कोई भी वैक्सीन इस्तेमाल में आने से पहले गहन शोध और ट्रायल से गुजरती है.

वैक्सीन के विकास से लेकर मंजूरी मिलने तक में वर्षों या दशकों लग सकते हैं, लेकिन Covid वैक्सीन सबसे तेजी से बनाई गई हैं.

सुरक्षा चिंताओं, अप्रत्याशित आपूर्ति, और अब, वेरिएंट जैसे कई कारकों ने दुनिया भर में कई अध्ययनों को सफलता की संभावना बढ़ाने या उनका विवेकपूर्ण उपयोग करने के लिए प्रेरित किया है.

'मिक्स-एंड-मैच' का तरीका - दो डोज में अलग-अलग कोविड वैक्सीन देने पर विचार करना भी उनमें से एक है.

अब, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक अध्ययन में कहा गया है कि कोविशील्ड (Covishield) और कोवैक्सीन (Covaxin) को मिलाने से एक ही वैक्सीन की दो डोज की तुलना में बेहतर इम्युनोजेनेसिटी यानी एक तरह से बेहतर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया मिली है और कोरोना वेरिएंट के खिलाफ भी इसका बेहतर असर रहा.

'यह पूरी तरह से अपेक्षित है'

ध्यान दें कि ICMR की ये स्टडी उत्तर प्रदेश में हुई गड़बड़ी के बाद की गई, जिसमें मई में लगभग 20 लोगों को दूसरी डोज में कोवैक्सीन लगा दी गई थी जबकि उन्हें पहली डोज कोविशील्ड की लगाई गई थी.

स्टडी में इनमें से 18 लोगों को शामिल कर उनमें देखी गई इम्यून प्रतिक्रिया की तुलना कोविशील्ड की दो खुराक लेने वाले 40 लोगों और कोवैक्सीन की दो खुराक लेने वाले 40 लोगों से की गई.

क्या इस स्टडी के निष्कर्ष कोई अच्छी खबर देते हैं? ये विश्लेषण कितना विश्वसनीय है? क्या इससे नई संभावनाएं दिखती हैं?

इम्यूनोलॉजिस्ट डॉ. सत्यजीत रथ ने फिट को बताया,

"इम्यूनोलॉजिकल रूप से, यह पूरी तरह से अपेक्षित है और इसमें आश्चर्य वाली कोई बात नहीं है. ऐसा कोई भी मिक्सिंग पूरी तरह से सुरक्षित होगी, और इनमें से कोई भी वैक्सीन किसी भी दूसरी वैक्सीन के लिए बूस्टर के तौर पर काम करेगी."

डॉ. रथ कहते हैं, "तथ्य यह है कि सबूत इकट्ठा करने चाहिए और विशेष रूप से नीति बनाने से पहले सबूतों को देखना चाहिए."

तो, यह कुछ नया नहीं है.

नैतिक और तकनीकी चिंताएं

'Serendipitous COVID-19 Vaccine-Mix in Uttar Pradesh, India: Safety and Immunogenicity Assessment of a Heterologous Regime', इस स्टडी को medRxiv पर प्रकाशित किया गया है और इसका पीयर रिव्यू बाकी है.

इसमें छोटे सैंपल साइज के अलावा, डॉ रथ कहते हैं कि नैतिक कठिनाइयां भी हैं.

वो कहते हैं, "अगर आप प्रीप्रिंट को देखते हैं, तो यह स्वीकार करता है कि यह एक अनजाने में हुई त्रुटि थी, लेकिन यह एक डिजाइन किया गया अध्ययन होने का आभास देता है."

जबकि अध्ययन शीर्षक के पहले भाग से पता चलता है कि यह एक त्रुटि थी, इसके दूसरे हिस्से का अर्थ है कि यह इस व्यवस्था की सुरक्षा और प्रतिरक्षात्मकता का औपचारिक मूल्यांकन है.

न केवल अनैतिक, बल्कि यह अस्पष्ट रूप से लिखा गया है और इसकी कई तकनीकी सीमाएं भी हैं.

डॉ. रथ कहते हैं, "यह इतना खराब लिखा हुआ पेपर है... यह बहुत परेशानी में डालने वाला है."

वे कहते हैं, "जहां वे एंटीबॉडी लेवल का डेटा दिखा रहे हैं... y-अक्ष, जो एंटीबॉडी लेवल को इंगित करना चाहिए, यह वास्तव में वायरस न्यूट्रलाइजेशन के लिए लेबल किया गया है."

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डॉ. रथ यह भी कहते हैं कि एंटीबॉडी लेवल का मापन ठीक से नहीं किया गया है.

"तकनीकी रूप से भी, विशेष रूप से डेटा सटीक नहीं है."

अध्ययन में कहा गया है कि विषम समूह में अल्फा, बीटा और डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ इम्युनोजेनेसिटी प्रोफाइल भी बेहतर थी.

डॉ. रथ कहते हैं, "लेकिन 18 सैंपल के साथ, वास्तव में कुछ भी कहने का कोई तरीका नहीं है."

चूंकि कोविशील्ड में वायरल N प्रोटीन नहीं होता है, इसलिए इसके साथ टीकाकरण में N प्रोटीन के खिलाफ एंटीबॉडी नहीं होनी चाहिए.

"तथ्य यह है कि कोविशील्ड-कोविशील्ड ग्रुप में इस तरह के एंटी-N प्रोटीन एंटीबॉडी का पता लगना, इस संभावना को बढ़ाता है कि इन अध्ययन ग्रुप में व्यापक अज्ञात SARS-CoV-2 संक्रमण हो सकता है. यह संभावना इन परिणामों की किसी भी व्याख्या को और भी कम विश्वसनीय कर देती है."
डॉ. रथ

लब्बोलुआब यह है कि हालांकि यह एक दिलचस्प प्रारंभिक डेटा है, लेकिन यह विशेष रूप से विश्वसनीय नहीं है.

डॉ रथ कहते हैं, "वास्तविक दुनिया में नीतिगत निर्णय लेने से पहले हमें उचित साक्ष्य की प्रतीक्षा करनी चाहिए."

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Published: 10 Aug 2021,11:19 PM IST

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