देश के कई राज्यों में डेंगू बुखार (Dengue Fever) का कहर देखा जा रहा है. डेंगू से बच्चों सहित बड़ों की मौत के मामले सामने आ रहे हैं.

डेंगू, मच्छर से होने वाला वायरल संक्रमण है, जो मादा एडीज एजिप्टी मच्छरों के काटने से होता है और बारिश के साथ इसके मामले हर साल बढ़ने लगते हैं. लेकिन डेंगू के कारण मौत का खतरा कब बढ़ जाता है? डेंगू के गंभीर लक्षणों की पहचान कैसे की जा सकती है? डेंगू के मरीजों की देखभाल कैसे करनी चाहिए? ये समझने के लिए फिट ने डॉक्टरों से बात की.

तेज बुखार के साथ इनमें से कोई 2 लक्षण डेंगू का संकेत हो सकते हैं-

  • तेज सिरदर्द

  • आंखों के पीछे दर्द

  • मांसपेशियों और जोड़ों का दर्द जी मिचलाना

  • उल्टी

  • ग्रंथियों में सूजन

  • चकत्ते

डेंगू के लक्षण 2 से 7 दिनों तक रह सकते हैं और ज्यादातर लोग एक हफ्ते बाद ठीक हो जाते हैं.

सीवियर डेंगू मेडिकल इमरजेंसी होती है और इसे समय रहते मैनेज करने की जरूरत होती है. डेंगू (Dengue) के लक्षण कुछ घंटों में गंभीर हो सकते हैं.

बीमारी शुरू होने के लगभग 3-7 दिनों में मरीज क्रिटिकल फेज में जा सकता है. गंभीर डेंगू के चेतावनी संकेत आमतौर पर बुखार कम होने के 24-48 घंटों में सामने आ सकते हैं.

गंभीर डेंगू के लक्षण

  • पेट में गंभीर दर्द

  • बार-बार उल्टी (24 घंटे में कम से कम 3 बार)

  • नाक या मसूड़ों से खून बहना

  • उल्टी में खून

  • सांस लेने में तकलीफ

  • मल में खून

  • सुस्ती या बेचैनी

दिल्ली के HCMCT मणिपाल हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन डिपार्टमेंट की हेड डॉ. चारू गोयल के मुताबिक इन लक्षणों के सामने आने पर मरीज को तुरंत हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत होती है.

कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. मंजीता नाथ दास कहती हैं कि डेंगू तब गंभीर हो जाता है, जब मरीज लो ब्लड प्रेशर और 5 से 7 दिनों से बहुत तेज बुखार से जूझ रहा हो, मुंह से खाना-पानी नहीं ले पा रहा हो, बार-बार उल्टी हो रही हो, किसी जगह से ब्लीडिंग हो रही हो. इस तरह की हालत में डेंगू खतरनाक हो सकता है.

डेंगू में मौत का खतरा डेंगू शॉक सिंड्रोम और डेंगू हेमोरेजिक फीवर इन दो स्थितियों में रहता है.
डॉ. मंजीता नाथ दास, इंटरनल मेडिसिन, सीनियर कंसल्टेंट, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार

डॉ. दास बताती हैं कि डेंगू शॉक सिंड्रोम में इंट्रावास्कुलर डिहाइड्रेशन होता है. इसमें ब्लड वेसल जैसे इंट्रावास्कुलर स्पेस से फ्लूइड लीक करने लगता है, जिससे कि मरीज का ब्लड प्रेशर लो हो जाता है. डेंगू शॉक सिंड्रोम आमतौर पर उनमें होता है, जिसे पहले डेंगू हो चुका हो.

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डॉ. गोयल भी कहती हैं कि डेंगू रक्तस्रावी बुखार (hemorrhagic fever) और डेंगू शॉक सिंड्रोम घातक साबित हो सकते हैं. डेंगू शॉक सिंड्रोम में शरीर के कई अंगों के फेल हो जाने और शॉक के कारण मौत की दर अधिक होती है.

