विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 26 नवंबर 2021 को कोरोना वायरस SARS-CoV-2 के B.1.1.529 वेरिएंट, जिसे Omicron नाम दिया गया है, को वेरिएंट ऑफ कंसर्न माना.

WHO के टेक्निकल एडवाइजरी ग्रुप ऑन वायरस इवोल्यूशन (TAG-VE) को पेश किए गए सबूतों के मुताबिक Omicron में कई म्यूटेशन हैं, उनमें से कुछ चिंता बढ़ाने वाले हैं, जो कोरोना संक्रमण के फैलने की क्षमता, COVID-19 की गंभीरता और कोरोना के खिलाफ वैक्सीन या पिछले संक्रमण से हासिल इम्यूनिटी को प्रभावित कर सकते हैं.

दक्षिण अफ्रीका और दुनिया भर के शोधकर्ता Omicron के कई पहलुओं को बेहतर ढंग से समझने के लिए अध्ययन कर रहे हैं.

क्या कोरोना का Omicron वेरिएंट अधिक संक्रामक है?

WHO के मुताबिक यह अभी तक पूरी तरह से ये साफ नहीं है कि डेल्टा सहित दूसरे वेरिएंट की तुलना में Omicron एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अधिक आसानी से फैल सकता है. इस वेरिएंट से प्रभावित दक्षिण अफ्रीका के क्षेत्रों में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या बढ़ी है, लेकिन यह समझने के लिए अध्ययन चल रहे हैं कि क्या यह Omicron वेरिएंट के कारण है या नहीं.

हालांकि दक्षिण अफ्रीका में Omicron वेरिएंट की पहचान के साथ कोरोना संक्रमण के मामलों में भी अचानक उछाल देखा गया है.

दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने रविवार 28 नवंबर 2021 की रात को राष्ट्र को संबोधित करते हुए बताया कि पिछले दो हफ्तों में गौतेंग प्रांत में कोरोना के ज्यादातर मामलों के लिए Omicron वेरिएंट जिम्मेदार है और अब इसके मामले दूसरे प्रांतों में भी सामने आ रहे हैं. राष्ट्रीय स्तर पर टेस्ट पॉजिटिविटी 2 प्रतिशत से बढ़कर 9 प्रतिशत हो गई है.

क्या Omicron वेरिएंट से अधिक गंभीर COVID-19 होने का खतरा है?

यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि डेल्टा सहित दूसरे कोरोना वेरिएंट से संक्रमणों की तुलना में Omicron से संक्रमण अधिक गंभीर बीमारी का कारण बनता है या नहीं. शुरुआती आंकड़ों से पता चलता है कि दक्षिण अफ्रीका में अस्पताल में भर्ती होने की दर बढ़ रही है, लेकिन यह साफ नहीं है कि क्या इसकी वजह संक्रमित होने वाले लोगों की कुल संख्या में वृद्धि के कारण है या खास तौर पर Omicron वेरिएंट के कारण है.

फिलहाल इसकी भी कोई जानकारी नहीं है कि Omicron वेरिएंट से जुड़े लक्षण दूसरे वेरिएंट से अलग हों. प्रारंभिक रिपोर्ट किए गए संक्रमण यूनिवर्सिटी के छात्रों में थे - युवा लोग जिन्हें आमतौर पर हल्की बीमारी होती है - लेकिन Omicron वेरिएंट की गंभीरता को समझने में कई कई हफ्तों तक का समय लगेगा.

शुरुआती सबूतों से पता चलता है कि दूसरे वेरिएंट ऑफ कंसर्न की तुलना में Omicron के कारण दोबारा कोरोना संक्रमण का जोखिम बढ़ सकता है, लेकिन इस पर अभी सीमित जानकारी है. इस बारे में और जानकारी आने वाले दिनों में उपलब्ध होगी.

क्या मौजूदा COVID-19 वैक्सीन कोरोना के Omicron वेरिएंट पर असरदार होगी?

WHO तकनीकी भागीदारों के साथ काम कर रहा है ताकि वैक्सीन सहित मौजूदा रोकथाम और मैनेजमेंट के उपायों पर इस वेरिएंट के संभावित प्रभाव को समझा जा सके. गंभीर बीमारी और COVID-19 से मौत का जोखिम घटाने में वैक्सीन अहम है, ये बात डेल्टा वेरिएंट के मामले में भी देखी गई है.

लेकिन जब डेल्टा वेरिएंट के खिलाफ वैक्सीन के असर में गिरावट देखी गई है, तो क्या Omicron के मामले में वैक्सीन के असर में और गिरावट हो सकती है?

ये सवाल इसलिए अहम है क्योंकि Omicron में लगभग 50 म्यूटेशन की बात कही जा रही है, जिसमें से 32 म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन में शामिल हैं, वैक्सीन शरीर को इसी स्पाइक की पहचान कर हमला करने के लिए तैयार करता है. ये म्यूटेशन स्पाइक प्रोटीन के उन हिस्सों में भी है, जिसके जरिए वायरस कोशिकाओं में प्रवेश करता है.

