मानसिक बीमारियों को लेकर आज भी समाज में कई तरह की गलत धारणाएं मौजूद हैं, जो मानसिक रूप से बीमार लोगों के सही इलाज में बाधा बनती हैं. यहां तक कि किसी मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोग अक्सर कई तरह के भेदभाव का शिकार होते हैं.
कितने लोगों को तो ये पता ही नहीं चलता कि वो जो तकलीफें महसूस कर रहे हैं, वो किसी मानसिक बीमारी के लक्षण हो सकते हैं और उसका बाकायदा इलाज हो सकता है.
इंद्रप्रस्थ अपोलो हॉस्पिटल में चीफ क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ एकता पुरी बताती हैं कि लोग अभी भी मेंटल हेल्थ स्पेशलिस्ट या साइकोलॉजिस्ट के पास जाने से हिचकिचाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी मानसिक बीमारी को दूसरे पागलपन समझेंगे या ये समझा जाएगा कि उनमें कोई कमी है, उनकी क्षमता पर सवाल उठाया जाएगा.
ग्लोबल टेलीमेडिसिन पोर्टल SeekMed में एडवाइजर और हिंदुआ हेल्थकेयर में कंसल्टेंट साइकियाट्रिस्ट डॉ जलपा पी भूटा कहती हैं कि ये यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर से संपर्क करने को लेकर अभी भी स्टिग्मा मौजूद है. मरीज का परिवार भी अक्सर उसे मनोचिकित्सक के पास नहीं ले जाता.
डॉ पुरी कहती हैं कि अक्सर लोग कहते हैं कि साइकोलॉजिस्ट क्या करेगा, बात ही तो करेगा. वो बताती हैं, "अगर बच्चा अपनी मां को बोलता है कि मुझे साइकोलॉजिस्ट से मिलना है, तो मां कहती है कि बेटा मैं हूं न, मुझसे बात करो. साइकोलॉजिस्ट भी तो यही करेगा."
डॉ जलपा पी भूटा कहती हैं, "माइल्ड मेंटल बीमारियों में बातचीत करने या मोटिवेशनल कोच से बात करने से थोड़ी मदद मिल सकती है, लेकिन मॉडरेट और गंभीर मानसिक बीमारियों में एक योग्य मनोचिकित्सक यानी साइकियाट्रिस्ट की देखरेख में दवाइयों और रेगुलर फॉलो अप की जरूरत होती है."
डॉ एकता पुरी कहती हैं, "अगर कोई भी मानसिक परेशानी हो, तो थेरेपिस्ट से मिलिए, साइकोलॉजिस्ट से मिलिए, आपको जरूर फायदा होगा और क्वालिटी ऑफ लाइफ इम्प्रूव होगी. हम आपको आपकी परेशानियों को हैंडल करना सीखाते हैं, आपके लक्षणों को समझते हैं और आपको कैसे संभलना है, वो बताते हैं."
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Published: 10 Oct 2020,01:44 PM IST