इसमें नाड़ी (पल्स), रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) और मूत्र उत्पादन (यूरिन आउटपुट) की निगरानी करना महत्वपूर्ण होता है. एक्टिव ब्लीडिंग या प्लेटलेट काउंट 20,000 से कम होने पर प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है.
डॉ. चारू गोयल, HOD, इंटरनल मेडिसिन, HCMCT मणिपाल हॉस्पिटल, दिल्ली

वर्धा के महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में डायरेक्टर प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन और कस्तूरबा हॉस्पिटल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ. एस.पी कलंत्री के मुताबिक अगर किसी को डेंगू है और प्लेटलेट 20,000 से ज्यादा है, तो चिंता की बात नहीं होती. डेंगू में आपके लक्षण (ज्यादा उल्टी, पेट में दर्द और बेचैनी) ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं.

डॉ. दास बताती हैं कि डॉक्टर मरीज की हालत और ब्लीडिंग वगैरह देखते हुए तय करते हैं कि प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन की जरूरत कब है.

अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के मुताबिक नवजात और गर्भवती महिलाओं को गंभीर डेंगू होने का ज्यादा रिस्क होता है. अगर किसी को पहले डेंगू हुआ हो, तब भी गंभीर डेंगू का रिस्क होता है.

डेंगू का इलाज

डेंगू के इलाज के लिए कोई खास दवा नहीं है.

इसमें बुखार और दर्द से राहत के लिए दवाइयां दी जाती हैं. ज्यादा से ज्यादा आराम के साथ हाइड्रेटेड रहने के लिए खूब सारे तरल पदार्थ, इलेक्ट्रोलाइट्स के साथ पानी पीने की सलाह दी जाती है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक डेंगू में बुखार या दर्द के लिए एसिटामिनोफेन (Acetaminophen) या पैरासिटामॉल (Paracetamol) दिया जा सकता है, लेकिन इसमें एस्पिरिन (Aspirin) या आइबुप्रोफेन (Ibuprofen) जैसे NSAIDs (non-steroidal anti-inflammatory drugs) नहीं लेना चाहिए. इस तरह की एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाइयां खून को पतला करके काम करती हैं और जिस बीमारी में ब्लीडिंग का रिस्क हो, उसमें रक्त को पतला करने वाली दवाइयां समस्या कर सकती हैं.

वहीं गंभीर डेंगू में बीमारी के प्रभाव और प्रगति के अनुसार डॉक्टरों और नर्सों द्वारा मेडिकल देखभाल जान बचा सकती है.

डॉ. मंजीता नाथ दास कहती हैं, "आमतौर पर डेंगू दूसरी वायरल बीमारियों की तरह होता है, जो लगभग 7 दिनों तक रह सकता है. डेंगू को घर पर आसानी से मैनेज किया जा सकता है. मरीज को सामान्य भोजन दिया जा सकता है, लेकिन तरल चीजों की मात्रा बढ़ानी चाहिए."

वो बताती हैं कि डेंगू में घातक साबित होने वाले डेंगू शॉक सिंड्रोम और डेंगू हेमोरेजिक फीवर की स्थिति न हो, इसके लिए शुरुआत में ही मरीज की सही देखभाल जरूरी होती है.

अगर आपको या आपके घर में किसी को बुखार हो, तो जरूरी है कि खुद से कोई दवा लेने की बजाए सबसे पहले डॉक्टर को दिखाएं, ताकि बीमारी का पता चल सके और समय पर सही इलाज हो सके.

(WHO, CDC इनपुट के साथ)

(ये लेख आपकी सामान्य जानकारी के लिए है, यहां किसी तरह के इलाज का दावा नहीं किया जा रहा है, सेहत से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए और कोई भी उपाय करने से पहले फिट आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से संपर्क करने की सलाह देता है.)

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Published: 22 Sep 2021,05:00 PM IST

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