पिछले दशक तक, किसी के भी लंग कैंसर से ग्रस्त होने की औसत उम्र 70 साल थी. यह भी तब होता था, जब आप धूम्रपान के आदी हों या फिर वैसे लोगों के बीच में रहते हों. लेकिन आज, सीडीसी अटलांटा के अनुसार, लंग कैंसर के रोगियों में 10% से 15% तक हेल्दी और कभी भी सिगरेट न पीने वाले 40 साल तक के युवा होते हैं.
इससे सबसे ज्यादा परेशान रहने वाला इलाका दिल्ली का है, जहां 20% ऐसे कैंसर पेशेंट हैं, जिन्होंने कभी अपनी जिंदगी में सिगरेट को हाथ भी नहीं लगाया. यह ग्लोबल एवरेज डेटा से 5% ज्यादा है.
अमेरिका में धूम्रपान नहीं करने वालों में लंग कैंसर से मौत छठा सबसे बड़ा कारण है. दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री के अनुसार, राजधानी में सभी तरह के कैंसर के बीच लंग कैंसर सबसे अधिक लोगों में देखा गया है.
जानकारी के मुताबिक:
जेनेटिक आल्ट्रेशन यानी की जीन में बदलाव से होता है Carcinogen Sponges : धूम्रपान नहीं करने वालों में जेनेटिक चेंज धूम्रपान करने वालों से बहुत अलग होता है. उनका शरीर विषाक्त पदार्थों का सफाया करने के लिए तैयार नहीं होता है, जो Carcinogen Sponges नाम से जाना जाता है और उनके शरीर में कैंसर तत्व आसानी से घर कर जाते हैं.
दिल्ली में 20% ज्यादा लंग कैंसर रोगी पाए जाने का मतलब है कि एयर पाॅल्यूशन इस बीमारी का प्रमुख कारण माना जा सकता है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि एशियाई लोगों में यूरोपियन लोगों की तुलना में इस बीमारी का खतरा ज्यादा होने की एक वजह खाना पकाने के लिए गर्म किए जाने वाले तेल से निकलने वाला धुआं है.
हालांकि अभी भी इस बीमारी पर बहुत ज्यादा रिसर्च किए जाने की जरूरत है. लंग कैंसर पर किए जाने वाले रिसर्च पर निवेश पिछले एक दशक में दोगुना हो गया है. लेकिन अभी भी स्तन कैंसर की तुलना में यह सिर्फ एक-तिहाई फंड और ल्यूकेमिया के लिए दिए जाने वाले फंड की तुलना में आधे से भी कम फंड प्राप्त करता है.
लेकिन यह फैक्ट अब गलत साबित हो रहा है कि लंग कैंसर खुद से जनित की गई बीमारी है. अब कोई भी इंसान इससे ग्रस्त हो सकता है.
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