Omicron में 25 यूनिक स्पाइक म्यूटेशन भी हैं, जबकि डेल्टा वेरिएंट में 10 यूनिक स्पाइक म्यूटेशन और बीटा में 6 यूनिक स्पाइक म्यूटेशन का पता चला था.
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अमेरिका के ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के डीन डॉ. आशीष झा के मुताबिक अभी इसके बारे में ज्यादा पता नहीं है, लेकिन चिंता की कुछ वजह तो है क्योंकि इसमें प्रमुख हिस्सों में म्यूटेशन की एक सीरीज है, जो वैक्सीन की प्रभावशीलता को प्रभावित कर सकती है.

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में सिएटल के फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर में बायोलॉजिस्ट डॉ. जेसी ब्लूम कहते हैं, "दूसरे वेरिएंट और म्यूटेशन पर किए गए तमाम कामों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि Omicron के म्यूटेशन एंटीबॉडी न्यूट्रलाइजेशन में गिरावट की वजह बन सकते हैं."

लेकिन डॉ. आशीष झा अपने ट्वीट में ये भी साफ करते हैं, "ऐसा नहीं है कि वैक्सीन इस पर बेकार हो."

Omicron के खिलाफ वैक्सीन के असर की पूरी तस्वीर पाने के लिए, वैज्ञानिक न केवल एंटीबॉडी लेवल पर बल्कि प्रतिरक्षा कोशिकाओं को भी देख रहे हैं, जो संक्रमित कोशिकाओं की पहचान करती हैं.

T सेल्स वो प्रतिरक्षा कोशिकाएं हैं, जो वायरस से संक्रमित कोशिकाओं को पहचान करती हैं, उन पर हमला करती हैं और एंटीबॉडी बनाने वाली B कोशिकाओं को उस वायरल जोखिम के बारे में तैयार करती हैं.

एक्सपर्ट्स ये भी कह रहे हैं कि स्पाइक में तमाम म्यूटेशन के बावजूद ऐसे भी हिस्से होंगे जिनके खिलाफ इन्फेक्शन या वैक्सीनेशन से हासिल एंटीबॉडी और T कोशिकाएं प्रतिक्रिया देने में सक्षम होंगी.

Guardian की एक रिपोर्ट में इंपीरियल कॉलेज लंदन में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर डैनी अल्टमैन कहते हैं, "दक्षिण अफ्रीका से हमें जो पता चला रहा है, वो यह है कि हॉस्पिटल में भर्ती होने की जरूरत उन्हें पड़ रही है, जिन्हें वैक्सीन नहीं लगी है." इसका मतलब है कि वैक्सीनेशन से सुरक्षा मिल रही है.

कुल मिलाकर यह बहुत हद तक संभव है कि जो लोग पूरी तरह से वैक्सीनेटेड हैं, उन्हें इस वेरिएंट के खिलाफ भी सुरक्षा मिलेगी, लेकिन ये भी संभव है कि इस नए वेरिएंट के खिलाफ मौजूदा वैक्सीन से मिलने वाली सुरक्षा में गिरावट हो जाए, जिसे लेकर अभी पर्याप्त जानकारी नहीं है.

इसी को ध्यान में रखते हुए Pfizer-BioNTech और Moderna जरूरत पड़ने पर अपने वैक्सीन में इस वेरिएंट के अनुसार सुधार करने की तैयारी कर रहे हैं.

Moderna और Pfizer-BioNTech की कोरोना वैक्सीन जिस तकनीक पर आधारित है, उसमें वेरिएंट के हिसाब से तेजी से बदलाव संभव है. जैसा कि फाइजर के एक प्रवक्ता जेरिका पिट्स ने कहा है कि Pfizer के वैज्ञानिक "छह हफ्ते के अंदर मौजूदा वैक्सीन को अनुकूलित कर सकते हैं और 100 दिनों के अंदर शुरुआती बैच भेज सकते हैं."

लेकिन क्या भारत में इस्तेमाल हो रही कोवैक्सीन और कोविशील्ड के साथ ऐसा संभव है? वायरोलॉजिस्ट डॉ. शाहिद जमील फिट को दिए इस इंटरव्यू में कहते हैं कि DNA या RNA वैक्सीन की तरह इन वैक्सीन में उतनी आसानी से बदलाव नहीं किया जा सकता है.

ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर काफी अनिश्चितताओं के बावजूद WHO ने इससे दुनिया भर में बहुत अधिक रिस्क की चेतावनी जारी की है.

इसलिए जैसा कि एक्सपर्ट्स बार-बार ये दोहरा रहे हैं कि मौजूदा COVID-19 वैक्सीन गंभीर बीमारी और मौत का जोखिम घटाने में कारगर है. इसलिए वैक्सीन की दोनों डोज जरूर लगवाएं और कोविड उपयुक्त व्यवहार का पालन जारी रखें.

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