दुनिया भर में कोरोना वायरस डिजीज-2019 (COVID-19) का प्रकोप, शटडाउन और कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ने के दौरान टीबी की जांच, टीबी के मरीजों की पहचान, उनके लिए जरूरी स्वास्थ्य सेवाओं में कहीं कोई चूक तो नहीं हो रही?

बेंगलुरु में रहने वाली अस्मिता बताती हैं कि झांसी में रह रही उनकी मां को हुई टीबी की बीमारी अब काफी गंभीर हो गई है, कोरोना के डर से करीब डेढ़ महीने तक उनकी जांच तक नहीं हो पाई थी.

उन्हें बहुत बुरी तरह से खांसी आ रही थी, सीने में तकलीफ थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के डर से उनकी जांच नहीं की जा रही थी. कोरोना टेस्ट इसलिए नहीं हो रहा था क्योंकि उन्हें बुखार नहीं था और न ही कोई कॉन्टैक्ट हिस्ट्री.
अस्मिता

कोरोना महामारी के बीच टीबी की जांच, पहचान और इलाज में देरी की आशंकाएं कई रिपोर्ट में जताई जा चुकी हैं.

कोरोना महामारी के दौरान टीबी के खिलाफ लड़ाई पर असर

हाल ही में आई वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की रिपोर्ट में आशंका जताई गई कि कोरोना महामारी के चलते कई देशों का टीबी उन्मूलन का लक्ष्य बाधित हो सकता है.

कोरोना महामारी के दौरान टीबी के कितने ही मरीजों में सही समय पर बीमारी का पता लगाने में रुकावट आ सकती है, जिससे इलाज न मिलने की स्थिति में बीमारी बढ़ने, इसके फैलने और बीमारी से मौत का खतरा बढ़ सकता है.

Stop TB Partnership की एनालिसिस में बताया गया कि कोरोना महामारी के कारण अगर दुनिया भर में 3 महीने का लॉकडाउन और उसके बाद सब कुछ सामान्य होने में करीब 10 महीने का समय लगे, तो साल 2020 से 2025 के बीच टीबी से 14 लाख अतिरिक्त मौतें हो सकती हैं. वहीं इस बीच टीबी के 63 लाख अतिरिक्त मामले हो सकते हैं और टीबी के खिलाफ लड़ाई 5 से 8 साल पीछे जा सकती है.

क्या टीबी के मरीजों को कोरोना संक्रमण, COVID-19 और मौत का ज्यादा खतरा है?

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स फरीदाबाद हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी डिपार्टमेंट के हेड और सीनियर कंसल्टेंट डॉ रवि शेखर झा कहते हैं, "ऐसा नहीं है कि टीबी के मरीजों को कोरोना संक्रमण का ज्यादा खतरो हो, लेकिन एडवांस्ड टीबी के केस में जब फेफड़े पहले से ही बुरी तरह प्रभावित होते हैं, ऐसे में कोरोना संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार पड़ने और जटिलताओं का रिस्क बढ़ जाता है."

सभी की तरह टीबी के मरीजों को भी कोरोना से बचाव के सभी उपाय अमल में लाने चाहिए और अपनी टीबी की दवा जारी रखनी चाहिए.

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COVID-19 और टीबी: कैसे फैलता है संक्रमण?

फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टिट्यूट के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ अवि कुमार कहते हैं कि दोनों बीमारियों का संक्रमण ड्रॉपलेट के जरिए फैलता है और ये दोनों बेहद संक्रामक रोग हैं.

ये दोनों बीमारियां संक्रमित शख्स के करीबी संपर्क से हो सकती हैं, लेकिन ट्रांसमिशन के मोड में भिन्नता है.

टीबी के पेशेंट के खांसने, छींकने, चीखने या गाने से बाहर निकले ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई में मौजूद कीटाणु हवा में कुछ घंटों तक रह सकते हैं और इसे सांस के जरिए अंदर लेने वाले लोग संक्रमित हो सकते हैं. ड्रॉपलेट न्यूक्लिआई का साइज संक्रामकता निर्धारण का एक अहम फैक्टर है. वेंटिलेशन और सूरज की किरणों में ये घटते हैं.

अब तक मिली जानकारी के मुताबिक कोरोना का ट्रांसमिशन भी मुख्य रूप से संक्रमित व्यक्ति से निकले ड्रॉपलेट से जुड़ा है, उसे सीधे सांस में लेने से कोई व्यक्ति संक्रमित हो सकता है. साथ ही अगर संक्रमित शख्स की खांसी, छींक और बोलते वक्त निकले ड्रॉपलेट किसी चीज या सतह पर हों, तो उन चीजों को छूने के बाद अपने आंख, नाक या मुंह छूने से संक्रमण हो सकता है.

टीबी के लिए कॉन्टैक्ट टाइम आमतौर पर 8 घंटे से अधिक का होता है, वहीं COVID-19 के लिए कॉन्टैक्ट टाइम 20-30 मिनट से कम होता है.
डॉ अवि कुमार

कोरोना संकट के दौर में अपना ख्याल कैसे रखें टीबी के मरीज?

ये जरूरी है कि टीबी के मरीजों के लिए हेल्थकेयर सर्विसेज बनी रहें. डॉ झा के मुताबिक इस बीच टीबी के मरीज अपनी दवा लेते रहें.

सुनिश्चित किया जाए कि टीबी के सभी मरीजों के दवाइयों का पर्याप्त स्टॉक हो, ताकि बार-बार दवा लेने के लिए न निकलना पड़े.

डिजिटल हेल्थ टेक्नोलॉजी प्रयोग में लाई जानी चाहिए.

क्या टीबी की जांच कराने वाले हर शख्स की कोरोना टेस्टिंग जरूरी है?

कोविड-19 और टीबी दोनों ही बीमारियों में खांसी, बुखार और सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण हो सकते हैं और इनमें मुख्य रूप से फेफड़े प्रभावित होते हैं.

डॉ रवि शेखर झा बताते हैं कि ऐसे में कोरोना टेस्ट कराने की जरूरत तभी होगी, जब उस शख्स में COVID-19 के लक्षण हों या कॉन्टैक्ट की हिस्ट्री हो.

WHO के मुताबिक किसी शख्स के लिए दोनों बीमारियों की टेस्टिंग इन तीन बातों पर निर्भर करेगी:

  • ऐसे लक्षण नजर आना, जो दोनों बीमारियों में कॉमन हैं
  • दोनों बीमारियों से एक्सपोजर या
  • दोनों बीमारियों से जुड़े रिस्क फैक्टर मौजूद होना

भले ही टीबी और कोविड-19 दोनों बीमारियों में आमतौर पर फेफड़े प्रभावित होते हैं और खांसी, बुखार, सांस लेने में कठिनाई जैसे लक्षण नजर आते हैं, लेकिन दोनों के क्लीनिकल फीचर अलग होते हैं. जैसे COVID-19 में बुखार और खांसी की शुरुआत तेजी से होती है और संक्रमण के बाद लक्षण सामने आने में लगभग 1 से 2 हफ्ते का समय लगता है. वहीं टीबी के लक्षण आमतौर पर बहुत लंबी अवधि में विकसित होते हैं. टीबी की खांसी में आमतौर पर बलगम और यहां तक कि खून भी निकल सकता है, जबकि COVID-19 के वो मामले जो गंभीर नहीं होते, उसमें सूखी खांसी होती है.

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Published: 05 Jun 2020,08:03 AM IST

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