"मेरे भाई पूरी तरह ठीक थे, उन्हें कोई बीमारी नहीं थी. 14 मई के आस पास उन्हें बुखार रहने लगा, खांसी भी आती थी. बुखार की दवा चल रही थी, लेकिन 18 मई की रात उन्हें सांस लेने में तकलीफ होने लगी. अभी हम कुछ कर पाते उससे पहले ही उनकी मौत हो गई," लखनऊ के लौलाई गांव के रहने वाले मो. नासिर (40) कहते हैं.
नासिर के परिवार में एक महीने के अंदर दो लोगों की मौत हो चुकी है. 16 अप्रैल को नासिर के पिता अब्दुल खालिद (69) की और 18 मई को नासिर के भाई मो. नादिर (46) की मौत हो गई. गांव में यह एकलौता परिवार नहीं जिन्होंने किसी अपने को खोया है. गांव वाले अप्रैल और मई के बीच करीब 22 मौत की बात कहते हैं.
लौलाई गांव के प्रधान उमेश कुमार यादव (59) कहते हैं, "पिछले 20 से 25 दिन के अंदर गांव में करीब 22 लोगों की मौत हो गई है. सबकी उम्र 40 से 70 के बीच थी. इतनी मौत के बाद भी गांव में न कोई जांच टीम आई, न ही सेनिटाइजेशन हुआ. हमने कई बार अधिकारियों को सूचित किया, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही."
लौलाई गांव में करीब 5 हजार परिवार रहते हैं. यह गांव इस बार पंचायत चुनाव से पहले लखनऊ शहरी क्षेत्र में आ गया है. हालांकि अभी ग्राम पंचायत और शहरी क्षेत्र की व्यवस्थाओं के बीच उलझा हुआ है. गांव के ही कोटेदार अंसार अहमद (42) निगरानी समिति का वॉट्सएप ग्रुप दिखाते हुए कहते हैं,
वहीं, यूपी सरकार का दावा है कि राज्य के 97 हजार गांव में करीब 60 हजार निगरानी समितियां काम कर रही हैं, जिनके माध्यम से कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए प्रभावी तरीके से काम हो रहा है. जबकि हालात यह हैं कि वॉट्सएप ग्रुप में शामिल गांव के सदस्य सेनेटाइजेशन न करवा पाने की बात कह रहे हैं.
यह हाल राजधानी लखनऊ के एक गांव का है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यूपी के गांव में क्या हालात हैं. 2011 की जनगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश की 77.73% आबादी गांव में रहती है, करीब 15.5 करोड़ आबादी.
यूपी सरकार का ध्यान भी इस वक्त ग्रामीण क्षेत्रों की ओर है. 19 मई को कोरोना बुलेटिन जारी करते हुए अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद ने कहा,
यूपी सरकार का यह भी दावा है कि गांवों में रैपिड रिस्पॉन्स टीम (RRT) के माध्यम से लोगों की जांच हो रही है. इस बारे में अमित मोहन प्रसाद ने 19 मई को कहा,
सरकार के इस दावे के मुताबिक करीब 97 हजार गांव में से 89 हजार से ज्यादा गांव में जांच की गई और इस हिसाब से केवल 32% गांव में संक्रमण पाया गया.
गांव में यह जांच कैसे हुई यह जानने के लिए फिट की टीम बाराबंकी जिले के कुछ गांव गई. बाराबंकी के सरायमिही गांव के रहने वाले अरुण कुमार (32) बताते हैं,
सरायमिही गांव की आशा कार्यकत्री ऊषा देवी बताती हैं,
जांच में कितने लोग पॉजिटिव आए इस बारे में ऊषा देवी को कोई जानकारी नहीं है. यानी करीब 300 से ज्यादा परिवार वाले गांव में केवल 25 लोगों की जांच हो पाई.
सरायमिही गांव में 15 अप्रैल से मई के शुरुआती हफ्ते तक करीब 4 लोगों की मौत हुई है. अरुण कुमार के मुताबिक, यह सभी मौत अचानक हुई. लोगों को केवल बुखार, खांसी की परेशानी थी, अचानक तबीयत बिगड़ी और मौत हो गई.
बाराबंकी के लकहैचा गांव में भी अप्रैल और मई के महीने में करीब 3 लोगों की मौत हो चुकी है. इन्हें भी बुखार, खांसी जैसे लक्षण थे. गांव के ही कौशल कुमार (47) बताते हैं, "26 अप्रैल को पंचायत चुनाव की वोटिंग थी, "पिता जी ने वोट भी दिया था. 27 को घर में ही आराम कर रहे थे कि अचानक सांस लेने में दिक्कत होने लगी. हमें करीब 10 मिनट का समय मिला होगा, तब तक उनकी मौत हो गई."
