कोरोना वायरस के खिलाफ वैक्सीन डेवलपमेंट को लेकर एक बेहद अच्छी खबर आई. Pfizer और BioNTech ने 9 नवंबर को बताया कि ह्यूमन ट्रायल (तीसरे फेज) के शुरुआती नतीजों के मुताबिक उनकी कैंडिडेट वैक्सीन COVID-19 को रोकने में 90% से अधिक प्रभावी रही.

प्रारंभिक परिणामों पर उत्साह के साथ कई महत्वपूर्ण सवाल भी हैं. जैसे क्या हमारे पास वैक्सीन की सुरक्षा और असर को लेकर पर्याप्त जानकारी है? क्या किया जाना बाकी है? क्या Pfizer की वैक्सीन के जल्द भारत आने की उम्मीद है?

फिट ने इस सिलसिले में वायरोलॉजिस्ट डॉ शाहिद जमील से बात की, जो अशोका यूनिवर्सिटी में त्रिवेदी स्कूल ऑफ बायोसाइंसेज के डायरेक्टर भी हैं.

Pfizer-BioNTech की वैक्सीन को लेकर जो घोषणा हुई है, उसके क्या मायने हैं?

हालांकि ये फेज 3 के अंतरिम नतीजे हैं, लेकिन ये कुछ अलग दृष्टिकोणों से बहुत उत्साह बढ़ाने वाले हैं.

ये किसी भी COVID वैक्सीन के लेट स्टेज ह्यूमन ट्रायल के सबसे पहले शुरुआती परिणाम हैं, जिन्हें साझा किया गया है.

दूसरी बात ये कि यह पहला mRNA वैक्सीन प्लेटफॉर्म है, जिसने प्रभाव दिखाया है. आज तक, कोई RNA आधारित वैक्सीन नहीं है, जिसे इस्तेमाल का लाइसेंस दिया गया हो. यह वास्तव में भविष्य के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि एक प्लेटफॉर्म उपलब्ध होने के बाद RNA वैक्सीन तैयार करना काफी आसान हो जाता है.

इससे ये भी साबित होता है कि वायरस की संरचना के एक छोटा से हिस्से से इम्युनाइज होकर सुरक्षा हासिल की जा सकती है.

इस मामले में पूरे स्पाइक प्रोटीन का इस्तेमाल नहीं करना होता है, सिर्फ उसका एक हिस्सा लेना होता है.

हम उम्मीद कर सकते हैं कि इस साल के आखिर तक ये सुनिश्चित हो सकेगा कि इस वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की मंजूरी मिलती है या नहीं.

कोरोना के खिलाफ Pfizer की कैंडिडेट वैक्सीन के बारे में हम अब तक क्या नहीं जानते हैं?

इन परिणामों में कोरोना संक्रमित 94 लोगों में से, हम अनुमान लगा सकते हैं कि 9 लोग वैक्सीन ग्रुप में थे और 85 प्लेसिबो ग्रुप में थे. इस तरह 90 प्रतिशत प्रभाव की गणना की गई है.

यह देखा जाना बाकी है कि क्या वैक्सीन ग्रुप में संक्रमित होने वाले लोगों और प्लेसिबो ग्रुप में संक्रमित होने वाले लोगों के बीच बीमारी के लेवल में कोई अंतर है. हम अभी तक यह नहीं देख पा रहे हैं कि यह वैक्सीन बीमारी की गंभीरता को कम करने में सक्षम है या नहीं, जो कई टीके सामान्य तौर पर करते हैं. ज्यादातर वैक्सीन असल में संक्रमण से रक्षा नहीं करती हैं, बल्कि वे बीमारी से बचाती हैं.

ये तभी पता चल पाएगा जब वैक्सीन एक बड़ी आबादी को दी जाएगी और ये काम इसे मंजूरी दिए जाने के बाद ही होगा.

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क्या 90% प्रभावी होना एक रियलस्टिक नंबर है? क्या हमें इसकी उम्मीद थी?

नहीं, कोई भी इतनी अपेक्षा नहीं कर रहा था. मुझे नहीं लगता कि कंपनी भी इसकी उम्मीद कर रही थी.

वे वैक्सीन के 70 प्रतिशत प्रभावी होने की उम्मीद कर रहे थे. यह 90 प्रतिशत से अधिक निकला. अभी के डेटा को देखते हुए 90 प्रतिशत प्रभाव की बात हो रही है. यह संभव है कि जब बाद में विश्लेषण किया जाए तो इसमें गिरावट आए, शायद, 85 या 80 प्रतिशत, फिर भी ये एक अच्छी वैक्सीन होगी.

ये शुरुआती परिणाम बेहद उत्साहजनक और सकारात्मक हैं, लेकिन अंतिम आंकड़ों का इंतजार करते हैं.

क्या अब भारत में ये वैक्सीन आने की उम्मीद है?

एक चीज जिसके लिए सावधान रहना है. इस वैक्सीन को अल्ट्रा-कोल्ड तापमान में स्टोर करना है. बहुत ठंडे कंटेनर में -80 डिग्री या इससे भी कम तापमान पर. वैक्सीन का वितरण और कोल्ड चेन बहुत बड़ी चुनौती है.

इसलिए निश्चित रूप से ये वो वैक्सीन नहीं है, जिसे आप भारत में ज्यादा लोगों को देने के बारे में सोच सकते हों क्योंकि भारत में इस तरह की कोल्ड चेन के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है. शायद, कुछ बहुत अमीर लोग जो बहुत सारे पैसे दे सकते हैं वे इसे ले सकने में सक्षम हो सकते हैं, वह भी अगर वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो जाए.

फैक्ट ये है कि निकट भविष्य में वैक्सीन के हम तक भारत आने को लेकर ज्यादा खुश नहीं हुआ जा सकता क्योंकि ये नहीं आ पाएगी.

इस वैक्सीन का डेवलपमेंट इस लिहाज से अच्छा है कि इससे एक कॉन्सेप्ट साबित हुआ है. भारत काफी अच्छी स्थिति में है. आने वाले महीनों में, हमारे पास कम से कम 3 या 4 कैंडिडेट वैक्सीन होने की संभावना है जो मूल रूप से इसी सिद्धांत काम कर रहे हैं- mRNA नहीं, लेकिन वायरस के उसी हिस्से पर और उम्मीद है, वे भी प्रभावी होंगे.

भारत की कोवैक्सीन फाइजर की वैक्सीन से कितनी अलग है?

दोनों बहुत अलग हैं. COVAXIN पूरा वायरस है. इस तरह की इनएक्टिवेटेड पैथोजन वाली वैक्सीन की प्रक्रिया ये है कि आप बहुत से वायरस ग्रो करते हैं, उसे प्यूरिफाय करते हैं और फिर केमिकल से वायरस को इनएक्टिव कर देते हैं और पूरा इनएक्टिवेटेड वायरस इन्जेक्ट किया जाता है, जबकि mRNA वैक्सीन और यहां तक कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन वायरस के एक कंपोनेंट पर आधारित हैं, जो कि स्पाइक प्रोटीन है. कोवैक्सीन में वायरस के सभी प्रोटीन हैं. इसलिए दोनों बहुत अलग वैक्सीन हैं.

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Published: 12 Nov 2020,02:56 PM IST

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