जैवलिन थ्रो चैंपियन नीरज चोपड़ा ने शनिवार 7 अगस्त को एथलेटिक्स में भारत का पहला ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया और ओलंपिक खेलों में व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले दूसरे भारतीय बन गए.
हालांकि ओलंपिक का सफर आसान नहीं था. यह कड़ी मेहनत, समर्पण और दृढ़ संकल्प के साथ-साथ यह मुश्किलों, निराशाओं, चोट और दर्द से भी भरा था.
नीरज चोपड़ा के मामले में ऐसी ही आर या पार वाली हालत कोहनी की चोट के रूप में आई, जिसने उन्हें ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने से लगभग रोक ही दिया था, जीत तो दूर की बात थी.
फिट ने कोकिलाबेन अस्पताल में स्पोर्ट्स मेडिसिन सेंटर के प्रमुख डॉ. दिनशॉ पारदीवाला से बात की, जिन्होंने साल 2019 में चोपड़ा की थ्रोइंग आर्म की क्रिटिकल सर्जरी की थी.
सबसे पहला सवाल, यह जानते हुए कि उनकी ऐतिहासिक जीत में आपकी भी भूमिका है आप कैसा महसूस कर रहे हैं?
मैं सच में बहुत खुश हूं कि उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया है, और मुझे अचंभा नहीं हुआ कि उन्होंने इतना अच्छा प्रदर्शन किया. मेरा मतलब है कि मुझे उनसे ऐसा ही कुछ करने उम्मीद थी.
ईमानदारी से कहूं तो उनकी स्वर्ण पदक की सफलता में मैंने जो भूमिका निभाई है, वह असल में बहुत मामूली है.
मुझे लगता है कि 95 प्रतिशत पदक असल में उन्हीं का है, क्योंकि वह सचमुच ऐसे शख्स हैं जिसने समर्पण के साथ सालों से पूरी कोशिश की है.
अगर आप मुझसे पूछें तो इसमें 4 प्रतिशत कोच का हिस्सा होगा, फिर बाकी 1 प्रतिशत बचे हुए हिस्से में हर तरह का साथ आता है, और मुझे लगता है कि मैं भी उस 1 प्रतिशत में ही आऊंगा.
उनको इंजरी (चोट) थी, जिसे ठीक किए जाने की जरूरत थी, और जिसे ठीक कर दिया गया. इसके बाद यह उन पर है कि वह अपने फायदे के लिए इसका कितनी अच्छी तरह इस्तेमाल करते हैं.
अगर उन्होंने इतना अच्छा प्रदर्शन नहीं किया होता, तो भी मुझे खराब नहीं लगता क्योंकि मुझे मालूम है कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया है. लेकिन तथ्य यह है कि वह जीत गए हैं और मैं बहुत खुश हूं! यह सब उनकी मेहनत की वजह से है.
नीरज चोपड़ा की इंजरी कैसी थी?
मैं आपको वही बताऊंगा जो मैं आपको बता सकता हूं. नीरज की दाहिनी बांह की कोहनी में इंजरी थी, जिसका इस्तेमाल वह जैवलिन फेंकने के लिए करते हैं.
कई बार जोड़ में हड्डियां बढ़ जाती हैं, और कभी-कभी बहुत बुरी हालत में खिसक जाती हैं या चटक जाती हैं और जोड़ में परेशानी कर सकती हैं या जोड़ को लॉक कर सकती हैं.
क्या आप सर्जरी के बारे में कुछ बता सकते हैं? इसमें कितना जोखिम था?
उनकी (चोपड़ा) आर्थोस्कोपिक सर्जरी (arthroscopic surgery) की गई थी. इसमें एक छोटा टेलीस्कोप कोहनी के जोड़ में जाता है, जिसकी मदद से हमने ज्वाइंट की मरम्मत की और इससे रिकंस्ट्रक्ट किया.
“क्या इसमें जोखिम था?” यह एक मुश्किल सवाल है.
हर सर्जरी में एक हद तक जोखिम होता है, लेकिन अगर सर्जन ने पहले कई बार प्रोसीजर की है, तो जोखिम कम से कम होगा. इस तरह की प्रोसीजर से मरीज को पूरी तरह वापस सामान्य हालत में लाना मुमकिन है.
एक एथलीट के लिए ‘सामान्य हालत में वापसी’ का क्या मतलब है?
जब आप कहते हैं ‘सामान्य हालत बहाली’, तो हम असल में जिस चीज की बात कर रहे हैं, वह है शारीरिक संरचना या आकार को वापस सामान्य हालत में लाना. सर्जन के तौर पर हम इसे वैसा ही ठीक कर सकते हैं जैसा कि कुदरत ने इसे बनाया है.
सर्जरी के दौरान उन्होंने थोड़ी ताकत और अपना स्तर गंवा दिया था, और वह तकलीफ में थे. इसलिए उसके बाद उन्हें उनके प्रदर्शन के स्तर पर वापस लाने के लिए थोड़े समय का रिहैबिलिटेशन बहुत जरूरी था.
सर्जरी के बाद खिलाड़ियों के लिए रिहैबिलिटेशन पीरियड कितने समय का होता है? इसमें क्या होता है?