कौशल के मुताबिक 70 साल के उनके पिता पंचम को कोई खास बीमारी नहीं थी. हालांकि वो यह भी कहते हैं कि इसका कोरोना से कोई लेना-देना नहीं है. कौशल की तरह गांव में ज्यादातर लोग कोरोना का नाम सुनकर चुप्पी साध लेते हैं या फिर बात करने से इनकार कर देते हैं.
जहां पंचम की मौत 27 अप्रैल को हुई थी, वहीं गांव के ही सरजो की मौत 28 अप्रैल को हुई. सरजो के बेटे राम प्रसाद (40) ने बताया उनके पिताजी भट्ठे पर काम करते थे. गांव में 26 अप्रैल को वोटिंग थी, उसी दिन शाम को बुखार आया. बुखार की दवा लेने पर आराम हो गया था. इसके बाद 27 को काम पर गए, लेकिन शाम को ज्यादा बुखार आ गया. 28 अप्रैल की सुबह उनकी मौत हो गई.
कोरोना की जांच क्यों नहीं कराए? इस सवाल पर राम प्रसाद कहते हैं, "जांच कहां हो रही थी?" लकहैचा गांव के नवनिर्वाचित प्रधान महेंद्र कुमार (31) कहते हैं,
महेंद्र यह भी बताते हैं कि गांव में कोरोना की जांच को लेकर डर है. लोगों को लगता है कि अगर जांच में पॉजिटिव आ गए तो अस्पताल जाना ही होगा. लोगों के बीच यह भी बात है कि जो अस्पताल गया वो वापस नहीं आता. इसलिए लोग जांच या फिर वैक्सीन से बच रहे हैं. कोरोना का डर सब पर हावी है, ऐसे में अगर किसी को कोई लक्षण भी होता है तो बताते नहीं हैं.
इन सब चुनौतियों के बावजूद यूपी सरकार का दावा है कि 31 मार्च से 18 मई 2021 के बीच करीब 70 लाख जांच ग्रामीण क्षेत्रों में किए गए हैं. साथ ही 5 मई के बाद से जांच में और तेजी लाई गई है. अपर मुख्य सचिव नवनीत सहगल ने यह जानकारी 20 मई को कोरोना वायरस के संबंध में की गई प्रेसवार्ता में बताई.
सरकार के इन दावों पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, लखनऊ ब्रांच की अध्यक्ष डॉ. रमा श्रीवास्तव कहती हैं,
रमा श्रीवास्तव इस बात पर भी जोर देती हैं कि गांव में लोगों के बीच काफी भ्रम की स्थिति है, सरकार को इसे दूर करने के लिए भी काम करना चाहिए. लोगों को जांच और वैक्सीन के प्रति जागरूक करने की जरूरत है. लोग जब तक खुद से आगे नहीं आएंगे संक्रमण को खत्म करना मुश्किल है.
इससे पहले 17 मई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के गांवों और छोटे शहरों में स्वास्थ्य सुविधाओं पर चर्चा करते हुए कहा था कि सब 'राम भरोसे' है.
कोर्ट ने सरकार द्वारा दिए गए बिजनौर जिले के आंकड़ों का जिक्र करते हुए कहा, हम बिजनौर के ग्रामीण क्षेत्रों की आबादी 32 लाख मानते हैं तो वहां केवल 10 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) हैं. ऐसे में 3 लाख लोगों पर एक सीएचसी है. इन 3 लाख लोगों के लिए केवल 30 बेड हैं. यानी एक सीएचसी केवल 0.01 प्रतिशत आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा कर सकती है. इन सीएचसी पर न कोई BIPAP मशीन है न ही उच्च प्रवाह वाला Nasal Cannula है.
वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में टेस्टिंग का आंकड़ा देख भी हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की थी. बिजनौर के आंकड़े का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा, बिजनौर में 32 लाख की ग्रामीण आबादी में 31 मार्च से 12 मई तक सिर्फ 65,491 जांच हुई. इसमें भी 60:40 का रेशियो RTPCR-एंटीजन का रहा. कोर्ट ने कहा यह सही नहीं है. हर दिन 4 से 5 हजार RT-PCR टेस्ट होने चाहिए.
(रणविजय सिंह, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं. इनके काम के बारे में और जानकारी यहां ली जा सकती है.)
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Published: 24 May 2021,12:39 PM IST