बच्चों को अपने माता-पिता से अनुवांशिक रूप में थैलेसीमिया खून की बीमारी मिलती है. विशेषज्ञों के अनुसार, इस रोग के होने पर शरीर की हीमोग्लोबिन के निर्माण की प्रक्रिया ठीक से काम नहीं करती है और रोगी बच्चे के शरीर में खून की भारी कमी होने लगती है. इसके कारण उसे बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत होती है.
किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ के बाल रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ निशांत वर्मा ने बताया, "यह अनुवांशिक बीमारी है. माता-पिता इसके वाहक होते हैं. बीमारी हीमोग्लोबिन की कोशिकाओं को बनाने वाले जीन में म्यूटेशन के कारण होती है."
उन्होंने बताया कि आमतौर पर लाल रक्त कोशिकाओं की आयु 120 दिनों की होती है, लेकिन इस बीमारी के कारण आयु घटकर 20 दिन रह जाती है, जिसका सीधा प्रभाव हीमोग्लोबिन पर पड़ता है. हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाने से शरीर कमजोर हो जाता है और मरीज की प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिसके कारण उसे कोई न कोई बीमारी हो जाती है.
डफरिन हॉस्पिटल, लखनऊ के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ सलमान ने बताया, "बीमारी में बच्चे में खून की कमी हो जाती है. बच्चे का विकास रुक जाता है. इसमें अनुवांशिक काउंसिलिंग अनिवार्य है. थैलेसीमिया की गंभीर अवस्था में खून चढ़ाना जरूरी हो जाता है."
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, थैलेसीमिया से पीड़ित ज्यादातर बच्चे गरीब देशों में पैदा होते हैं. इस बीमारी से ग्रसित बच्चों में लक्षण जन्म से 4 या 6 महीने में नजर आते हैं. कुछ बच्चों में 5 से 10 साल में भी लक्षण दिखाई देते हैं. त्वचा, आंखें, जीभ और नाखून पीले पड़ने लगते हैं. दांतों निकलने में कठिनाई आती है.
इस बीमारी को लेकर जागरुकता फैलाने के लिए हर साल 8 मई को विश्व थैलेसीमिया दिवस मनाया जाता है. इस साल का थीम है 'यूनिवर्सल एक्सेस टू क्वॉलिटी थैलेसीमिया हेल्थकेयर सर्विसेज: बिल्डिंग ब्रिजेस विद एंड फॉर पेशेंट्स' है.
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Published: 08 May 2020,04:37 PM IST