एम्बलाइयोपिया (लेजी आई), मोतियाबिंद, काला मोतिया, डायबिटिक रेटिनोपैथी, एज-रिलेटेड मैक्यूलर डिजनरेशन- ये आंखों की गंभीर बीमारियां हैं.
यूं तो उम्र बढ़ने के साथ आंखों के लुब्रिकेट रहने की क्षमता घटती जाती है, आंखों के लेंस की इलैस्टिसिटी भी घटती है. वहीं कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टैबलेट, वीडियो गेम, ऑनलाइन गेम, टीवी जैसे डिवाइसेज के ज्यादा इस्तेमाल से भी आंखों पर असर पड़ रहा है.
लेकिन वो कौन से लक्षण हैं, जो आंखों की किसी गंभीर समस्या का संकेत हो सकते हैं? क्या समस्या की शुरुआत में ही इनकी पहचान हो सकती है, ताकि आंखों की रोशनी को गिरने से बचाया जा सके? हम अपनी आंखों का ख्याल कैसे रख सकते हैं?
इस सिलसिले में फिट ने बेंगलुरु के नेत्र आई हॉस्पिटल के डायरेक्टर और विट्रियोरेटिनल कंसल्टेंट डॉ श्रीभार्गव नतेश, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुरुग्राम में आई डिपार्टमेंट की डायरेक्टर डॉ अनीता सेठी और स्वामी परमानंद प्राकृतिक चिकित्सालय योग एवं अनुसंधान केंद्र के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ अखिलेश अग्रवाल से बात की.
डॉ श्रीभार्गव नतेश बताते हैं कि आपकी आंखों में कोई दिक्कत है, इसके संकेत आंख के आगे और पिछले दोनों हिस्सों में किसी तरह की परेशानी के तौर पर सामने आ सकते हैं.
आंखों का लाल हो जाना
आंख से पानी निकलना
आंख में दर्द होना
दिखाई न देना
धुंधला दिखना
धब्बे दिखाई देना
डॉ अनीता कहती हैं कि एक या दोनों आंखों में दर्द, ज्यादा लाली, कम दिखना- ये तीन सबसे अहम संकेत हैं, अगर इनमें से कोई दिक्कत हो, तो डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
डॉक्टर को दिखाना इसलिए जरूरी है क्योंकि धुंधला दिखना या कम दिखना एज-रिलेटेड मैक्यूलर डिजनरेशन, मोतियाबिंद या आंखों के दूसरे कई विकारों का लक्षण हो सकता है.
कोरोना काल में हमारा स्क्रीन टाइम कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है, बच्चे, बड़े और बुजुर्ग सभी का क्योंकि जब हमें घर से बाहर निकलने और आपस में मिलने-जुलने से बचना है, तो जाहिर है कि काम के अलावा भी हम मोबाइल और टीवी पर ज्यादा वक्त बिता रहे हैं.
डॉ अनीता सेठी बताती हैं कि स्क्रीन के ओवर यूज से हमारी आंखों में स्ट्रेन होता है, जिसे हम डिजिटल आई स्ट्रेन कहते हैं.
आंखों में थकावट महसूस होना- मन करता है कि आंख बंद किए रहें
शाम के वक्त आंख में थोड़ी सी लाली
कभी-कभी पानी आना
लगता है आंख के अंदर मिट्टी चली गई है
ये वो दिक्कतें हैं जो कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल से होती हैं, इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम भी कहा जाता है.
डॉ अनीता सेठी कुछ बातों का ख्याल रखने को कहती हैं.
वक्त पर रखें नजर: सबसे पहले हमें टाइमिंग का ध्यान रखना है. जितना कम हम स्क्रीन को यूज कर सकते हैं, उतना कम करें. जैसे बच्चों को क्लास लेनी ही होगी, ऑफिस का काम करना ही होगा, लेकिन जहां तक ऑनलाइन गेम की बात है, वो जरूरी नहीं है.
स्क्रीन से ब्रेक लेना न भूलें: जब भी हम ब्रेक ले सकते हैं, ब्रेक लेना चाहिए. एक 20-20-20 नियम है कि 20 से 25 मिनट काम करने के बाद 20 सेकेंड का ब्रेक लीजिए, इसमें आप किसी 20 फीट की दूरी वाली कोई चीज देखिए. जैसे खिड़की के बाहर किसी पेड़ को देखिए या कमरे के उस तरफ घड़ी को दीवार पर देखिए. इस तरह आंखों की मांसपेशियों को आराम दीजिए.
पॉस्चर बहुत जरूरी है- आप किस तरह से बैठे हैं, उस पर ध्यान देना जरूरी है. लेट के पढ़ने से या लेट के स्क्रीन पर देखने से आंखों पर ज्यादा जोर पड़ता है. कंप्यूटर या लैपटॉप का ऊपरी हिस्सा आंखों के लेवल के ठीक नीचे होना चाहिए और कंप्यूटर आंखों से 20-28 इंच दूर होना चाहिए.
