नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) फेज 2 के आंकड़े बुधवार 24 नवंबर, 2021 को जारी किए गए. इस सर्वे में सबसे खास बात प्रजनन दर में गिरावट (2.2 से 2), प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या हजार पार (1020) होना रही.

बच्चों के न्यूट्रिशनल स्टेटस में थोड़ा सुधार जरूर देखा गया है, लेकिन बच्चों और महिलाओं में एनीमिया (खून की कमी) की स्थिति चिंतित करने वाली है.

नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य), डॉ. विनोद कुमार पॉल और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सचिव राजेश भूषण ने भारत और 14 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के लिए जनसंख्या, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य पर प्रमुख संकेतकों की फैक्टशीट जारी की.

NFHS-5 के इस फेज 2 में जिन राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वे जारी गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं.

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 की खास बातें

देश में पहली बार प्रजनन दर 2.1 से नीचे

प्रजनन दर में गिरावट

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

पहली बार देश में प्रजनन दर 2 पर आ गई है. 2015-16 में यह 2.2 थी. इस तरह भारत की कुल प्रजनन दर यानी प्रति महिला बच्चों की औसत संख्या राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 से घटकर 2 हो गई है.

ये चंडीगढ़ में 1.4 से लेकर उत्तर प्रदेश में 2.4 तक पहुंच गई है. सर्वे से पता चला है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश को छोड़कर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के फेज 2 में शामिल अन्य राज्यों ने प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर (2.1) हासिल कर लिया है. 2.1 की प्रजनन दर पर आबादी की वृद्धि स्थिर बनी रहती है.

पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर हजार से ज्यादा महिलाएं

प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

पहली बार प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1020 हो गई है. इससे पहले 2015-16 में हुए NFHS-4 (2015-16) में यह आंकड़ा प्रति 1000 पुरुषों पर 991 महिलाओं का था.

कुल आबादी में लिंग अनुपात शहरों की बजाए गांवों में बेहतर है. गांवों में प्रति 1000 पुरुषों पर 1037 महिलाएं हैं, जबकि शहरों में 985 महिलाएं हैं.

जन्म के समय का लिंग अनुपात भी सुधरा है. 2015-16 में यह प्रति 1000 बच्चों पर 919 बच्चियों का था. इस सर्वे में यह आंकड़ा प्रति 1000 बच्चों पर 929 बच्चियों पर पहुंच गया है.

शिशु मृत्यु दर और न्यूट्रिशनल स्टेटस में सुधार

बच्चों की मृत्यु दर में थोड़ा सुधार

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

पिछले सर्वे की तुलना में 2019-21 के इस सर्वे के मुताबिक, देश की शिशु मृत्यु दर (Mortality Rate) में कमी देखने को मिली है. देश में नवजात शिशुओं (प्रति 1,000 जन्मों पर मौतें) और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में कमी आई है.

बच्चे और बड़ों का न्यूट्रिशनल स्टेटस

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

सर्वे में बच्चों के न्यूट्रिशनल स्टेटस में थोड़ा सुधार देखा गया है क्योंकि देश में 5 साल से कम उम्र के बच्चों में स्टंटिंग 38.4 प्रतिशत से घटकर 35.5 प्रतिशत और कम वजन 35.8 प्रतिशत से 32.1 प्रतिशत हो गया है.

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इसके अलावा सर्वे के मुताबिक छह महीने से कम उम्र के बच्चों को स्तनपान कराने में 2015-16 में 55 प्रतिशत से 2019-21 में 64 प्रतिशत तक सुधार हुआ है.

वहीं पिछले सर्वे (NFHS-4) की तुलना में 5 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ ही मोटापे से ग्रस्त वयस्कों की संख्या में भी इजाफा हुआ है.

मोटापा भी बढ़ रहा

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

बच्चों का वैक्सीनेशन कवरेज बढ़ा

पिछले NFHS-4 और NFHS-5 डेटा की तुलना करने पर, कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में तेजी से वृद्धि देखी गई है.

12-23 महीने की आयु के बच्चों के बीच बीमारियों से बचाव के लिए पूर्ण टीकाकरण अभियान में राष्ट्रीय स्तर पर 62 प्रतिशत से 76 प्रतिशत तक पर्याप्त सुधार दर्ज किया गया है. 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में से 11 में 12 से 23 महीने की उम्र के तीन-चौथाई से अधिक बच्चों का पूरी तरह से टीकाकरण हुआ है और यह ओडिशा के लिए सबसे अधिक 90 प्रतिशत है.

एनीमिया के मामले में चिंताजनक स्थिति

देश में एनीमिया से जूझ रहे बच्चों और महिलाओं की तादाद चिंतित करने वाली है. देश में आधे से अधिक महिलाएं, जिनमें गर्भवती महिलाएं भी शामिल हैं और बच्चे एनीमिक हैं यानी उनमें खून की कमी है.

बच्चों और महिलाओं में खून की कमी

(कार्ड: फिट/इरम गौर)

ग्रामीण भारत में 6-59 महीने के 68.3 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी दर्ज की गई है. शहरों में ये तादाद 64.2 प्रतिशत का है. इस आयु वर्ग में 2019-21 में कुल एनीमिक बच्चों की तादाद 67.1 फीसद है, जो कि 2015-16 के दौरान 58.6 फीसद थी.

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Published: 25 Nov 2021,06:50 PM IST

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