्सीन की कमी को देखते हुए एकदम साफ है कि ज्यादा से ज्यादा देशों में पहली डोज को अधिकतम लोगों को लगाने का शुद्ध लाभ कुछ देशों में तीसरी डोज के मामूली फायदे से ज्यादा है.”

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