रिहैबिलिटेशन में आमतौर पर लगभग 4 महीने लगते हैं. इन 4 महीनों में हमने कोहनी को ताकत देने पर फोकस किया और एक्सरसाइज की मदद से उनकी क्षमता पर काम किया.
एक बार ऐसा हो जाने के बाद हमें पूरी सिस्टमेटिक चेन पर काम करना होता है.
किसी भी थ्रोइंग स्पोर्ट में सिर्फ ज्वाइंट ही काम नहीं करता है. किसी दूरी तक फेंकने के लिए आपको फोर्स पैदा करने की जरूरत होती है.
वह फोर्स ठीक आपके पैरों से आता है, जो आपके धड़, आपके शरीर के मध्य भाग (core), आपकी पीठ, पीठ के ऊपरी हिस्से में स्थानांतरित होता है.
आप वह फोर्स अपने कंधे से भी पैदा करते हैं, और फिर इसे कोहनी और अपनी बांह में भेजते हैं. इस तरह यह पूरी तरह एक श्रृंखलाबद्ध चेन है.
आपने फोगाट बहनों जैसे दूसरी बड़ी एथलीट्स का भी ऑपरेशन किया है. क्या एथलीट्स के मामले में ज्यादा दबाव होता है?
नहीं ऐसा नहीं है. मैं जिन मरीजों का इलाज करता हूं उनमें से ज्यादातर एथलीट हैं, इनमें से कुछ शौकिया खेलने वाले एथलीट होते हैं, कुछ प्रतियोगिता में खेलने वाले सेलेब्रेटी और अंतरराष्ट्रीय एथलीट होते हैं.
लेकिन, मरीजों के मामले में ऐसा कभी नहीं होता है कि कोई एक दूसरे से ज्यादा खास है. डॉक्टर के रूप में मैं X मरीज का उससे अलग तरीके से इलाज नहीं करूंगा, जैसा कि Y मरीज का करता.
भविष्य के एथलीट्स या ट्रेनिंग ले रहे खिलाड़ियों को आप क्या सलाह देंगे?
प्रतियोगिता में खेलने वाले हर एथलीट के लिए खास बात (ध्यान में रखने वाली) यह है कि आपको अपनी फिटनेस पर काम करने की जरूरत है.
इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप किस तरह का खेल खेलते हैं, और किस स्तर पर खेलते हैं, आपकी महारत के साथ ही आपकी फिटनेस जरूरी है.
जब हम फिटनेस की बात करते हैं तो इसके कई अलग-अलग पहलू होते हैं.
पहली है मजबूती (strength) और अनुकूलन (conditioning).
बात जब मजबूती की आती है, तो आपको यह पक्का करने की जरूरत है कि आपकी मांसपेशियों में, जो आपकी मेन मोटर हैं, खेल की जरूरत के हिसाब से अचानक या धीरे-धीरे एनर्जी देने की क्षमता हो. इसलिए आपको उसी के हिसाब से प्रशिक्षण लेना होगा.
दूसरा हिस्सा आपका लचीलापन (flexibility) है. अगर आपके जोड़ों (joints) में अकड़न है या मांसपेशियां सख्त हैं तो आपकी मांसपेशियां फटने और चोट लगने की संभावना ज्यादा होती है.
तीसरा है टिकाऊपन (stability). आपको ऐसे जोड़ों की जरूरत है जो टिकाऊ हों ताकि खिसकें नहीं.
चौथा तालमेल (coordination) है. अगर आपके पास यह सब है, और आपकी मांसपेशियों में अच्छा तालमेल है, तो आप पाएंगे कि आपकी कार्यप्रणाली काफी बेहतर होगी.
अंतिम बात, आपको संतुलन और अंगों के परिचालन की संवेदनशीलता (proprioception) से अपने मनमाफिक नतीजे हासिल करने के लिए इन सभी कंपोनेंट का एक साथ इस्तेमाल करने की क्षमता.
हड्डियों की अच्छी सेहत के लिए कौन सी खास चीजें हैं, जिन पर पूरी तरह खेल को समर्पित बढ़ते बच्चों के मां-बाप को ध्यान देने की जरूरत है?
हड्डियों की अच्छी सेहत एक अच्छी डाइट से बनती है. अगर वे हेल्दी बैलेंस डाइट लेते हैं तो यह बहुत अच्छा है. बहुत जरूरी नहीं कि मांसाहारी डाइट हो, आमतौर पर आपको प्रोटीन शेक या किसी सप्लीमेंट की जरूरत नहीं है.
थोड़ी मात्रा में धूप लेने से भी हड्डियों को मजबूत बनाने में मदद मिलेगी.
एक बार फिर याद रखिए कि, ओवरऑल फिटनेस बच्चों के लिए भी जरूरी है, चाहे वे जो भी खेल खेलते हों. और बात जब फिटनेस की आती है तो छोटी उम्र से शुरुआत करना बेहतर है.
“जल्दी शुरुआत करना जरूरी है. आप ऐसा नहीं सोच सकते, ‘छोड़ो जब मैं मुंबई के लिए खेलूंगा तब मैं फिट हो जाऊंगा,’ नहीं, अगर आप अपनी ओवरऑल फिटनेस के लिए अभी काम नहीं करते हैं तो आप उस मुकाम तक पहुंच ही नहीं पाएंगे.”
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