द लैंसेट में छपी एक स्टडी के मुताबिक हेल्थकेयर वर्कर्स को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए सर्जिकल मास्क की बजाए N-95 रेस्पिरेटर मास्क का इस्तेमाल करना चाहिए.
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की ओर से फंडेड ये स्टडी 172 मौजूदा स्टडीज का मेटा-एनालिसिस है. पिछले अध्ययनों में भी ये साबित हो चुका है कि मास्क पहनना प्रभावी है.
मास्क को लेकर ये नई स्टडी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) और अमेरिकी सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) से अलग है, जिसमें सर्जिकल मास्क की सिफारिश की गई है.
WHO की गाइडलाइन के मुताबिक स्वस्थ लोगों को मास्क पहनने की जरूरत तभी है, जब वे किसी कोरोना मरीज की देखभाल में लगे हों.
न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक मास्क को लेकर WHO के इस रुख से कई पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट्स कन्फ्यूज और परेशान हुए क्योंकि अक्सर COVID-19 वाले मरीज यह नहीं जानते हैं कि उन्हें बीमारी है और मास्क से संदिग्ध ट्रांसमिशन को रोका जा सकता है.
लैंसेट की स्टडी में पाया गया है कि फिजिकल डिस्टेन्सिंग यानी एक-दूसरे से उचित दूरी ट्रांसमिशन का रिस्क घटाने में कारगर है. 3 फीट दूर रह कर ट्रांसमिशन का रिस्क 13 परसेंट से घटकर 3 परसेंट तक कम हो सकता है.
इसमें ये भी पाया गया है कि मास्क से इन्फेक्शन का रिस्क 17 परसेंट घटकर से 3 परसेंट तक कम हो सकता है और आई प्रोटेक्शन से इन्फेक्शन का रिस्क 16 प्रतिशत से घटकर 6 प्रतिशत तक कम हो सकता है.
लैंसेट की स्टडी में कहा गया है कि हेल्थकेयर वर्कर्स को अतिरिक्त सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है जैसे कि फेस शील्ड, गॉगल्स एंड ग्लासेज - जो भारत में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार पीपीई किट का हिस्सा है.
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