अच्छी लाइटिंग- अंधेरे कमरे में स्क्रीन की लाइट आंखों पर बहुत जोर देती है, इसलिए कंप्यूटर, टीवी, मोबाइल अंधेरे में यूज न करें.
जो लोग अपने लैपटॉप या कंप्यूटर पर लगातार काम करते हैं उनके लिए डॉ भार्गव आंखों की एक्सरसाइज और लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप के इस्तेमाल की सलाह देते हैं. इसके अलावा एंटी-ग्लेयर ग्लासेज यूज करने को कहते हैं, जो नीली किरणों से रक्षा करते हैं.
डॉ अनीता सेठी चेताती हैं, "चश्मा या एंटीग्लेयर ग्लास से मदद मिलती है, लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि अब आप जितना चाहें, उतना स्क्रीन टाइम बिता सकते हैं."
डॉ सेठी बताती हैं कि कंप्यूटर पर काम के दौरान अगर ज्यादा दिक्कत रहे तो अपने डॉक्टर को जरूर कंसल्ट करिए. कभी-कभी हो सकता है कि आपका नंबर बढ़ गया हो या आपको चश्मे की जरूरत है.
स्वामी परमानंद प्राकृतिक चिकित्सालय योग एवं अनुसंधान केंद्र के चीफ मेडिकल ऑफिसर (CMO) डॉ अखिलेश अग्रवाल तीन टिप्स देते हैं, जिनसे आंखों की थकावट को दूर किया जा सकता है:
सूती का बिल्कुल साफ कपड़ा लेकर उसे बर्फ के पानी में भिगोकर आंखों पर 5 से 10 मिनट के लिए रखने से आराम मिलता है.
साफ ठंडे पानी से आंखें धोना भी अच्छा होता है
त्रिफला पानी से आंखें धोना भी फायदेमंद होता है. इसके लिए रात में एक गिलास पानी में त्रिफला पाउडर भिगो दें, सुबह उसे छानकर उस पानी से अपनी आंखें धोएं.
डॉ भार्गव बताते हैं कि आंखों की कुछ समस्याओं के लक्षण सामने आ सकते हैं, लेकिन कुछ गंभीर दिक्कतें ऐसी भी होती हैं, जिनके कोई लक्षण नजर नहीं आते और आगे चल कर दिखाई देना बंद हो सकता है.
जैसे- आम तौर पर जो काला मोतिया होता है, उसमें धीरे-धीरे आंखों की रोशनी जाने के अलावा कोई खास लक्षण सामने नहीं आते.
इसलिए आंखों को दुरुस्त रखना और रेगुलर चेकअप जरूरी है. डॉ भार्गव सलाह देते हैं:
हर कोई अपनी आंखों की देखभाल एक निश्चित तरीके से कर सकता है, जैसे- छोटे बच्चों का प्री आई एग्जामिनेशन कराया जा सकता है
बड़ों की आंखों का चेकअप
ध्यान रखा जाए कि आंखों को कोई चोट न लगे और
बुजुर्ग अपनी नजर पर नजर रखने के लिए घर पर एम्स्लर ग्रिड का उपयोग कर सकते हैं
कोई फैमिली हिस्ट्री या कोई बीमारी है, तो हर साल आंखों का चेकअप कराने की सलाह दी जाती है
नोएडा की रहने वाली सृष्टि बताती हैं, "कई दिनों से आंखों से पानी गिर रहा है, काफी जलन रहती है, चेकअप कराना है, लेकिन ये डर भी सता रहा है कि किसी आई हॉस्पिटल जाना सेफ रहेगा. सृष्टि अकेली नहीं हैं, कोरोना काल में कई लोग हॉस्पिटल जाने में ही डर रहे हैं.
इस पर डॉ सेठी कहती हैं, "कोविड का डर तो है मगर कुछ चीजें जरूरी हैं, जिनका रेगुलर आई चेकअप होता है. जैसे डायबिटीज वाले लोग हैं, काला मोतिया (ग्लूकोमा) के मरीज हैं, बच्चे हैं जिनका रेगुलर नंबर चेक होना होता है. इसलिए कोरोना के डर से अपना चेकअप कराने में देरी न करें."
डॉ श्रीभार्गव नतेश कहते हैं कि डायबिटीज या हाई ब्लड प्रेशर वाले मरीज हाई रिस्क पर होते हैं, इसलिए ऐसे लोगों को अगर कोई असामान्य लक्षण दिखे तो उन्हें खासतौर पर कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए.
डॉ सेठी कहती हैं कि अगर आप चेकअप नहीं कराएंगे तो दिक्कतें बढ़ती ही जाएंगी. इसलिए लापरवाही न करें.
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