(कैंसर सर्वाइवर एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा था कि उन्हें तंबाकू और सुपारी खाने पर अफसोस है और वह सोचते हैं कि काश किसी ने उन्हें 40 साल पहलेइस आदत को छोड़ने के लिए चेताया होता. उन्होंने बताया कि सर्जरी के कारण बहुत ज्यादा तकलीफ झेलनी पड़ी, दांत निकाल दिए जाने के कारण उन्हें पूरा मुंहखोलने और खाने व बात करने में मुश्किल होती है )
भारत में गुटखा, बीड़ी और सिगरेट जैसे कई रूपों में तंबाकू का सेवन किया जाता है. सबसे ज्यादा तंबाकू का सेवन करने वाले देशों में भारत का नंबर चीन केबाद दूसरा है. बदकिस्मती से, दुनिया में सबसे ज्यादा ओरल (मुंह का) कैंसर के मरीज भारत में हैं और इससे दुनिया में होने वाली मौतों में भारत की हिस्सेदारीएक चौथाई है. आमतौर पर इस बीमारी का असर निम्न सामाजिक-आर्थिक तबके के लोगों को झेलना पड़ता है, लेकिन अब नया रुझान दिख रहा है, और नौजवानभी इसकी चपेट में आ रहे हैं, जिनमें अब तक यह बहुत बहुत कम पाया जाता था. हालांकि व्यापक तौर देखें तो भारत में तंबाकू का सेवन घटा है, लेकिन बीड़ीऔर गुटखा जैसे धुआंरहित तंबाकू का सेवन अब भी बहुत ज्यादा है, जिनसे ओरल कैंसर होने का खतरा और ज्यादा है.
1.टैक्स लगाना: यह तंबाकू का सेवन घटाने का सबसे कम खर्चीला तरीका है. भारत सरकार ने कई तंबाकू उत्पादों पर एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी है, लेकिन तंबाकू पर रोक लगाने के उपाय लागू किए जाने की स्थिति अब भी अच्छी नहीं है.
2.जागरूकता बढ़ाना: शिक्षित करने और व्यवहार में परिवर्तन से भी तंबाकू का सेवन कम किया जा सकता है.
3.शुरुआत में ही पता लगाना: बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था किए जाने से शुरुआत में ही इसका पता लगाया जा सकेगा और बेहतर इलाज किया जा सकेगा. आरटीआई इंटरनेशनल द्वारा बड़े पैमाने पर 2,00,000 लोगों पर किए गए परीक्षण से पता चला कि स्क्रीनिंग से उनके मुकाबले ओरल कैंसर से मरने वालों की संख्या में काफी कमी आई, जिन्हें सिर्फ नसीहत वाले संदेश दिए गए और सामान्य सावधानी के बारे में बताया गया.
4.स्वास्थ्य बीमा कवर: अगर बीमा कवर हासिल हो, तो भी इलाज का खर्च एक बड़ा मुद्दा है. आरटीआई इंटरनेशनल द्वारा किए गए हालिया अध्ययन में पाया गया कि आधे से ज्यादा ओरल कैंसर के मरीजों के लिए वास्तविक खर्च के साथ ही आने-जाने और कैंसर सेंटर के करीब रुकने का खर्च इलाज पूरा करने में एक बड़ी रुकावट है.
वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे और वर्ल्ड नो टोबैको डे हमें 24 घंटे के लिए तंबाकू के दूर रहने और ठहर कर व्यक्तिगत तौर पर, सामूहिक तौर पर, स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने वाले और नीति निर्माता के तौर पर इसके लिए किए जा सकने वाले सकारात्मक बदलावों पर विचार करने का मौका देता है.
(सुझा सुब्रमनयन, पीएचडी, कैंसर इकोनॉमिक्स व पॉलीसी फेलो हैं और आरटीआई इंटरनेशनल, नॉर्थ कैरोलिना, यूएसए में सीनियर हेल्थ इकोनॉमिस्ट हैं)
( यह लेख 31 मई, 2015 को पहली बार प्रकाशित हुआ था और 20 मार्च को वर्ल्ड ओरल हेल्थ डे मौके पर FIT के आर्काइव से इसे दोबारा प्रकाशित किया जा रहा है)
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